Saturday, 11 January 2014

क्या कश्मीर को लेकर सोनिया-कांग्रेस ने कोई सौदा किया था ? — डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री



नए वर्ष के प्रारंभ में ही 3 जनवरी को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दिल्ली में एक प्रेसवार्ता आयोजित की थी, अपने दस साल के प्रधानमंत्री काल में शायद यह उनकी तीसरी प्रेस वार्ता थी। जैसे कि उन्होंने संकेत दिए हैं शायद यह प्रधानमंत्री के नाते उनकी अंतिम  प्रेस वार्ता भी थी। इस प्रेस वार्ता में जानबुझकर या फिर चूक से उन्होंने एक ऐसा रहस्योद्घघाटन किया जो सबको चौंकाने वाला था। प्रधानमंत्री के अनुसार जिन दिनों परवेज मुर्शरफ पाकिस्तान में सत्ताधारी थे, उन दिनों भारत सरकार का जम्मू कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ लगभग एक समाधान पर सहमति बन भी गई थी। मनमोहन सिंह की वाणी से लगता था कि उनको इस बात का गहरा दुख था कि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन हो गया और जम्मूकश्मीर पर सहमति भी खटाई में पड़ गई। सरकार को पाकिस्तान के साथ या किसी भी दूसरे देश के साथ देश के राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए बातचीत करने का अधिकार है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। कई बार महत्वपूर्ण विषय पर दोनों देशों की सरकारें ऐसी बातचीत प्राय: पर्दे के पीछे भी करती है। इस प्रकार की कुटनीति का भी विश्व भर में सामान्य प्रचलन है। लेकिन जम्मूकश्मीर का प्रश्न केवल देश के राजकीय हितों से ही नहीं जुड़ा है बल्कि उसका संबंध देश की भौगोलिक अखंडता से भी है। भारत के राष्ट्रीय हितों और भारत की भौगोलिक अखंडता के महीन अंतर को सत्ता चला रही पार्टी की अध्यक्षा सोनिया गांधी न भी समझती हों, मनमोहन सिंह तो अच्छी तरह जानते ही होंगे। क्योंकि वे स्वयं भारत की अखंडता के खंडित हो जाने के राजनैतिक हादसे का शिकार हो चुके हैं। इसलिए भौगोलिक अखंडता का क्या महत्व है , इसे उनसे ज्यादा और कौन जान सकता है। इस पृष्ठभूमि में यह लाजमी हो जाता है कि जम्मू-कश्मीर के प्रश्न को लेकर जब भारत सरकार किसी दूसरे देश से बात करती है, तो वह देश के तमाम लोगों और राजनैतिक दलों को विश्वास में ले, क्योंकि देश के अखंडता का प्रश्न दलीय प्रश्न नहीं है बल्कि राष्ट्रीय प्रश्न है। इस प्रश्न पर भारत की संसद पहले ही एक सर्व सम्मत प्रस्ताव द्वारा भारत की स्थिति को स्पष्ट कर चुकी है। इस प्रस्ताव के अनुसार जम्मूकश्मीर के जिस भाग पर 1947 के युद्ध में पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था वह सारा क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग है। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि इस मुद्दे पर पाकिस्तान से कोई बात होती है तो इस विषय पर हो सकती है कि अवैध रूप से कब्जाए गए इस क्षेत्र को पाकिस्तान कब और कैसे खाली करेगा? पाकिस्तान द्वारा जम्मूकश्मीर का जो हिस्सा कब्जे में किया गया है, उसमें गिलगित, कारगिल तहसील को छोड़कर बाल्तिस्तान, पंजाबी भाषी मुज्जफर्राबाद  और जम्मू संभाग के दो जिलें मीरपुर और पूंछ शामिल है। मनमोहन सिंह की सरकार ने परवेज मुर्शरफ की सरकार के साथ क्या इन इलाकों को वापस लेने के लिए बातचीत की थी, जिसके बारे में स्वयं मनमोहन सिंह का कहना है कि लगभग सहमति बन गई थी।
इस बात पर तो शायद मनमोहन सिंह के समर्थक भी विश्वास नहीं करेंगे कि उन्होंने परवेज मुर्शरफ को वे इलाकें वापस करने के लिए तैयार कर लिया था। तब आखिर ऐसा कौन सा समाधान था, जिस पर भारत सरकार और पाकिस्तान सरकार दोनों ही तैयार थे। मनमोहन सिंह इसको अंगेजी में 'ब्रेक थ्रू' कह रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं अरसा पहले डिक्शन ने जो सुझाव दिया था और जिसको उस समय भी तुरंत अस्वीकार कर दिया गया था उसे सोनिया गांधी की सरकार स्वीकार करने का वातावरण बना रही है? इस सुझाव के अनुसार पाकिस्तान के कब्जे में जो क्षेत्र हैं उसको तो बिना किसी रूकावट के उसी के पास रहने दिया जाए, लेकिन कश्मीर घाटी में जनमत संग्रह करवा लिया जाए। इसकी आशंका इसलिए बढ़ती जा रही है क्योंकि प्रधानमंत्री की प्रेसकांफ्रेंस के बाद सोनिया कांग्रेस के साथ मिलकर दिल्ली में सरकार चला रही 'आप' पार्टी के एक प्रमुख नेता प्रशांत भूषण ने कहा है कि उनकी सरकार यदि सत्ता में आती है तो कश्मीर में जनमत संग्रह करवाएगी। अब इतना तो स्पष्ट है कि दिल्ली में 'आप' पार्टी खुद अपने बलबूते तो सत्ता में आई ही नहीं, लेकिन यदि देश में सोनिया कांग्रेस को अन्य दलों के साथ, जिनमें आप पार्टी भी होगी, मिलकर सरकार बनाने का मौका मिलता है तो वह कश्मीर में जनमत संग्रह करवा सकती है। 
प्रशांत भूषण इससे पहले भी कह चुके हैं की कश्मीर पाकिस्तान को दिया जा सकता है। 'आप' और सोनिया कांग्रेस ने फिलहाल जो खिचड़ी पक रही है उसको देखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जम्मूकश्मीर को लेकर किया गया खुलासा और प्रशांत भूषण का अचानक इस प्रश्न को लेकर सक्रिय हो जाना संदेह उत्पन्न करता है ।

इसलिए यह जरूरी है कि सोनिया कांग्रेस इस प्रश्न पर पूरे देश को विश्वास में ले और परवेज मूर्शरफ के साथ जो बातचीत सरकार की हुई थी, उसका खुलासा करे। यह खुलासा करने में अब कोई नुकसान होने की संभावना भी नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री खुद ही कह चुके हैं कि पाकिसतान में सत्ता परिवर्तन के बाद वह समाधान खटाई में पड़ चुका है। आखिर देश को भी पता चलना चाहिए कि जम्मूकश्मीर को लेकर सोनिया कांग्रेस पाकिस्तान के साथ क्या खिचड़ी पका रही है। सोनिया कांग्रेस के ही एक और सहयोगी नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला कुछ अरसा पहले ही यह कहने लगे हैं कि राज्य का भारत में मर्जर नहीं हुआ है। उमर अब्दुला, मनमोहन सिंह और प्रशांत भूषण इन तीनों के बयानों का यदि एक साथ अध्ययन किया जाए तो शंका पैदा होती है कि कहीं जाते जाते सोनिया कांग्रेस जम्मू कश्मीर का पाकिस्तान के साथ सौदा तो नहीं कर रही?


(6 जनवरी 2014) 

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