डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री
कहते हैं चीता अपनी धारियाँ नहीं छुपा सकता लेकिन सीपीएम की दाद देनी पड़ेगी
कि उसने 30 साल तक न केवल न अपनी धारियाँ छिपा कर रखीं बल्कि अपने चीता होने का
प्रमाण ी छिपाए रखा। अब जब पर्दा हटा है तो उसके खूंखार पंजे पैने दांत स्पष्ट
दिखाई देने लगे हैं। सीपीएम की पूंजीवादी धारियाँ तो पिछले 6-7 सालों से तेजी से
प्रकट होनी शुरू हो ही गई थीं। लेकिन वे पूंजीवादियों के दलाल ही बन जाएंगे ऐसा
किसी ने नहीं सोचा था। नंदीग्राम को देखकर लगता है कि वहां सीपीएम के लोग नहीं लड़
रहे बल्कि किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के प्रशिक्षित गुंडे आम जनता पर अत्याचार ढा
रहे हैं। नंदीग्राम में पूंजीपतियों के पक्ष में सीपीएम का बंदूक लेकर गांव-गांव
में निकल पड़ना और विरोध के हर स्वर को गोली से शांत कर देना। उसका एक पक्ष था।
लेकिन पिछले दिनों उसका जो दूसरा सांप्रदायिक पक्ष सामने आया है वह उसके पूंजीवादी
पक्ष से ी ज्यादा खतरनाक है। अी तक नंदीग्राम के संघर्ष को किसी ने सांप्रदायिक
॰ष्टिकोण से मूल्यांकित नहीं किया था। नंदीग्राम में जो लड़ रहे हैं, वे किसान हैं । न वे हिन्दू हैं, न वे मुसलमान हैं। वे किसान अपनी जमीन के लिए लड़
रहे हैं। उनमें से ज्यादातर किसी राजनैतिक दल से ताल्लुक ी नहीं रखते । वे अपनी
रोजी रोटी के लिए अपने अधिकारों के लिए उस राज्य सरकार से लड़ रहे हैं जो राज्य
सरकार जाहिर तौर पर इन्हीं के हितों का पोषण करने की बात कहती रही हैं। लेकिन
पिछले दिनों कोलकाता में जो कुछ हुआ उसने सीपीएम को बीच चैराहे में नंगा कर दिया।
किसी अखिल ारतीय अल्पसंख्यक फ्रंट के लोगों से नंदीग्राम को लेकर प्रदर्शन करवाया
गया। वह सीपीएम के संप्रदायिक चेहरे को बेनकाब करता है। सीपीएम नंदीग्राम को
हिन्दू-मुस्लिम समस्या का रूप देना चाहती है । इतना ही नहीं। उसने इसी अल्पसंख्यक
फ्रंट के माध्यम से नंदीग्राम के साथ ही तसलीमा नसरीन के वीजा के प्रश्न को नत्थी
कर दिया। अल्पसंख्यक फ्रंट के लोगों का कहना है कि नंदीग्राम में मुसलमानों पर
अत्याचार हो रहा है। सरकार मूल रूप में ही मुसलमानों के खिलाफ है। इसका एक और सबूत
यह है कि पश्चिमी बंगाल सरकार ने तसलीमा नसरीन को कोलकाता में रखा हुआ है। उसे
तुरंत बंगाल से निकाला जाना चाहिए । अन्धा क्या मांगे दो आँखे। सारी की सारी
सीपीएम क्या बुद्ध देव ट्टाचार्य और क्या विमान बोस, क्या सीताराम येचुरी और क्या प्रकाश करात सब तसलीमा के
पीछे लठ लेकर पड़ गए हैं। अल्पसंख्यक फ्रंट को खुश करने के लिए सीपीएम की सरकार ने
तसलीमा नसरीन को जबरदस्ती विमान में बिठचकर राजस्थान रवाना कर दिया। यहां तक कि
उसे नित्य प्रयोग के कपड़े ी उठाने नहीं दिए। सीपीएम का यह निर्लजतापूर्ण
सांप्रदायिक आचरण यद्यपि ऊपर से स्तंित कर देने वाला है लेकिन जो इस दल के इतिहास
से वाकिफ हैं वे जानते हैं कि सŸाा में बने रहने के लिए सीपीएम की ी घनघोर घंघोर
सांप्रदायिक व्यवहार कर सकती है। नंदीग्राम में सर्वहारा की एकता को तोड़ने के लिए
सीपीएम द्वारा चलाया गया यह घृणित सांप्रदायिक हथियार है। सबसे बड़ी बात यह है कि
तसलीमा नसरीन मूल रूप से बंग ाषी ही है। यदि वह किसी और प्रांत की होती तो शायद
अल्पसंख्यक फ्रंट को खुश करने केलिए सीपीएम के लोग उसे खुद ही रात के अंधेरे में
बांग्लादेश की सीमा में धकेल देते। सर्वहारा के लिए संघर्ष करने का दम रने वाली
सीपीएम किसी दिन सŸाा सुख के लिए अपनी
सांप्रदायिक जी से ही दंश मारेगी ऐसा कम से कम बंगाल के किसानों ने और नंदीग्राम
में अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोगों ने नहीं सोचा होगा। अलबŸाा सीपीएम के पक्ष में इतना जरूर जाता है कि उसकी
दार्शनिक आधार ूमि शुरू से ही यह मानती है कि सŸाा
बंदूक की नली से निकलती है। वक्त पड़ने पर उन्होंने नंदीग्राम के माध्यम से बता ी
दिया है कि पिछले 30 सालों से इसी बंदूक की नली से पश्चिमी बंगाल की सŸाा पर कब्जा जमाए हुए हैं। अब जब नंदीग्राम के लोगों
ने साहस करके बंदूक की नली को ही पकड़ लिया हैतो सीपीएम वालों ने उनकी सफों में
सांप्रदायिकता का सांप छोड़ा है। इस आशा के साथ कि शायद वह सर्वहारा की एकता को
तोड़ दे या कम से उनको डरा ही दे। इसके लिए सीपीएम तसलीमा नसरीन को बली का बकरा बनाना चाहती है।
सोनिया गांधी का रसोईया:- हिमाचल प्रदेश के विधानसा के उपाध्यक्ष सकते में
है। चुनावों में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। उनकी जगह जिसको टिकट दिया गया
है, उसका नाम कोई नहीं जानता और नाम
जानने की शायद किसी को जरूरत ी नहीं है। क्योंकि बिना नाम के ही उसकी पहचान
क्षेत्र में बन गई है वह सोनिया गांधी के रसोईये का बेटा है। रसोईया पुराना है।
इंदिरा गांधी के वक्त से ही चैका चूल्हा संालता रहा है। दालाजी सब्जी सब बनाता
है। मुर्ग मुसल्लम ी बनाता होगा। दालसब्जी बनाते-बनाते बेचारा बूढ़ा हो गया। अब
सोनिया गांधी इनाम इकराम बांट ही रही हैं। बेचारे रसोइये ने कुछ माँगा, लेकिन जो उसे मिला शायद उसने स्वप्न में ी कल्पना
नहीं की होगी। सोनिया ने कहा - जाओ । तुम्हारे बेटे को हिमाचल प्रदेश में अरकी नाम
की रियासत का राजा बना दिया है। यदि लोकतंत्र की ाषा में बात की जाए तो अरकी
विधानसा से उसे कांग्रेस का टिकट दे दिया गया है। पता चला है कि वह रसोईया अब जब ी
किसी से मिलता हैतो एक ही बात कहता है कि इटली के लोग बड़े दरियादिल हैं। जब खुश
होते हैं तो राजा बना देते हैं। किसी ने कहा- अरे ाई। यह नई बात नहीं है जब
अंग्रेज यहां राज करते थे तो सेवा करने वालों को रायबहादुर या रायसाहब बना देते
थे।
और अंत में:- दोनों में से एक मित्र की शादी हो गई । दो तीन महीने के बाद शादी
शुदा मित्र के घर गैर शादीशुदा मित्र पहुँचा। उसे आश्चर्य हुआ कि उसका मित्र
रसोईघर में ोजन बना रहा था और उसकी पत्नी पास खड़ी गप्पे हाँक रही थी। मित्र ने
व्यंग्य से कहा - क्यों ाई। रसोई का काम तुम्हें ही करना पड़ता है? ाीजी नहीं करती क्या? शादीशुदा मित्र ने उसी उत्साह से जवाब दिया-नए युग
में पुरूष और óी सब बराबर है। एक दूसरे
के काम में सहायता की जानी चाहिए। जब घर के कपड़े धुलवाने में तेरी ाी मेरी
सहायता करती है तो मैं ला रोटी बनाने में मैं उसकी सहायता क्यों न करूँगा।
(27 नवंबर 2007, मंगलवार द्ध
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