-डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
दाऊद अब्राहम की बहन हसीना पारकर की मुंबई पुलिस को तलाश है। कहा जाता है कि
दाऊद अब्राहम के सारे कारोबार का मुंबई से संचालन हसीना ही करती है। दाऊद अब्राहम
और हसीना पारकर कोई च्यूंटी ुनगा नहीं है कि किसी को दिखाई न दे। न ही उनका
कारोबार इस प्रकार का कारोबार हैजो पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहा है। ाई-बहन का
काम और तरीका पुलिस ी जानती है, मुख्यमंत्री ी जानते हैं और सीताराम येचुरी ी जानते
होंगे। ये तीनों तो दाऊद अब्राहम और हसीना पारकर को अनदेखा ी कर सकते हैं,
लेकिन मुंबई की
जनता उन्हें अनदेखा नहीं कर सकती । क्योंकि मुंबई निवासियों को और दाऊद अब्राहम-हसीना
पारकर को एक साथ ही मुंबई में रहना है। बुद्धिजीवी किस्म के लोग प्रश्न पूछ सकते
हैं और पूछ ी रहे है कि दाऊद अब्राहम तो लंबे अरसे से मुंबई से बाहर पाकिस्तान
में रहते हैं। लेकिन मुंबई की जनता का काम बुद्धिजीवियों के सवालों से नहीं चलता।
वे जानते हैं कि दाऊद अब्राहम पाकिस्तान में होते हुई ी मुंबई में है और हसीना
पारकर मुंबई में होते हुए ी पाकिस्तान में है। मुंबई बम धमाकों को लगग पन्द्रह
साल बीत गए। मुकदमे का फैसला अब आना शुरू हुआ है। हजारों गवाहियाँ हुईं। ट्रक रकर
दस्तावेज पेश किए गए । वकीलों ने अपने मुवक्किलों को बचाने के लिए दिन-रात एक कर
दिया। लेकिन यह सारी प्रक्रिया चलते रहने के साथ-साथ ाई-बहन ने मुंबई का अपना
धंधा बंद नहीं किया। उनका आतंक उसी प्रकार बरकरार रहा। हफ्ता वसूली, सुपारी का लेनदेन उसी
प्रकार चलता रहा। पुलिस खुद स्वीकार करती हैकि दाऊद अब्राहम की ओर से मुंबई में ये
सारे धंधे हसीना पारकर करती है। लेकिन कांग्रेस सरकार का आतंकवाद से लड़ने का अपना
एक तरीका है। वह बीच में की कार एक आध आतंकवादी को पकड़ कर कचहरी में ले जाती
हैऔर वहां से जमानत पर आने के बाद दादा किस्म के ये लोग अपना धंधा उसी प्रकार चालू
कर देते हैं। आतंकवादियों और सरकार के बीच परस्पर सहयोग का यह मूल मंत्र है। यह तब
तक चलता रहता है जब तक दोनों पक्ष अपने कौल करार को पक्की तरह निाते हैं। लेकिन
जब एक पक्ष अपने कौल को नहीं निाता तो मामला जग जाहिर हो जाता है।
हसीना पारकर को लेकर यही हुआ है। वह इतने लंबे अरसे से सरेआम अपना धंधा चला
रही थी। जब पुलिस को उसकी जरूरत पड़ी तो वह गायब हो गई है। महाराष्ट्र की
कांग्रेसी सरकार के गृह मंत्री का कहना हैकि हसीना पारकर कहाँ है, उनको नहीं मालूम । यह
आतंकवाद से लड़ने का एक तरीका है। इस तरीके से मुंबई में सैकड़ों लोग मारे जा चुके
हैं। लेकिन इसे खुदा का फजल ही कहना चाहिएकि आतंकवादी कोई नहीं मारा गया।
आतंकवादियों के न मारे जाने के पीछे कांग्रेसी सरकार का अपना तर्क है। यह तर्क
सीताराम येचुरी और वृंदा करात के तर्क का ही हिस्सा है। इस तर्क के अनुसार आतंकवादियों
के ी मानवाधिकार हैं, उनकी रक्षा होना लाजिमी है और सरकार इस सुरक्षा के लिए
प्रतिबद्धित है । इसके साथ ही किसी को पकड़ने या मारने की एक पूरी कानूनी
प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले आतंकवादी गोलियां और बम चलाता हैऔर उसके
कारण कुछ लोगों का मरना जरूरी है और इस पूरे कांड को देखने के लिए कुछ गवाहों का
होना ी जरूरी है, जो यह कहे कि उसने आतंकवादी ाई को गोलियां चलाते और लोगों को मारते हुए खुद
अपनी आँखों से देखा है। सरकार का यह कहना हैकि इस प्रक्रिया के बाद ही किसी
आतंकवादी को पकड़ा जा सकता हैऔर पकड़ने के बाद अदालत को सौंप दिया जाएगाऔर अदालत
उसको सजा देगी। सजा देने के लिए अदालत के पास इससे ी लंबी एक प्रक्रिया हैऔर इन
सब का नतीजा यह होता है कि हसीना पारकर और दाऊद अब्राहम दोनों ही खुले घूमते हैं।
मरना केवल आम नागरिक के ाग्य में लिखा है।
दूसरा किस्सा एक अन्य आतंकवादी सोहराबुद्दीन का है। सोहराबुद्दीन पर अनेक
राज्यों में अनेक प्रकार के मुकùें चल रहे हैं । यह मुकùे कोई आज के नहीं है। वर्षों से
ये मुकùे
अपने स्वाव के अनुसार सरक रहे हैं। मुकदमों की गति धीमी है लेकिन सोहराबुद्दीन के
कामकाज की गति तेज है। उसका जाल अनेक राज्यों में फैलता जा रहा है। वह हसीना पारकर
की ही तरह लोगों से हफ्ता वसूली करता है और अवज्ञा करने वालों को अपने तरीके से
दंडित ी करता है। सोहराबुद्दीन जेल में नहीं रहता। वह स्वतंत्र घूमता हैऔर अपना
काम ी स्वतंत्रतापूर्वक ही करता है। ऐसा ी कहते हैं कि वह जरूरतमंदों को
हथियारों की सप्लाई ी करता था। इस देश में हथियारों की जरूरत किसे है, यह किसी से छिपा हुआ
नहीं है। गुजरात पुलिस ने सोहराबुद्दीन को एक मुठेड़ में मार दिया है। आजकल उसी
की जांच चल रही है। जांच करने वालों का कहना है कि मुठेड़ की ी अपनी एक
प्रक्रिया है और उस प्रक्रिया के अनुसार ही मुठेड़ हो सकती है। उससे एक इंच ी
दाएं-बाएं हो जाने से पूरी की पूरी मुठेड़ ही ेगैरकानूनी हो जाती है। अंग्रेजी
में कानूनदानों ने इसके लिए एक नया शब्द दिया है एक्स्ट्रा जयुडिशियल किलिंग ।
उनका कहना है कि सोहराबुद्दीन को जिस मुठेड़ में मार गिराया गया है, वह मुठेड़ गैर कानूनी
शक्ल ले चुकी है। इसे इस देश का दुर्ाग्य कहना चाहिए कि आतंकवादियों से लड़ रही
पुलिस और सेना लड़ना तो बखूबी जानती है, लेकिन मुठेड़ की प्रक्रिया को नहीं जानती। वैसे ी
आतंकवादी के हाथ में बंदूक और बम होता है। आईपीसी और सीआरपीसी की प्रतियाँ नहीं ।
इसलिए पुलिस और सेना के लिए गोली और बम की प्रक्रिया को जानना ज्यादा जरूरी होता
है और पुलिस के इसी ज्ञान से सोहराबुद्दीन जैसे आतंकवादी मारे जाते हैं।
सोहराबुद्दीन और इशरतजहां जैसी आतंकवादी मारे जाते हैं। लेकिन आखिर कानून तो कानून
हैऔर यह इसी कानून की करामात है कि सोहराबुद्दीन को मारने वाली पुलिस जेल में है
और हसीना पारकर जेल से बाहर हैऔर निकट विष्य में उसके जेल में जाने की कोई संावना
नहीं है। दाऊद अब्राहम तो शाही मेहमान है। शाही मेहमानों के लिए दस्तरखान बिछाएं
जाते हैं। तिहाड़ जेल तो सेना और पुलिस के उन अधिकारियों के लिए है जो आतंकवादियों
से लड़ रहे हैं । वैसे ी अपने मनमोहन सिंह कश्मीर के अलागवादियों को दिल्ली में
बुलाकर उनकी खातिर तब्बजों ी करते हैं और उनसे सियासी गुफ्तगू ी । शायद इसी
गुफ्तगू का नतीजा है कि संसद पर आक्रमण करने वाला अफजल गुरु सारी व्यवस्था पर
ठहाके लगा रहा है। इस देश की जनता को यह तय करना है कि राष्ट्र हित में
सोहराबुद्दीन का मरना जरूरी है या हसीना
पारकर का ाग जाना ? पूरी न्यायिक प्रक्रिया को अपनाते हुए मौलाना मसूद अजहर को जेल में डालना और
वहां से उसे सम्मान पूर्वक कंधार में ले जाकर छोड़ देना राष्ट्र हित में है या फिर
इश्रतजहां को मार देना राष्ट्र हित में है । अफजल गुरु को जेल में रखना और इस बात
का इंतजार करना कि कल कब किसी का अपहरण हो जाए और अफजल गुरु को ससम्मान छोड़ने के
लिए हमारे विदेश मंत्री को पाकिस्तान जाना पड़े राष्ट्र हित में है या फिर मोहम्मद
इकबाल को कुपवाड़ा में पुलिस द्वारा ढेर कर दिया जानाराष्ट्रहित में है? पंजाब के पूर्व
डी.जी.पी. कंवर पाल सिंह गिल ने ठीक ही कहा है कि आतंकवाद के माध्यम से पाकिस्तान ारत
से छù युद्ध
कर रहा हैऔर युद्ध के दौरान आईपीसी कारगर नहीं होती । युद्ध में गोली का जवाब गोली
से दिया जाता है। यह बात वे ी जानते है जो आतंकवादियों के मानवाधिकारों का प्रश्न
उठाते हुए नहीं थकते। लेकिन वे यह ी बखूबी जानते हैं कि इस युद्ध में वे किसके
साथ है? परंतु
देश की जनता इतनी मूर्ख नहीं है वह इस खेमे बंदी में प्रत्येक पक्ष को अच्छी तरह
पहचान न सके । सोहराबुद्दीन तो एक मोहरा है। इस पूरी लड़ाई में निशाना कहीं और
साधा जा रहा है। गुजरात सिंध का पड़ोसी राज्य हैऔर इतिहास गवाह है कि सिंध के राजा
दाहिर को मुहम्मद बिन कासिम ने प्रासाद पर फहरा रहे प्रतीक को नष्ट करके पराजित कर
दिया था। इस बार ी इस नई लड़ाई में प्रतीक को ही गिराए जाने की कोशिश की जा रही
है। लेकिन ारतीयों को हर हालत में उस प्रतीक को बचाना है क्योंकि पूरी लड़ाई ही
प्रतीकों के माध्यम से लड़ी जा रही है।
(हिन्दुस्थान समाचार)
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