डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
दिनांक: 1 अगस्त 2007
स्थान: नई दिल्ली
गुजरात के विधानसा चुनावों को कुल जमा छः महीने बचे हैं। इसलिए आक्रमणों का
सारा जोर नरेन्द्र मोदी पर ही रहेगा। सोनिया गांधी ने आॅपरेशन इंडिया का मोटा-मोटा
सारा काम लगग निपटा लिया है। गांधी नेहरू परिवार में सोनिया के सिवा अब और कोई
नहीं बचा है। मेनका ी इस परिवार से जुड़ी थी लेकिन समय रहते उसे बाहर का दरवाजा
दिखा दिया गया। इसलिए सारी की सारी विरासत सोनिया गांधी के ही हाथों में है।
कांग्रेस की बागडोर कांग्रेसियों ने खुद ही सोनिया गांधी के हवाले कर दी थी। जिस
प्रकार जाॅर्ज पंचम के दरबार में हाजिरी देने के लिए दिल्ली में देश र के राजा
एकत्रित हुए थे उसी तरह राजीव गांधी की रहस्यमयी मौत के बाद कांग्रेसी क्षत्रप
सोनिया के दरबार में दूर-दूर से चलकर आ पहुंचे थे। मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी ने
प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाने के बाद सŸाा के समस्त सूत्र अत्यंत चालाकी
से संाल लिए। देश के जाने माने अर्थशाóी और की इंदिरा गांधी के आर्थिक सलाहकार रह चुके
प्रो. अशोक मित्रा की मानें तो मनमोहन सिंह की नियुक्ति अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका
ने ही की है। इससे यह ी पता चल जाता है कि सŸाा के असील सूत्र कहां है?
राष्ट्रपति वन
बीच-बीच में सोनिया के साम्राज्य में कांटे की तरह चुता था। कलाम का कोई रोसा
नहीं था। वे देश के हितों के प्रश्न पर अपनी बेबाक राय जाहिर करने के लिए मजबूर हो
जाते थे। सोनिया और उसके मित्रों ने राष्ट्रपति वन का आॅपरेशन ी सफलतापूर्वक कर
दिया है। प्रतिा पाटिल रायसीना हिल्ज़ की मालिक हो गई हैं। राष्ट्रपति बनने पर की
ज्ञान जैल सिंह ने कहा था कि ‘इंदिरा गांधी मुझे झाडू लगाने के लिए कहे तो मैं वह ी करने
के लिए तैयार हूँ।’ प्रतिा पाटिल को शायद ऐसा कहने की ी जरूरत नहीं है। ारत और श्रीलंका के बीच
जिस तेजी और हड़बड़ी से ऐतिहासिक रामसेतु को तोड़ने का प्रयास सोनिया गांधी और
मनमोहन सिंह कर रहे हैं उससे ारतीयों की ावना को ठेस पहुंचती है-यह इस पूरे
प्रकरण का एक पहलू है।असली मुद्दा तो यह है कि रामसेतु के टूटने पर ारत और
श्रीलंका के बीच का जल क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय बन जाएगा और अमेरिका की मार हमारी
जल सीमा तक हो जाएगी । बाकी जहां तक अमेरिका का अपना प्रश्न है अमेरिका ने पिछले
दिनों स्पष्ट कर ही दिया है कि वह पाकिस्तान में सैनिक कार्यवाही ी कर सकता है।
क्योंकि बकौल अमेरिका ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में ही छिपा हुआ है। इसका निर्णय ी
अमेरिका खुद ही करता है कि लादेन किस वक्त कहां होना चाहिए। इसलिए हमला करने के
लिए देश और स्थान ी अमेरिका खुद ही चुनता है। अमेरिका पाकिस्तान पर हमला करता है
या नहीं करता, यह हमारी चिंता का विषय नहीं है। चिंता इस बात की है कि यदि अमेरिका पाकिस्तान
में आ जाता है तो उसका अधिकार क्षेत्र बाघा सीमा तक हो जाएगा। खूबसूरती यह है कि
अमेरिका अपनी योजना का खुलासा ी करता जा रहा है और कई समझौतों के माध्यम से,
जिसमें 123 परमाणु परीक्षा केवल एक
समझौता है, ारत के ीतर अपनी दखलअंदाजी ी बढ़ाता जा रहा है। किस्सा कोताह यह है कि सोनिया
गांधी का आॅपरेशन इंडिया मुकम्मल हो गया है। अब उसके रास्ते का केवल एक ही कांटा
है। वैसे कायदे से दो कांटे होने चाहिए थे। एक राष्ट्रवादी शक्तियों का मजमुआ संघ
परिवार और दूसरा साम्यवादी शक्तियों का मजमुआ साम्यवादी परिवार। लेकिन इस मामले
में सोनिया गांधी और अमेरिका दोनों की ही दाद देनी होगी कि जो साम्यवादी परिवार
घोषित वैचारिक आधार के कारण अमेरिका रास्ते का कांटा होना चाहिए था, वह सोनिया गांधी और
अमेरिका की पालकी का कहार बन गया है।
दूसरा कांटा बचा संघ परिवार, यदि ाजपा को उसकी राजनीतिक अिव्यक्ति मान लिया जाए तो ाजपा
इस आॅपरेशन के रास्ते का सबसे बड़ा कांटा माना जाएगा। ाजपा सरकार ने अपने शुरू के
13 महीने
के शासनकाल में परमाणु धमाका करके अमेरिका को चैंका दिया था। शायद अमेरिका को ती
लगने लगा होगा कि ारत की सŸाा के सूत्र उसके हाथों से निकल गए है। ाजपा का विरोध तो
शायद अब ी बरकरार है परंतु उसकी धार कुंठित हो चुकी है। इसलिए नहीं कि वैचारिक
संस्खलन हुआ है बल्कि इसलिए कि ाजपा देश की सŸाा में लंबे अरसे तक स्थाई रूप
से बने रहने में सफल नहीं हुई है। राज्यों में उसकी सरकारों का आना जाना शुरू हो
गया है। जिस राजनैतिक दल का आना जाना 4-5 साल के ीतर बदलता रहे वह स्थाई रूप से कुछ मौलिक
परिवर्तन कर पाएगा, इसमें संदेह होने लगता है। 1977 के बाद से ाजपा वििन्न राज्यों में जिस तेजी से सŸाा संालती है, अगले पाँच सालों में उसी
तेजी से बाहर हो जाती है। इसलिए ारत को नियंत्रित करने का सपना देख रही विदेशी
शक्तियों को प्रारं में ाजपा से जितना य था वह धीरे-धीरे मिटता गया। नरेन्द्र
मोदी ने इस पूरी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण मोड़ उपस्थित किया है। नरेन्द्र मोदी
निरंतर दो बार विधानसा चुनावों में गुजरात में ाजपा की सरकार बना चुके हैं। अब
यदि वे तीसरी बार ी चुनाव जीत जाते हैं तो सोनिया और अमेरिका दोनों को ही स्पष्ट
हो जाएगा कि ाजपा का राष्ट्रवादी प्रयोग स्थाई रूप से जड़ जमा चुका है और यदि यह
ऐसा ही चलता रहा तो पूरे ारत में एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में खड़ा हो जाएगा।
इसलिए आने वाले चुनावों में सोनिया और अमेरिका दोनों के लिए नरेन्द्र मोदी को
उखाड़ना बहुत जरूरी है। ऐसा ही एक प्रयोग अमेरिका ने स्वतंत्रता के शुरूआती दौर
में ारत के केरल राज्य में किया था। कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को गिराने के लिए
अमेरिका ने वहां रूपया ी खर्च किया और हर हथकंडा इस्तेमाल किया। वैसे ी
लोकतांत्रिक देशों में अमेरिका सरकारों को कैसे बनाता और गिराता है इसकी एक बानगी
सीआईके के डीक्लासीफाई हो चुके दस्तावेजों
को देखने से पता चल जाता है। 1957 के कम्युनिस्ट अमेरिका का विरोध कर रहे थे, लेकिन 2007 तक आते-आते वे उसकी और
सोनिया की पालकी में कहार बन गए हैं। वैसे ी साम्यवादी आंदोलन दुनिया र से खत्म
हो चुका है। इसलिए ारत के इन साम्यवादी समूहों पर क्रोध नहीं उनके विद्रूप को
देखकर दया और हंसी आती है। साम्यवादी देश के कोने में पड़े हैं और उनके ारत में
फैलने की अब लगग तमाम संावनाएं चुक गई हैं। वैसे ी अमेरिका अब साम्यवादियों को
अपने विरोधी के रूप में नहीं बल्कि सहायक मित्र के रूप में देखता है। ाजपा का
मामला ऐसा नहीं है। वह इस देश में एक केन्द्रीय शक्ति बनकर उरी है। गुजरात एक
प्रकार से ारत की ावी राजनीति का प्रशिक्षण स्थल बन गया है। इसलिए नरेन्द्र मोदी को उखाड़ने के लिए इतालवी
और अमेरिकी तर्कश में जितने तीर होंगे वे इन छः महीनों में निरंतर चलेंगे। अमेरिका
सरकार ने अी पिछले दिनों एक रपट जारी की है। जिससे ारत में अमेरिका की रणनीति का
खुलासा होता है और यह ी पता चलता है कि अमेरिका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ारत
में कितनी दखलअंदाजी करता है। रपट में स्पष्ट कहा गया है कि नरेन्द्र मोदी को वीजा
इसलिए नहीं दिया गया था क्योंकि वे ारत में धर्मांतरण का विरोध कर रहे थे। इतना
ही नहीं यह ी कहा गया है कि अमेरिकी कन्सुलेट के अधिकारी मुंबई में उद्योगपतियों,
मीडिया के लोगों
और अनेक गैर सरकारी संस्थाओं के लोगों से गुजरात के दंगों के परिणामों पर बातचीत
करने के लिए मिले थे। ारत में अमेरिकी दूतावास के लोग मदरसों के संचालकों से ी
मिले। अमेरिका सरकार ने स्पष्ट कहा है कि अी तक स्कूलों में से राष्ट्रीय ावनाओं
वाली पाठ्य-पुस्तकों को हटाया नहीं गया हैं । रपट में इस बात पर चिंता की गई है कि
अी ी ारत के कुछ राज्यों में ारतीय जनता पार्टी का राज है। बीजेपी धारा 370 का विरोध करती है। एक
समान सिविल कोर्ड की वकालत करती है और सबसे बढ़कर बीजेपी उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ का हिस्सा है जो धर्मांतरण का विरोध करता है और ईसाइयों और मुसलमानों से ेदाव
करता है। रपट में इस बात पर ी दुःख प्रकट किया गया है कि अनेक राज्य धर्मांतरण
विरोधी कानून बना रहे हैं और आशा की जा रही है कि सरकार इन्हें रोकेगी। यह रपट
अपने आप में आंखें खोलने वाली है। जाहिर है कि अमेरिका के निशाने पर संघ परिवार है
क्योंकि उसे लगता है कि संघ परिवार ारत के राष्ट्रीय हितों से जुड़ा हुआ आंदोलन
है। यदि इस लड़ाई में नरेन्द्र मोदी का स्तं गिरा दिया जाए तो जोशुआ प्रोजेक्ट-2 को पूरा होते कितनी देर
लगेगी? यहां
यह बताना रूचिकर रहेगा कि यह प्रोजेक्ट ारत को ईसाई बनाने के लिए चलाया गया
अमेरिकी प्रोजेक्ट है।
अमेरिका इस पूरी लड़ाई में ारत के खिलाफ पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है। वह
केवल इस्तेमाल ही नहीं कर रहा बल्कि ारत सरकार से ी यह आशा कर रहा है कि वह
पाकिस्तान को आतंकवादी देश न माने बल्कि आतंकवाद के खिलाफ हो रही लड़ाई में सहायक
देश के रूप में अपना ाई समझे। यह कहने कि सोनिया के नेतृत्व में ारत सरकार
अमेरिका की इस परीक्षा में खरी उतर रही है।
ारत सरकार के तथाकथित सुरक्षा सलाहकार के. नारायणन
ने स्पष्ट कर दिया है कि ारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई पाकिस्तान के साथ मिलकर
लड़ेगा। लाल मस्जिद प्रकरण के बाद तो मुशर्रफ का चालीसा पढ़ने वालों की हरकतें
देखकर ारत के ाग्य के बारे में सोचकर कंपकंपी होती है। राॅ के पूर्व अधिकारी रमन
ने अपनी प्रकाशित होने वाली किताब में खुलासा किया है कि नरसिम्हाराव के काल में ी
अमेरिका ने दबाव डाला था कि ारत को पाकिस्तान के
साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ना चाहिए। लेकिन नरसिम्हा राव ने इंकार कर
दिया था। मनमोहन सिंह इंकार नहीं कर रहे हैं। वे सब कुछ पाकिस्तान और अमेरिका के
साथ मिलकर ही करना चाहते हैं। अमेरिका की इस पूरी साजिश में नरेन्द्र मोदी रूकावट
है। यदि अमेरिका नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जंग छेड़ता है तो जाहिर है सोनिया गांधी
और मनमोहन सिंह को इसमें अमेरिका का ही साथ देना है। सोनिया गांधी की दृष्टि में
परवेज मुशर्रफ ारत का मित्र है और नरेन्द्र मोदी दुश्मन। इस लड़ाई में जहां तक
प्रचार का प्रश्न है अमेरिका उसमें पूरी मुस्तैदी से जुड़ा है अमेरिका के अनेक
अधिकारिक प्रकाशनों में नरेन्द्र मोदी को ारत में चर्च के प्रसार के लिए बहुत
बड़ा कांटा माना गया है। जहां तक नरेन्द्र मोदी के अखाड़े का प्रश्न है सीआईए ने
अपनी अधिकारिक वेबसाइट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और ारतीय जनता पार्टी को
हिन्दू मिलिटेन्ट आॅर्गनाइजेशन घोषित कर रखा है। अमेरिका यह ी कहता है कि जहां ी
मिलिटेन्ट तत्व होंगे वहां आक्रमण करने का उसे पूरा अधिकार है । वह इसी तर्क से
अफगानिस्तान में घुसा था, इसी तर्क से इराक में घुसा था और इसी तर्क से ईरान में
घुसने की घोषणा कर रहा है। ईरान के बाद ारत की बारी ी आ सकती है। मनमोहन सिंह और
सोनिया गांधी दोनों ही अमेरिका की इस रणनीति के हिस्सेदार बनने को तैयार दिखाई
देते हैं, क्योंकि वे पहले ही स्वीकार कर चुके हैं कि मिलिटेन्ट ताकतों से लड़ने का
विश्वव्यापी अधिकार अमेरिका के पास है।
मीडिया इस पूरी कंपेन में अपना धर्म बखूबी निाएगा ही। बने बनाए निष्कर्ष और
अमेरिकी हितों को ध्यान में रखकर किए गए विश्लेषण मीडिया को परोसे जाएंगे और वह
पूरी ईमानदारी से प्रयास करेगा कि दर्शक या पाठक उसकी जुगाली करते रहें। इस पृष्ठूमि
में हमें गुजरात ाजपा में तथाकथित विद्रोह का विश्लेषण करना होगा। ाजपा के ीतर
व्यक्तिगत उचित अनुचित कारणों से दुःखी आत्माओं का रणनीति के तौर पर प्रयोग करने
का अियान जो कांग्रेस ने शुरू किया है, वह प्रकारांतर से अमेरिका की उसी लंबी रणनीति का
हिस्सा है। विदेशी शक्तियों को मोहरे इस देश में पहले ी उपलब्ध होते रहे हैं और
आज ी उपलब्ध हो रहे हैं। गुजरात में जो कुछ हो रहा है, वह केवल हमारा इम्तिहान है कि
क्या हमने इतने सालों की गुलामी से कुछ सीखा है या अी ी आपसी लड़ाईयों में
विदेशी शक्तियों को निमंत्रित करने की परंपरा पर चले हुए हैं।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)
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