- डा. कुलदीप चंद
अग्निहोत्री
दिनांक: 18 अक्टूबर 2007
स्थान: नई दिल्ली
सीपीएम के महासचिव प्रकाश करात ने
सोनिया गांधी को एक महत्वपूर्ण प्रश्न किया है । करात के अनुसार यदि ारतीय जनता
पार्टी एनडीए सरकार को बचाने के लिए अपना हिन्दुत्व का मुद्दा छोड सकती है तो
सोनिया गांधी यूपीए सरकार को बचाने के लिए अमेरिका के साथ कि या गया परमाणु समझौता
क्यों नहीं छोड सकती यह प्रश्न अपने आप
में बहुत महत्वपूर्ण है । इससे ी महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रकाश करात इसका उŸार जानते हुए ी अनजान
बनने का नाटक कर रहे हैं । लेकिन इस बात के लिए तो करात को धन्यवाद दिया ही जा
सकता है कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि एनडीए सरकार में ारतीय
जनता पार्टी का कोई छुपा हुआ एजेंडा नहीं था । आज तक करात की टोली यह आरोप लगाती
रही है कि ारतीय जनता पार्टी एऩडीए की
ढाल के पीछे अपना हिन्दुत्व का एजेंडा लागू कर रही है और एनड ीए सरकार
क्यों टूटनी चाहिेए इसका सबसे बडा कारण
प्रकाश करात के साथी ाजपा के इसी हिन्दू एजेंडा को बताते थे । जब प्रकाश करात एंड
कंपनी ने सोनिया गांधी की सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की
तब ी उन्होंने इसका मुख्य कारण यही बताया था कि यदि सोनिया गांधी की सरकार न बनी
तो एनडीए की सरकार बन जाएगी जिसका अर्थ होगा ाजपा का छिपा हुआ हिन्दुत्व एजेंडा ।
अब प्रकाश करात स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि ाजपा ने एनडीए राज में अपना
हिन्दुत्व का एजेंडा स्थगित कर दिया था। तब एक प्रश्न करात से ही पूछा जा सकता है
यदि ऐसा उन्हें पता था तो उनकी पार्टी ने सोनिया गांधी की सरकार बनाने में सहायता
क्यों की ? यदि प्रकाश करात अपने दिल के ीतर झांक कर ईंमानदारी से इस प्रश्न का उŸार दे देते हैं तो
उन्हें उस प्रश्न का उŸार ी अपने आप ही मिल जाएगा जो वे इस समय़ सोनिया गांधी से
कर रहे हैं । इस देश का सबसे बडा दुर्ाग्य यह है कि सीपीएम के लोगों ने सोनिया
गांधी की इतिहास के उस मोड पर सहायता की जब अमेरिका सोनिया गांधी को ारत में
स्थापित करने की अपनी महत्वपूर्ण रणनीति पर काम कर रहा था । ऐसा एक अवसर पहले ी
आया था । जब सोनिया गांधी और उसके पीछे छिपे हुए एजेंडा पर काम कर रहे रणनीतिकारों
ने 1999
में यह कोशिश की थी कि सोनिया गांधी का इस देश पर कब्जा हो जाए , इसके लिए सोनिया गांधी
इतना आगे बढ गई कि उन्होंने कैमरों के
सामने खडे हो कर बिना कि सी संकोच के झूठ बोल दिया कि उन्हें प्रधानमंत्री बनने के लिए लोक सा में
बांछित बहुमत हासिल है । देश को इस बात के लिए मुलायम सिंह का आारी होना पडेगा कि
उन्होेंने अत्यंत साहसपूर्वक देश पर कब्जा करने के इस षडयंत्र को असफल कर दिया ।
यदि मुलायम सिंह ऐसा न करते तो शायद उसी वक्त देश के सŸाा सूत्र पर सोनिया गांधी और
उसके छिपे हुए रणनीतिकारों का कब्जा हो जाता । तब शायद सोनिया गांधी की सरकार उसी
समय सीटीबीटी तथा एनपीटी पर हस्ताक्षर कर देती । तब श़ायद अमेरिका को आगे की लंबी
रणनीति न बनानी पडती । परंतु मुलायम सिंह ने अमेरिका के सारे खेल को अपनी जमीनी
बुद्धिमता से पराजित किया ।
अमेरिका ने उसी समय ारत के लिए अपनी रणनीति को बदल लिया था और यह ी निर्णय
कर लिया लगता है कि वह ारत को किसी न किसी ढंग से अपना उपनिवेश बना कर ही छोडेगा
। ऐसा अवसर 2004 में पुनः उपस्थित हुआ ़। इस वक्त मुलायम सिंह पर किसी ने दाँव नहीं लगाया और
सीधा सीधा सोनिया गांधी ने सीपीएम से ही बात की । सीपीएम ने ी सोनिया गांधी को
इतनी सहजता से समर्थन दिया कि लगता है कि परदे के पीछे काफी समय से दोनों की खिचडी
पक रही थी । अब यह खिचडी इसी परमाणु समझैते के रुप में बाहर आयी है । देश जानता है
कि इस परमाणु समझौते से ारत को अमेरिका
का बंधक बनाया जा रहा है । अप्रत्यक्ष रुप से अब अमेरिका ही ारत की नीतियां तय
करेगा । ारत को किस देश से दोस्ती रखनी है और किस देश से नहीं इसका फैसला ी
अमेरिका ही करेगा । संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी प्रस्ताव पर ारत को किस पक्ष
में वोट देना है और किसके विरोेध में इसका फैसला ी अमेरिका ही करेगा । अमेरिका ने
इतनी रुचि लेकर जिस उद्देश्य से ारत वर्ष के लिए सोनिया गांधी को मजबूत किया है
उसकी पूर्ति में एक हिस्सा सीपीएम का ी बनता है । अब इस बात का उŸार को प्रकाश करात को ही
देना होगा कि यह ूमिका उन्होंने जान बूझ कर निाई या फिर अनजाने में । रहा प्रश्न यह कि सोनिया
गांधी सरकार बचाने के लिए परमाणु करार को
क्यों नहीं छोड देती ?़। प्रकाश करात अच्छी तरह जानते हैं कि परमाणु करार को पूरा करने के लिए ही यह
सरकार बनाई गई है ।़ इसको बनाने वालों ने जो जिम्मेदारी इस सरकार पर सौंपी थी यह
सरकार उसे पूरा करने में पूरी इमानदारी से जुटी है । प्रकाश करात इतने ोले नहीं
है कि वे अमेरिका की मंशा को नहीं जानते । इसके विपरीत प्रकाश करात और उनकी पार्टी
का दावा तो यह है कि अमेरिका की मंशा को सबसे ज्यादा वही जानते हैं । इसलिए इस देश
को अमेरिका के आगे गिरबी रखने की जितनी जिम्मेदारी सोनिया गांधी पर आती है उससे
कहीं ज्यादा सीपीएम पर आती है जिसने उस ऐतिहासिक क्षण में अमेरिका की रणनीति में ागीदारी
निाई । अलबŸाा इतना जरुर है कि आने वाले चुनावों में करात और उनके साथी अपने पापों को
बुरके में छुपाएंगे और लोगों को धोखा देने के लिए अमेरिका को गालियां देते रहेंगे
। रहा प्रश्न सोनिया गांधी का , उन्हें यह पाखंड करने की जरुरत ी नहीं है क्योंकि परमाणु
करार के मुद्दे में कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका के हितों में ही ारत
क ा हित है ।
धर्म परिवर्तन को रोकने वाले बिलों की शामत -
छŸाीसगढ
विधानसा ने पिछले दिनों धन, बल, य या धोखे से
धर्मपरिवर्तन को रोकने वाला एक बिल विधानसा में पारित किया था । बिल पारित होने
के बाद हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल के पास गया । लेकिन सी को आश्चर्य हुआ जब राज्य पाल ने उस पर हस्ताक्षर करने के
बजाए उस पर ारत सरकार के विधि विशेषज्ञों की राय मांग ली । इससे पहले ऐसा किस्सा
राजस्थान में ी हो चुका है । ऐसा ही बिल राजस्थान विधानसा ने पारित कि या था ।
लेकिन राज्यपाल ने उस पर अपनी आपŸिायां लगा कर उसे वापस विधानसा को ेज दिया था । विधानसा
ने उसे पुनः पारित कर हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल के पास ेजा । राज्यपाल ने उस पर
हस्ताक्षर करने के बजाए उसे राष्ट्पति की राय के लिए ेज दिया । राजस्थान की उस
समय की राज्यपाल प्रतिा पाटिल अब खुद ही राष्ट्रपति बन गई हैं । इसलिए उनकी राय
क्या है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है । ऐसा ही किस्सा गुजरात में हुआ है । यहां की
विधानसा ने गलत तरीके से किये गये धर्मपरिवर्तन पर रोक लगाने के लिए गुजरात अधिनियम में कुछ
संशोधन पारित किये थे। राज्यपाल ने उस अधिमियम पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया
। सी जानते हैं कि पिछले 10-15 सालों में ईसाई
मिशनरियों व गैरसरकारी संस्थाओं को अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों से करोडों रुपये
मिल रहे हैं और बडी तेजी से धर्म परिवर्तन हुआ है । ऐसा समय में राज्यपालों का यह
व्यवहार संदेह उत्पन्न करता है । अंदर के स्रोतों का कहना है कि जबसे पोप ने ारत
के राजदूत को धर्म परिवर्तन रोकने के लिए वििन्न विधान साओं में पारित किये जा
रहे बिलों को लेकर सार्वजनिक रुप से फटकार लगाई है तब से सोनिया गांधी ने संकेतों
में ही राज्यपालों को समझा दिया है । या फिर राज्यपाल ही इतने होशियार हो गये हैं
कि वे बिना कुछ कहे सुने सब समझ गये हैं ।
और अंत में -
देश र में रामलीलाओं का जोर चलने
वाला है और बेचारे कांग्रेसी संकट में फंसे हुए हैं । न रामलीला में जाते
बनता है और न बिना जाए रहा जाता है । दिल्ली की कुछ रामलीलाओं में तो पूजा के लिए
राम सेतु की रामशिलाएं ी रखी जाने वाली
हैं । रामशिला का नाम ही सुन कर
कांग्रेसी ऐसे ागते हैं मानों सांप पर पैर पड गया हो । पता चला है कि
कांग्रेस के ीतर की लडाई ी इस संकट को गहरा कर रही है । दिल्ली क्योंकि सŸाा का केन्द्र है इसलिए
उसका संकट और ी गहरा है । आज ज्यों ही रामपूजन शुरु हुआ दिल्ली के एक बडे कांग्रेसी नेता ी उसमें पहुंच गये ।
विरोधी ने तुरंत सोनिया गांधी के खेमे में खबर कर दी । इधर रामपूजन करने वाले
कांग्रेसी नेता ने ी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं । इस चुगली का शक तो उन्हें
पहले ही था । वे ी तुरंत 10 जनपथ पहुंचे और बताया कि रामपूजन बगैरा कुछ नहीं था ।
बच्चे मेले में मिठाई की जिद्द कर रहे थे । इसलिए उन्हें लेकर चला गया था । जब तक
रामलीलाएं चलती रहेगी तब तक इस प्रकार के कांग्रेसी लीला ी होती ही रहेंगी । यही
मानना चाहिए ।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)
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