Tuesday, 14 January 2014

सीपीएम का साम्प्रदायिक चेहरा बेनकाब


                                                       डा0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री


सीपीएम का व्यक्तित्व शुरू से ही दोहरा रहा है । यह सीपीएम का दोष नहीं है बल्कि उसके हार्ड वेयर का ीतरी दोष ही है । सीपीएम स्वंय का प्रगतिशील और प्रगतिवादी कहता है । उसका मानना है कि प्रगतिवाद के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा सम्प्रदाय अथवा मजहब है । इसलिए जहाँ ी साम्यवादियों की सŸाा आती है तो वे सबसे पहले वहाँ के वििन्न मजहबों अथवा सम्प्रदायों को नष्ट करने का प्रयास करते हैं । माक्र्सवादी ऐसा स्वीकार करते है कि मजहब अथवा सम्प्रदाय के आधार पर व्यक्ति की जो पहचान बनती है  वह प्रगति के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा होती है । इसके विपरीत व्यक्ति की पहचान उसके वर्ग के आधार पर होनी चाहिए । वर्ग की यह पहचान संघर्ष की धार को तेज करती है जिससे प्रगतिवादी समाज की स्थापना होती है ।

ारत के माक्र्सवादी ी मोटे तौर पर इस सिद्वांत को स्वीकार करते हैं  और उन्हें ऐसा करने का पूरा अधिकार ी है । ारत की मिट्टी की यही खूबी है कि यहाँ वििन्न विचारधाराओं, और दर्शन शाóों को विकसित होने का पूरा अधिकार है । परन्तु सीपीएम की यह दिक्कत है  िकइस वैचारिक आधार पर वे इस देङ्घा की सŸाा हासिल नहीं कर सकते । यही कारण है कि साम्यवादी आंदोलन सिकुड़ता सिकुड़ता अन्ततः पङ्घिचमी बंगाल और केरल तक सीमित हो गया है । पङ्घिचमी बंगाल में ी कामरेडों के ्रष्टाचार और जनविरोधी आचरण के कारण, उनका दुर्ग हिलने लगा है । केरल में तो पहले ही वे पाॅच साल के अन्तराल के बाद सŸाा में आ पाते हैं । सŸाा प्राप्त करने की हड़बड़ी में सीपीएम ने अब विशुद्व अवसरवादी रास्ता अख्तियार करने का निर्णय कर लिया लगता है । यही कारण है कि सीपीएम लोकसा के होने वाले चुनावों में केरल में मुस्लिम आतंकवादी संस्थाओं के साथ चुनाव समझौता कर रही है । सीपीएम ी जानती है कि यदि कट्रतावादी मुस्लिम संस्थाओं  और आतंकवादी मुस्लिम संगठनों की मदद ली जाती है तो शायद कुछ सीटें तो पार्टी की झोली में आ जायेगी परन्तु उससे देशा को बहुत नुकसान होगा । साम्प्रदायिकता के जहर से राष्ट्ीयता खंडित होती है- ऐसा कामरेड ली ांति जानते हैं  । परन्तु लगता है दिल्ली की सŸाा में अपनी ागीदारी सुनिङ्घिचत करने की सीपीएम को इतनी व्याकुलता है कि वह साम्प्रदायिकता के इस अजगर को साथ लेने से ी गुरेज नहीं कर रही ।

प्रसंग केरल का है । केरल में सीपीएम ने अबदुल निसार मदनी की पीपुल्स डेमोक्रेटिक  पार्टी से चुनावी समझौता किया है । मदनी कोयम्बटुर बम बलास्ट के मुख्य अियुक्त थे । उनके लश्कर और इंडियन मुजाहदीन से गहरे रिङ्घते हैं । वैचारिक स्तर पर उनकी पार्टी मुसलमानों को अलग राष्ट् के रूप में मानती है और वे स्वंय को ारत का विजेता मानने का स्वप्न पालते हैं । मदनी और उनकी पार्टी मानती  है कि मुसलमानों ने ारत को जीता था और इस पर अपना राज्य स्थापित किया था । मुसलमानों से अंग्रेजों ने ारत का राज्य छीन लिया लेकिन दो सौ साल बाद वे यहाँ से जाते समय राज्य ारतीयों को सौंप कर चले गये, मुसलमानों को नहीं । मदनी और उनके अनुयायी अब यह राज्य आतंक और शó बल से प्राप्त करना चाहते हैं । यह अलग बात है कि मदनी और उन जैसे दूसरे लोग ारत पर आक्रमणकारी मुसलमानों की सन्तान नहीं हैं बल्कि वे ारतीयों में से ही परिवर्तित हुए हैं । परन्तु मदनी अपनी पहचान उन आक्रमणकारी मुस्लिम आक्रांताओं से ही जोड़ते है। सीपीएम इसी मदनी से चुनाव में समझौता कर रही है । इससे केरल का सम्पूर्ण राजनैतिक परि॰श्य साम्प्रदायिक विष से विषाक्त हो जायेगा । परन्तु कामरेड तमाम सिद्वांतों को ूल कर साम्प्रदायिकता का वर्जित सेब खाना चाहते है। यह अलग बात है कि यह सेब खाने के बाद वे ारत के स्वर्ग से बाहर धकेल दिये जायेंगे । लेकिन सŸाा के सेब के लालच ने उनकी आॅखों पर पट्टी बांध रखी है ।

ऐसा नहीं कि मदनी और उनकी पार्टी के इस सम्प्रदायिक चेहरे को सीपीएम वाले पहचान नहीं रहे । यहाँ तक कि मदनी से समझौता करने के प्रङ्घन पर सीपीएम के ही कुछ तपे तपाये और सिद्वांतवादी लोग खिन्न चिŸा हैं । केरल के माक्र्सवादी मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानन्दन इसका विरोध कर रहे हैं । उन्होंने तो यहाँ तक कहा है कि केरल सरकार मदनी के आतंकवादियों से सम्बन्धों की जाॅच ी करवा रही है । उनका मानना है कि मदनी जैसे साम्प्रदायिक आतंकवादियों से समझौते से सीपीएम की मूल पहचान समाप्त हो जायेगी और वह सŸाा लोलुप राजनैतिक दल के रूप में परिवर्तित हो जायेगी  । परन्तु जैसा की राजनीति में होता है सŸाा के लालच में जब कोई ी राजनैतिक दल अपने सिद्वांत छोड़कर बाजार में निकल आता है तो उसके लिए मर्यादा की सी सीमाएं अपने आप ही समाप्त हो जाती हैं । इसी के चलते सीपीएम ने सबसे पहले ्रष्टाचार और ्रष्टाचारियों से समझौता किया । केरल के सीपीएम के महासचिव विजय पिन्यारी कनाडा की किसी कम्पनी के साथ करोड़ों के घोटाले में संलिप्त पाये गये । प्रदेश के मुख्यमंत्री अच्युतानन्दन ने इसकी जाॅच ी करवानी चाही , लेकिन सारी पोलित ब्यूरो विजय के साथ खड़ी हो गई । शायद एक कारण यह ी रहा होगा कि विजय की जाॅच के बाद पता नहीं कितने चेहरे बेनकाब हो जायेंगे ।


्रष्टाचार से समझौता करने के बाद दूसरा पड़ाव अब्दुल निसार मदनी की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ समझौते का ही बचता था, जो सीपीएम ने पूरा कर दिखाया है । गाँव की एक कथा है कि मेरा बेटा जुआ तब खेलता है जब शराब पी लेता है । शराब ती पीता है जब मीट खा लेता है और मीट ती खाता है जब उसे वेश्यालय में जाना होता है । वैसे बेटे में कोई दोष नहीं है । लगता है कार्ल माक्र्स के इस ारतीय बेटे की यही दशाा हो रही है । माक्र्स ी सीपीएम के इस साम्प्रदायक चेहरे को देखकर कब्र में अपने बाल नोच रहे होंगे ।

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