डाॅ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल
अपनी धून के पक्के हैं इस बार उन्होंने ारत में विदेशी विश्वविद्यालयों को
स्थापित करने की जिद पकड़ी है। जाहिर है कि उनकी इस जिद के पीछे किसी ताकतवर का
हाथ ी होगा। जैसे हालात चल रहे हैं उससे संकेत मिलते हैं कि यह ताकतवर हाथ सोनिया
गांधी का हीं हो सकता है। क ांग्रेस में सोनिया से ज्यादा ताकतवर हाथ किसी का नहीं
है और बिनाक ांग्रेस के समर्थन के कपिल सिब्बल विदेशी विश्वविद्यालयों को ारत में
लाने की इतनी जिद न करते। अब जब उन्होंने
अमेरिका और इंग्लैंड के विश्व विद्यालयों को ारत में लाने की ठान ही ली है तो
जाहिर है कि उससे पहले ारत के विश्वविद्यालयों को अपंग बनाना जरूरी हैताकि यह
सिद्ध किया जा सके कि देश की उन्नति के लिए ये अपंग विश्वविद्यालय कुछ नहीं कर
सकते। देश को दिशा देने के लिए विदेशों के चुस्त-दुरुस्त विश्वविद्यालय यहां लाना
जरूरी है। कंे द्र सरकार ने पिछले दिनों देश र में 15 के लगग केंद्रीय
विश्वविद्यालय स्थापित किए हैं। उन विश्वविद्यालयों के लिए ना तो अी आधारूत
संरचना बन पाई है, न ही पाठ्यक्रम ही तैयार
हो पाया हैं और न ही अध्यापकों की नियुक्ति हुई है। लेकिन केंद्र सरकार ने
आनन-फानन में 15 कुलपतियों की नियुक्ति कर दी है और उन कुलपतियों ने अपने ई-मेल पर
हीं अनेक पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन आमंत्रित करने शुरू कर दिए हैं और अध्याापकों
की नियुक्ति कांट्रेक्ट पर की जा रही है। एक ओर तो कपिल सिब्बल इस प्रकार के आदर्श
विश्वविद्यालय खोल रहे हैं और दूसरी ओर स्वयं हीं रोना शुरू कर देते हैं कि ारतीय
विश्वविद्यालयों का स्तर काफी नीचे गिर गया है और उसकी रपाई के लिए विदेशी
विश्वविद्यालयों को आमंत्रित करना लाजमी हो चुका है। इस पूरे खेल में एक और पेंच ी
सामने आ रहा है। कपिल सिब्बल इसी आपा-धापी में ारतीय परंपरा के अनुसार शिक्षा प्रदान कर रहे
विश्वविद्यालयों को समाप्त करना चाह रहे हैं।
पिछले दिनों जिन विश्वविद्यालयों को अपने घटिया स्तर के कारण बंद करने का
नोटिस दिया गया है उसमें विश्वविख्यात गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ी है। ध्यान
रहे की यह वही विश्वविद्यालय है जिसकी स्थापना मैकाले की शिक्षा पद्धति का उŸार देने के लिए स्वामी श्रद्धानंद ने की थी, जिसकी प्रशंसा महात्मा गांधी ने स्वयं विश्वविद्यालय
में आकर की और जिसके शिक्षा माॅडल की विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए स्वयं
इंगलैंड के प्रधानमंत्री यहां आए थे। कपिल सिब्बल को यदि विश्वविद्यालयों की इतनी
ही चिंता है तो उन्हें इन विश्वविद्यालयों की गुणवŸाा
सुधारने के लिए प्रकल्प लाना चाहिए था। आज ारतीय विश्वविद्यालयों में नए
प्राध्यापकों की र्ति नहीं हो रही है। वहीं अंग्रेजों के जमाने का पुराना पाठ्यक्रम
पढ़ाया जा रहा है। सरकार इन विश्वविद्यालयों को विŸिाय
सहायता देने के लिए तैयार नहीं है। दरअसल, कपिल सिब्बल ारतीय विश्वविद्यालयों की गुणवŸाा
की चर्चा की आढ़ में विदेशी विश्वविद्यालयों को ारत में लाने का रास्ता साफ कर
रहे हैं। यदि ये मान लिया जाए कि ारतीय विश्वविद्यालयों का स्वास्थ्य ठीक नहीं है
तो क्या उसका उŸार विदेशी
विश्वविद्यालयों से देना होगा?
दरअसल, जब ारत में विदेशी
विश्वविद्यालय आ जाएंगे तो कपिल सिब्बल जैसे लोग ारतीय विश्वविद्यालयों के
स्वास्थ्य को लेकर और ी चिल्लाना शुरू कर देंगे। उनका तर्क होगा कि ारत के ये
विश्वविद्यालय विदेशी विश्वविद्यालयों से मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। इस अखाड़े
में वे उन्हें पराजित घोषित कर देंगे। और फिर या तो इन्हें बंद करने का
फरमान सुना देंगे या फिर इनको ठेके पर उन्हीं प्राइवेट कंपनियों को सौंप देंगे जो
आज ी जगह-जगह कुकुरमुŸाों की तरह प्राइवेट
विश्वविद्यालय खोलकर अपनी जीत का जश्न मना रही है।
प्रश्न यह है कि ये विदेशी विश्वविद्यालय ारत में किस प्रकार की शिक्षा
प्रदान करेंगेऔर उन्हें किस प्रकार के संस्कार देंगे। कपिल सिब्बल मैकाले के उसी
सूत्र को नंगे रूप में आगे बढ़ा रहे हैं जिस सूत्र ने ारतीय लोगांे की आत्मा को
अंग्रेजी बनाने का स्वप्न देखा था। जहां तक बात है अमेरिकी विश्वविद्यालयों पर
नियंत्रण की, तो जो सरकार 15 हजार
लोगों की हत्या कर देने वाले एक अमेरिकी एंडरसन पर नियंत्रण नही कर सकी वह इन
विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण कैसे कर पायेगी?
(नवोत्थान लेख सेवा, हिन्दुस्थान समाचार)
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