डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
दिनांक: 24 अगस्त 2007
स्थान: नई दिल्ली
आज जब हम हिन्दी पत्रकारिता की बात करते हैं तो यह जानकर आश्चर्य होता है कि
शुरूआती दौर यह ध्वज उन क्षेत्रों में लहराया गया था जिन्हें आज अहिन्दी ाषी कहा
जाता है। कोलकाता का विश्वामित्र ऐसा पहला ध्वज वाहक था। उŸार प्रदेश, बिहार और उन दिनों के
सी.पी. बरार में ी अनेक हिन्दी अखबारों की शुरूआत हुई थी। लाहौर तो हिन्दी
अखबारों का एक प्रकार से गढ बन गया था। इसका एक कारण शायद आर्यसमाज का प्राव ी
रहा होगा । परंतु इन सी अखबारों का कार्य क्षेत्र सीमित था या तो अपने प्रदेश तक
या फिर कुछ जिलों तक । अंग्रेजी में जो अखबार उन दिनों निकलनी शुरू हुई उनको
सरकारी इमदाद प्राप्त होती थी । वैसे ी यह अखबारें शासकों की ाषा में निकलती थीं
इसलिए इनका रूतबा और रूआब जरूरत से ज्यादा था। चैन्नई का हिन्दू, कोलकाता का स्टेटस मैन
मुम्बई का टाईम्स आफ इंडिया, लखनऊ का नेशनल
हेराल्ड और पायोनियर दिल्ली का हिन्दुस्तान टाईम्स और बाद में इंडियन एक्प्रेस ी।
ये सी अखबार प्राव की दृष्टि से तो शायद इतने महत्वपूर्ण नहीं थे परंतु शासको की
ाषा में होने के कारण इन अखबारों को राष्ट्रीय प्रेस का रूतबा प्रदान किया गया।
जाहिर है यदि अंग्रेजी ाषा के अखबार राष्ट्रीय हैं तो हिन्दी समेत अन्य ारतीय ाषाओं
के अखबार क्षेत्रीय ही कहलाएंगे । प्राव तो अंग्रजी अखबारों का ी कुछ कुछ
क्षेत्रों में था परंतु आखिर अंग्रेजी ाषा का पूरे हिन्दुस्तान में नाम लेने के
लिए ी अपना कोई क्षेत्र विशेष तो था नहीं। इसलिए अंग्रेजी अखबार छोटे होते हुए ी राष्ट्रीय कहलाए और हिन्दी के
अखबार बड़े होते हुए ी क्षेत्रीयता का सुख-दुख ोगते रहे।
परंतु पिछले दो दशकों में ही हिन्दी अखबारों ने प्रसार और प्राव के क्षेत्र
में जो छलांगे लगाई हैं वह आश्चर्यचकित कर
देने वाली हैं। जालंधर से प्रारं हुई
हिन्दी अखबार पंजाब केसरी पूरे उŸारी ारत में अखबार न रहकर एक आंदोलन बन गई है। जालंधर के
बाद पंजाब केसरी हरियाणा से छपने लगी उसके बाद धर्मशाला से और फिर दिल्ली से।
जहां तक पंजाब केसरी की मार का प्रश्न है उसने सीमांत राजस्थान और उŸार प्रदेश को ी अपने
शिकंजे में लिया है। दस लाख से ी ज्यादा संख्या में छपने वाला पंजाब केसरी आज
पूरे उŸारी
ारत का प्रतिनिधि बनने की स्थिति में आ गया है ।
जागरण ती उŸार प्रदेश के एक छोटे से शहर से छपता था और जाहिर है कि वह उसी में बिकता ी
था परंतु पिछले 20 सालों में जागरण सही अर्थाे में देश का राष्ट्रीय अखबार बनने की स्थिति में आ
गया है। इसके अनेकों संस्करण दिल्ली, उŸारप्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उŸाराखंड, बिहार झारखंड, पंजाब, जम्मू कश्मीर, और हिमाचल से प्रकाशित होते हैं।
यहां तक कि जागरण ने सिलीगुडी से ी अपना संस्करण प्रारं कर उŸारी बंगाल, दार्जिलिंग, कालेबुंग और सिक्किम तक
में अपनी पैठ बनाई है।
अमर उजाला जो किसी वक्त उजाला से टूटा था, उसने पंजाब तक में अपनी पैठ बनाई
। दैनिक ास्कर की कहानी पिछले कुछ सालों की कहानी है। पूरे उŸारी और पश्चिमी ारत मंे
अपनी जगह बनाता हुआ ास्कर गुजरात तक पहुंचा है। ास्कर ने एक नया प्रयोग हिन्दी ाषा
के साथ-साथ अन्य ारतीय ाषाओं में प्रकाशन शुरू कर किया है। ास्कर के गुजराती
संस्करण ने तो अूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। दैनिक ास्कर ने महाराष्ट्र की
दूसरी राजधानी नागपुर से अपना संस्करण प्रारं करके वहां के मराठी ाषा के समाचार
पत्रों को ी बिक्री में मात दे दी है।
एक ऐसा ही प्रयोग जयपुर से प्रकाशित राजस्थान पत्रिका का कहा जा सकता है,
पंजाब से पंजाब
केसरी का प्रयोग और राजस्थान से राजस्थान पत्रिका का प्रयोग ारतीय ाषाओं की पत्रिकारिता
में अपने समय का अूतपूर्व प्रयोग है। राजस्थान पत्रिका राजस्थान के प्रमुख नगरों
से एक साथ अपने संस्करण प्रकाशित करती है। लेकिन पिछले दिनों उन्होंने चेन्नई
संस्करण प्रकाशित करके दक्षिण ारत में हिन्दी के प्रयोग को लेकर चले आ रहे मिथको
को तोड़ा है। पत्रिका अहमदाबाद सूरत कोलकाता, हुबली और बैंगलूरू से ी अपने
संस्करण प्रकाशित करती है और यह सी के सी हिंदी ाषी क्षेत्र है। इंदौर से
प्रकाशित नई दुनिया मध्य ारत की सबसे बड़ा अखबार है जिसके संस्करण अनेक हिंदी ाषी
नगरों से प्रकाशित होते हैं।
यहां एक और तथ्य की ओर संकेत करना उचित रहेगा कि अहिंदी ाषी क्षेत्रों में
जिन अखबारों का सर्वाधिक प्रचलन है वे अंग्रेजी ाषा के नहीं बल्कि वहां की स्थानीय ाषा के अखबार हैं। मलयालम ाषा में
प्रकाशित मलयालम मनोरमा के आगे अंग्रेजी के सब अखबार बौने पड़ रहे हैं। तमिलनाडु
में तांथी, उडिया का समाज, गुजराती का दिव्यास्कर, गुजरात समाचार, संदेश, पंजाबी में अजीत,
बंगला के आनंद
बाजार पत्रिका और वर्तमान अंग्रेजी अखबार के विष्य को चुनौती दे रहे हैं। यहां एक
और बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उŸारप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, उŸाराखंड, छŸाीसगढ़, झारखंड इत्यादि हिन्दी ाषी राज्यों में अंग्रेजी अखबारों
की खपत हिंदी अखबारों के मुकाबले दयनीय स्थिति में है । अहिंदी ाषी क्षेत्रों की
राजधानियों यथा गुवाहाटी ुवनेश्वर, अहमदाबाद, गांतोक इत्यादि में अंग्रेजी ाषा की खपत गिने चुने
वर्गों तक सीमित है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि राजधानी में यह हालत है
तो मुफसिल नगरों में अंग्रेजी अखबारों की क्या हालत होगी? इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा
सकता है। अंग्रेजी अखबार दिल्ली, चंडीगढ़, मुम्बई आदि उŸार ारतीय नगरों के बलबूते पर खड़े हैं। इन अखबारों
को दरअसल शासकीय सहायता और संरक्षण प्राप्त है। इसलिए इन्हें शासकीय प्रतिष्ठा
प्राप्त है। ये प्रकृति में क्षेत्रिय हैं (टाइम्स आॅफ इंडिया के वििन्न संस्करण
इसके उदाहरण है।) मूल स्वाव में ी ये समाचारोन्मुखी न होकर मनोरंजन करने में ही
विश्वास करते हैं । लेकिन शासकीय व्यवस्था ने इनका नामकरण राष्ट्रीय किया हुआ है ।
जिस प्रकार अपने यहां गरीब आदमी का नाम कुबेरदास रखने की परंपरा है। जिसकी दोनों
आँखें गायब हैं वह कमलनयन है। ारतीय ाषा का मीडिया जो सचमुच राष्ट्रीय है वह
सरकारी रिकार्ड में क्षेत्रीय लिखा गया है। शायद इसलिए कि गोरे बच्चे को नजर न लग
जाए माता पिता उसका नाम कालूराम रख देते हैं । ध्यान रखना चाहिए कि इतिहास में
क्रांतियाँ कालूरामों ने की हैं। गोरे लाल गोरों के पीछे ही ागते रहे हैं।
अंग्रेजी मीडिया की नब्ज अब ी वहीं टिक-टिक कर रही है। रहा सवाल ारतीय
पत्रकारिता के विष्य का, उसका विष्य तो ारत के विष्य से ही जुड़ा हुआ है। ारत का
विष्य उज्जवल है तो ारतीय पत्रकारिता का विष्य ी उज्जवल ही होगा। यहां ारतीय
पत्रकारिता में हिंदी पत्रकारिता का समावेश ी हो जाता है।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)
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