डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री
अमेरिका से अी हाल ही में हुए आणविक करार को लेकर बहस चल रही है। कुछ
राजनैतिक दल इसके पक्ष में हैं और कुछ इसके खिलाफ हैं । सब के अपने अपने तर्क हैं
। अपनी अपनी दलीलंे हैं । मनमोहन सिह ही तरफदारी करने के लिए कांग्रेस के अनेकों
दिग्गज राजनीतिज्ञ डटे हुए हैं । यह सारी बहस समझ में आने वाली है। परंतु सोनिया
गांधी और मनमोहन सिंह को न कांग्रेस के समर्थकों पर रोसा है और न ही राजनीतिज्ञों
पर । उन्होंने इस समझौते के समर्थन के लिए अब नौकरशाही को मैदान में उतारा है ।
सरकारी बाबू मनमोहन सिंह की ढाल बनने का उपक्रम करने लगे हैं। रोनेन सेन नाम के एक
नौकरशाह हैं जिनका इस समझौते के समर्थन में एक लम्बा चैडा वक्तव्य अमेरिका की
राजधानी वाशिंगटन से प्रसारित हुआ है। ये सज्जन अमेरिका में ारत के राजदूत हैं।
यदि इनके आलेख पर इनका नाम न छपा होता तो कोई ी इसे पढ़ कर शर्त लगा सकता था कि
यह अमेरिका के विदेश मंत्री का वक्तव्य है। इस वक्तव्य में जिस निर्लज्जता और
ढीठता से इस करारनामे की वकालत की गई है और ारतीयों को गालियां निकाली गईं हैं,
वह केवल अमेरिका
का प्रतिनिधि ही कर सकता था। इतना ही नहीं जहां ारत और ारतीयों के लिए गालियों
की बौछार है वहीं अमेरिका की प्रशंसा के पुल बांध दिए गए हैं। यदि रोनेन नाम के इस
सज्जन ने करार की पक्षदारी तर्क के आधार पर ी की होती तो क्षम्य हो सकती थी परंतु
तर्क की बजाए सेन ने गलियों और बाजार की गालियों का सहारा लिया है ।
परंतु ारत के इतिहास में यह नई घटना नहीं है । पिछली सदी के पांचवे और छठे
दशक में चीन में ारत के राजदूत श्री पणिक्कर ी अपने वक्त में चीन के हितों की
ज्यादा रक्षा करते थे और ारत के हितों को ठेंगा दिखाते थे। इतना ही नहीं वे
दिल्ली द्वारा पीकिंग को ेजे गए पत्रों में चीनी हितों की रक्षा के लिए फेर बदल ी
कर देते थे। उन पर आरोप था कि ारत सरकार ने चीन को तिब्बत के बारे में जो पत्र
लिखा था उसमें इंदराज था कि तिब्बत पर चीन का अधिराज्यत्व है। पणिक्कर ने अधिराज्य
को काटकर सार्वौमिकता कर दिया था। उसकी इन्हीं हरकतों से दु,खी होकर सरदार पटेल ने
कहा था पणिक्कर ारत के नहीं बल्कि चीन के राजदूत हैं। रोनेन सेन का किस्सा ी
पणिक्कर को ही दोहराता है।
लेकिन रोनेन सेन के इस आलेख से यह बात अत्यंत स्पष्ट हो जाती है कि इस समझौते
के लिए परदे के पीछे सोनिया गांधी मनमोहन सिह और अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश
के बीच काफी लम्बे अर्से से खिचडी पक रही थी जिससे सम्पूर्ण ारत को अंधेरे में
रखा गया। रोनेन सेन को शायद इसी लिए मनमोहन सिंह की सरकार ने शुरू में ही वाशिंगटन
रवाना कर दिया था ताकि वह इस करार के लिए ूमिका तैयार कर सके। वाशिंगटन में बैठ
कर सेन ारतीयों के लिए तृतीय पुरूष का प्रयोग करता है। वह ारतीयों को मानों
ललकार रहा हो कि तुम्हंे इस समझौते की समझ ी है क्या? अमेरिका ने तुम लागों के लिए
इतना किया है और तुम लोग एहसान फरामोश हो । ाव कुछ कुछ ऐसा है मानो इस समझौते के
कारण ारतीयों को अमेरिका के पैर धो कर पीने चाहिए । रोनेन सेन का वक्तव्य ारत के
सम्मान पर कलंक ही नहीं है बल्कि उसके स्वािमान को चुनौती ी । सेन वाशिंगटन में
बैठ कर हुंकार र रहे हैं कि आखिर नई दिल्ली में यह क्या ड्रामा हो रहा है?
हमने सुना था कि
अमेरिका में जाकर ारतीय राजदूत झुकना सीख लेते हैं लेकिन अब शायद सोनिया मनमोहन
सिंह की जोड़ी ने उन्हें रेंगने का आदेश ी दे दिया है। सेन की ाषा अजीबोगरीब है।
वे मानों वाशिंगटन में बैठ कर ारत को चेतावनी दे रहे हैं कि जार्जबुश के
राष्ट्रपति रहते हुए इस समझौते का क्रियान्वयन हो जाना चाहिए। उनकी दृष्टि में
जार्ज बुश से बडा ारत का कोई मित्र नहीं है । वे कहते है कि प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह ी यही मानते है। सिंह और सेन की यह जोड़ी शायद ूल गई हैं कि अमेरिका का
राष्ट्रपति जिस देश का मित्र बन जाता है उस देश की तो रात की नींद हराम हो जानी
चाहिए। पाकिस्तान अमेरिका का मित्र देश है धीरे धीरे अमेरिका ने उसकी गर्दन ही
दबोच ली है। अमेरिका के राष्ट्रपति इराक के ी सबसे बडे मित्र थे लेकिन आज उसकी
दुर्दशा सबके सामने है।
रोनेन सेन की गाली गलौज और उसका प्रलाप यहीं नहीं रूकता। ारत में यह मांग की
जा रही है कि ारत अमेरिका परमाणु संबंधों को लेकर अमेरिका द्वारा पारित हाइड
अधिनियम पर ी पुनर्विचार होना चाहिए क्योंकि इसी अधिनियम के माध्यम से अमेरिका ारत
के हाथ पाँव बांधने की तैयारी कर रहा है। यहां पर रोनेन सेन का क्रोध देखने लायक
है। उनका कहना है कि तुम हाईड एक्ट में संशोधन की बात करते हो? इसको तो अब छुआ तक ी
नहीं जा सकता क्योंकि इस पर राष्ट्रपति बुश के हस्ताक्षर हो चुके हैं । फिर वे
चेतावनी देते हैं यदि ारत इस अधिनियम पर पुनर्विचार की कोशिश करता है तो उसकी
विश्वसनीयता शून्य डिग्री तक पहुंच जाएगी । यदि यह करारनामा लागू न हुआ तो इसके
नतीजे बहुत खतरनाक हांेंगे। इसके बाद रोनेन सेन की मानसिकता झलकती है। रोनेन सिंह
के अनुसार इस समझौते से अमेरिका में इतना उत्साह है कि अमेरिका की बडी-बडी
कम्पनियों के सी.ई.ओ हिन्दुस्तान की ओर ागे आ रहे हैं। अमेरिका के संसद के सदस्य,
विश्वविद्यालयों
के कुलपति, और तो और डेल्टा और कान्टिनेन्टल जैसी एअरलाइन हिन्दुस्तान में आ रही है। लगता
है रोनेेन सेन इन सब से सचमुच ही अिूत हैं। खुशी के मारे उनके पैर धरती पर नहीं पड
रहे । उनको ारतीयों पर गुस्सा आ रहा है । अरे ! च्यूंटी के घर नारायण आए हैं और
तुम वंदनवार सजाने की बजाए आलोचना कर रहे हो?
मनमोहन सिंह और रानेने सेन दोनों नौकर शाह रहे हैं । ारत के बारे में ब्रिटिश
परंपर में ढली इस नौकर शाही की सोच क्या है? यह रोनेन सेन के इस आलेख से
स्पष्ट हो गया है। ारत अमेरिका परमाणु करार इसी मानसिकता से उपजा हुआ करार है ।
इसलिए वह अमेरिका के हितों की रक्षा तो कर सकता है ारत के हितों की नहीं।
यदि रोनेन सेन द्वारा प्रयुक्त घटिया ाषा का ही प्रयोग करना हो तो एक आम ारतीय
की ओर से यह टिप्पणी प्रर्याप्त होगी । जार्ज पंचम के आगे दिल्ली में नाचते हुए
राजाओं के बारे में सुना था । इंग्लैण्ड की महारानी की ओर से सूबेदारों की तरह काम
करते हुए काली ारतीय नौकरशाही को
कोर्निश करते हुए देखा नहीं था, केवल सुना था । आज जार्ज बुश जुनियर के आगे ांडों
की तरह नाचते हुए रोनेन सेन को देख कर समझ आ रहा है कि ारत इतने लंबे अर्से तक
गुलाम क्यों रहा ?
पिछले दिनों उडिया ाषा के एक चैनल में लोकसा के पूर्व अध्यक्ष वयोवृद्ध
रविराय कह रहे थे कि हम आत्मसम्मान खोते जा रहे हैं और फिर गुलामी की ओर बढते जा
रहे हैं। तब विश्वास नहीं होता था। अब रोनेन सेन का आचरण देख कर सचमुच आशंका हो
रही है ।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचारद्ध
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