डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
दिनांक: 10 अगस्त 2007
स्थान: नई दिल्ली
सोनिया गांधी की सरकार और उसके मनोनीत प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने
अमेरिका के साथ जो परमाणु करार किया है वह केवल ारत के हितों के विपरीत नहीं है
बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से ारत को अमेरिका का पुच्छल्ला राष्ट्र ही बना रहा है।
अमेरिका के पड़ोस में बस रहे लातीनी देशों की जो स्थिति और हैसियत है इस करार के
बाद परमाणु क्षेत्र में लगग वही स्थिति ारत की होने वाली है । सोनिया गांधी और
मनमोहन के माध्यम से अमेरिका ने ारत से आत्मसमर्पण करवाया है और इन दोनों ने
अत्यंत निर्लज्जता से ऐसा करके ारत को शर्मसार किया है। लेकिन यह ऐसा कार्य नहीं
है जिससे किसी को आश्चर्य हो। क्यांेकि ारत में सोनिया गांधी को इस पद तक
पहुंचाने के उपरांत और बकौल अशोक मित्रा मनमोहन सिंह को ारत के मंत्रिमंडल में
फिट करवाने के बाद यह सोचना कि ये दोनों अमेरिका के हितों की रक्षा नहीं करेंगे,
दिवास्वप्न के
सिवा और कुछ नहीं होगा।
ारतीय जनता पार्टी ने इस करार का तार्किक आधार पर
विरोध किया है। इस करार के बाद ारत के लिए परमाणु परीक्षण करना मुश्किल होगा ऐसा
सरकार ी जानती है और अमेरिका ी जानता है । केवल इतना ही नहीं इससे ारत की पूरी
की पूरी विदेशी नीति ी प्रावित होगी। जो देश अमेरिका के शत्रु हैं या फिर
अमेरिका जिन्हें अपना शत्रु मानता है ारत को ी उनके साथ वैसा व्यवहार करना
पड़ेगा। ईरान के मुद्दे पर तो अमेरिका ने ारत पर अी से दबाव बनाना शुरू कर दिया
है। मनमोहन सिंह सबसे ज्यादा इस बात पर फूले नहीं समा रहे हैं कि इस समझौते से ारत
की ऊर्जा की आवश्यकता पूरी हो जाएगी। लेकिन मनमोहन सिंह यह नहीं बताते कि यदि
अमेरिका नाराज़ हो जाएगा तो ऊर्जा के स्रोत बंद होने से ारत की क्या स्थिति होगी?
इससे जुड़ा हुआ एक
और प्रश्न ी है। ारत में जल के इतने ंडार हैं कि जल विद्युत से ही ारत में
ऊर्जा की सारी मांग को पूरा किया जा सकता है। उन सस्ते साधनों को छोड़कर मनमोहन
सिंह अमेरिका के पीछे ाग रहे हैं और केवल
ऊर्जा की पूर्ति के लिए ारत के हितों की बलि चढ़ा रहे हैं। यह ठीक है कि
सोनिया गांधी की पीठ तो गोरे देश थपथपाएंगे ही क्योंकि गोरे देशों की एक बेटी ने
अकेले ही वह कर दिखाया जो अमेरिका अब तक नहीं कर सका था। लेकिन मनमोहन सिंह की पीठ
का क्या होगा?
इस मरहले पर कामरेडों का विधवा विलाप देश का मनोरंजन कर रहा है। ए.बी. वर्धन
से लेकर सीताराम येचुरी से होते हुए प्रकाश कारत और वृंदा कारत की जोड़ी सम्वेत
स्वरों में रूदन कर रही हैकि यह समझौता देश के लिए घातक है। वे सरकार को चेतावनी ी
दे रहे हैंकि इस समझौते से अमेरिका ारत के परमाणु कार्यक्रम को नियंत्रित करने की
स्थिति में पहुंच गया है। कामरेडों का गुस्सा देखने लायक है। वैसे ी लाल सलाम
कहते-कहते उनका चेहरा लाल ही रहता है। लेकिन अब की बार गुस्से से इतने लाल पीले हो
रहे हैं कि पहचान में आने मुश्किल हो रहे हैं। सीताराम येचुरी तो ारत अमेरिका
मैत्री संसदीय संघ के उपाध्यक्ष ी हैं और गाली निकालने में सबसे आगे ी हैं।
प्रधानमंत्री को लाल-लाल चेहरा करके डरा रहे हैं। अब अपने प्रधानमंत्री ी कोई ऐसे
वैसे शख्स तो हैं नहीं । तमाम उम्र अमेरिका की गलियों में और इसी लाल सेना के अंग
संग गुजारी है। इसलिए वे कामरेडों के गुस्से की असलियत को ी अच्छी तरह जानते हैं
। जब प्रधानमंत्री से कामरेडों के गुस्से के बारे में पूछा गया तो उन्होंने हंसना
ही बेहतर समझा । वैसे ी वे जानते हैं कि जब ये लाल सेना सोनिया गांधी द्वारा
बुलाए गए ब्रह्म ोज में जीमने के लिए बैठ जाएगी तो फिर तृप्त होकर नारा तो जय
संघर्ष का लगाएगी लेकिन लाल वन में जाकर एसी कमरे में सो जाएगी।
कामरेड इस छोटी सी बात को नहीं समझते कि यदि उनकी दृष्टि में यह समझौता देश के
लिए घातक है तो जिस सरकार ने इस समझौते को किया है उस सरकार की पालकी वे क्यों ढो
रहे हैं? समझौता
इस देश के लिए घातक है इसमें कोई शक नहीं है और जिस सरकार ने यह समझौता किया वह इस देश के लिए
कितनी घातक सिद्ध हो सकती है-इसका अनुमान ी लगाया जा सकता है। परंतु कामरेड इस घातक
सरकार को गिराएंगे नहीं बल्कि वे इसके हिस्सेदार ही बने रहेंगे। लेकिन देश के
लोगों को कैसे रमाया जाए? क्योंकि ारत के लोग इस बात को जानते हैं कि यह समझौता देश
को अमेरिका के आगे गिरवी रखने के लिए ही है।
इतना ही नहीं इस सरकार ने यह समझौता 40 साल के लिए किया है और यह ी
प्रावधान किया गया है कि इसको एक तरफा निरस्त नहीं किया जा सकता। सोनिया गांधी जाते-जाते इस देश को सदा के लिए
अमेरिका का बंधक बनाकर रखना चाहती हैं। कामरेड इस मामले में उनके साथ हैं। शायद
उनको इतना ही गम रहा होगा कि बंधन की यह डोरी बीजिंग के दरवाजे से बंधनी चाहिए थी
वाशिंगटन के दरवाजे से कैसे बंध गई?
परंतु कामरेडों का इस विषय पर विधवा विलाप देखने लायक है। वे सी दोनों हाथों
से रूदाली की औरतों की तरह छातियाँ पीट रहे हैं। विधवाओं की तरह लंबा-लंबा अलाप ले
रहे हैं। लेकिन साथ ही साथ स्वर और लय का ी ध्यान रख रहे हैं। स्वर और लय में
उनका यह माक्र्सवादी रूदन संसद वन के अंदर
और बाहर एक अजीब समां बांध रहा है। कामरेड शायद विश्वास कर रहे हैं कि उनके
इस विधवा विलाप से देश की जनता सचमुच द्रवित हो जाएगी और आने वाले समय में वोट का
कै प्सूल उनके गले में उतार देगी। लेकिन वे शायद ूल गए हैं कि उनका यह विधवा
विलाप देशवासियों का मनोरंजन तो कर सकता है
उनकी विश्वसनीयता को नहीं बढ़ा सकता। जहां तक परमाणु करार की बात है,
उसके खिलाफ लड़ाई ारत
की जनता को ही लड़नी होगी। उसके लिए न इटली के सहयोग की जरूरत है न चीन के सहयोग
की।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)
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