: डा कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
यूपीए सरकार का और कोई ला हुआ या न हुआ हो, एक ला अवश्य हुआ है कि
धीरे-धीरे सी चेहरों से मुखोटे उतरने लगे हैं। ारतीय संसद पर आक्रमण की योजना
बनाने वाले अफजल गुरु को बचाने के लिए काँग्रेस के एक-एक करके कई चेहरे बेनकाब हो
गए। यह काँग्रेस का एजेंडा नम्बर वन था। जिसे उसने सफलता पूर्वक प्राप्त किया।
यूपीए सरकार यदि चाहे तो सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह के बड़े चित्रों के साथ इसका
विज्ञापन देश र के समाचार पत्रों में दे सकती है। इसका नाम यूपीए शायनिंग रखा जा
सकता है।
काँग्रेस की दूसरी उपलब्धि पहले से ी ज्यादा महत्वपूर्ण है। पिछले दिनों देश
के सी मुख्यमंत्रियों को काँग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री ने साफ-साफ बता दियाकि
इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का बनता है। बाकी ारतवासियों का जहाँ तक
प्रश्न है। उनका हक इस देश पर मुसलमानों के बाद आता है। ारत के लोग काँग्रेसी
प्रधानमंत्री की इस घोषणा से आह्त थे, तो प्रधानमंत्री ने दूसरा चैका मारा। उन्होंने कहा
कि सारा यूपीए उनकी इस घोषणा के पीछे चट्टान की तरह खड़ा है। मनमोहन सिंह को शायद
इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है। क्योंकि वे अर्थशाó के विद्यार्थी हैं इतिहास के
नहीं । अतः यदि वे चाहे तो निःसंकोच अपने इस ज्ञान को संशोधित कर सकते हैं। वे
पूरे विश्वास के साथ इसमें यह ी जोड़ सकते है कि यूपीए के अतिरिक्त पूरा
पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब समेत सी मुसलमान देश इस मसले पर उनके साथ चट्टान की तरह खड़े है।
यदि ारत के लोग प्रधानमंत्री की मुसलमानों के हक के थीसिस को स्वीकार नहीं करते
हैंतो इन देशों के लोग काँग्रेस की सहायता के लिए जिहाद करने के लिए तैयार है।
यह ारत के लोगों का सौाग्य है कि उन्होंने ारत ूमि पर की अपना हक नहीं
जताया। उन्होंने सदा इस ूमि को माँ माना हैऔर इसे ारत माता कहा है। पुत्र की
माता पर हक नहीं जताते। वे उसकी सेवा में ही सुख मानते हैं। अलबŸाा इस देश का यह दुर्ाग्य
जरूर रहा है कि पश्चिमी एशिया में इस्लाम के उदय के बाद मुसलमानों ने इस देश के
संसाधनों पर अपना हक जमाना शुरू कर दियाथा । शायद यही हक जमाने के लिए मध्य एशिया
से बाबर ने हिन्दुस्तान पर हमला किया था और उसने ारत पर अपना हक जता ी दिया था
और जमा ी लिया था। उसके बाद औरंगजेब, शाहजहाँ और न जाने कितने ऐसे आक्रांता इस देश पर
सफलतापूर्वक अपना हक जताते रहे। जिन लोगों ने उनके इस हक का विरोध किया उनका जो
हश्र हुआ वह इतिहास जानता है। पृथ्वीराज चैहान इस हक का विरोध करते हुए मारे गए।
गुरु तेग बहादुर दिल्ली के चाँदनी चैक में शहीद करवा दिए गए। बंदा बहादुर का अंग-अंग
काट लिया गया। उनके बेटे की हत्या उन्हीं की आँखों के सामने की गई। लेकिन इस ारत
पर और इसके संसाधनों पर हक जमाने की लड़ाई जो ईसवीं सम्वत् 636 से मोहम्मद बिन कासिम
के आक्रमण से शुरू हुई थी वह एक प्रकार से आज तक चल रही है। 1947 में मुस्लिम समुदाय ने ारत
के एक ू-ाग पर सफलतापूर्वक अपना हक जमा लिया और उसे देश की मुख्य धारा से काटकर
इस्लामी परम्परा के अनुसार पाक घोषित कर दिया। जाहिर है कि ारत का जितना हिस्सा
बचा उस पर और उसके संसाधनों पर हक जमाने के लिए उन्होंने अपना जिहाद और तेज कर
दिया।
पंडित जवाहर लाल नेहरू के काल से ही काँग्रेस इस देश को माता के सदृश्य न
मानकर इसे केवल धरती का एक टुकड़ा मानती रही। शायद इसीलिए जब चीन ने मातृ ूमि के
एक अंग पर अपना हक जमा लिया तो पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उस हक का विरोध करने के
बजाय ारत माँ के उस ू-ाग को बंजर बताकर पल्ला झाड़ लियाऔर अब काँग्रेस के ही
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सीधे-सीधे यह घोषणा करके कि मुसलमानों का इस देश के
साधनों का पहला हक है, स्पष्ट कर दियाकि काँग्रेस इस देश के बारे में क्या सोचती
है और ारत माता के प्रति उसका दृष्टिकोण क्या है? मनमोहन सिंह ये मानते है कि
मुसलामानों का ारत पर पहला हक हैऔर उन्होंने अपनी इस मान्यता का उद्घोष बिना किसी
लाग लपेट के साफ-साफ किया है। क्या यह केवल वोटों की खातिर मुसलमानों को प्रसन्न
करने की चाल है? या फिर काँग्रेस के मनोविज्ञान का सही-सही दर्शन है। मनमोहन सिंह पर यह आरोप
तो कोई नहीं लगा सकता कि वे अपने देश के खिलाफ कोई षड्यंत्र कर रहे हैंऔर न ही उन
पर कोई यह आरोप लगा सकता हैकि वे किसी अंतर्राष्ट्रीय रणनीति के तहत ऐसा बेहूदा
बयान दे रहे हैं। मनमोहन सिंह सेक्युलरिस्टों की उस जमात का प्रतिनिधित्व करते है
जो ारत के साथ माता शब्द लगाने को साम्प्रदायिकता मानती है। ारत माता, वन्दे मातरम्, पावन नदियाँ, क्ति के प्रतीक क्ति साहित्य इस जमात की दृष्टि में साम्प्रदायिकता का सबूत
है। इस जमात को लगता है कि जब तक इस देश के लोग ारत के साथ पुत्रवत् ाव से जुड़े
रहेंगे तब तक यह देश दकियानुसियों का अखाड़ा बना रहेगा। इनकी दृष्टि में ारत ोग्या
ूमि है। तो जाहिर है उस पर हक जताना पड़ेगा। उपासना की ूमि होगी तो उस पर हक नहीं जताया जाएगा बल्कि उसके
आगे नतमस्तक हुआ जाएगा। यही कारण हैकि ारत ूमि के पुत्र माँ की वंदना करते हैं ।
वंदे मातरम् का गान करते हैं। इस ूमि के जो संसाधन है, वे संसाधन ारत माता अपने
पुत्रों के लालन पालन के लिए प्रयोग करती है। वेद में कहा गया हैपृथ्वी मेरी माँ
मैं इसका पुत्र हूँ। ारत में तो केवल रतखण्ड को ही नहीं बल्कि संपूर्ण पृथ्वी को
माता के समक्ष माना गया है जैसे माता अपने पुत्रों का लालन-पालन करती है वैसे ही
पृथ्वी अपने संसाधनों से अपने पुत्रों का लालन-पालन करती है। मनमोहन सिंह किसान
नहीं है इसलिए शायद उन्होंने की खेती ी नहीं की होगी परंतु इतना तो उन्हें ी
पता होगा कि इस देश ेके करोड़ों-करोड़ों किसान धरती पर हल चलाने से पहले पुत्रवत्
क्षमा माँगते हैं। धरती माता के संसाधनों का वे उतना ही प्रयोग करते हैं, जितने से उनका लालन-पालन
हो सके। साधनों का दोहन किसान की दृष्टि में माता के प्रति अत्याचार ही माना जाता
है। परंतु जब किसी देश पर दूसरे देश के लोग आक्रमण कर देते हैं तो वे विजित देश के
प्रति माता का ाव नहीं रख सकते बल्कि उस पर हक जताते हैं। सैक्युलरिस्टों की जमात
अपने आप को सेक्युलर बताने के लिए हक जमाने वाले गिरोह के साथ जुड़ गई है। उनके
सामने मुख्य प्रश्न यह है कि इस देश पर जिसका नाम ारत है, पहला हक किसका बनता है? मनमोहन सिंह की दृष्टि
में या फिर जिस पार्टी का वह प्रतिनिधित्व करते हैं उस काँग्रेस की दृष्टि में या
फिर जिन कम्युनिस्टों की बैसाखियों पर वे खड़े हैं, उनकी दृष्टि में मुसलमानों का हक
इस देश पर पहले बनता है। जैसा कि हमने ऊपर कहा है हक जताने की यह लड़ाई लंबे काल
से चली हुई है। एक वक्त था जब ारत पर दुनिया की गोरी नस्लों ने ी हक जताया था।
लेकिन एक लंबे संघर्ष के बाद उनको अपना हक छोड़ना पड़ा। परंतु दुर्ाग्य से हक
जताने के नए तरीके शुरू हो गए हैं। ारत के लोग डा. मनमोहन सिंह से केवल एक ही
प्रश्न पूछना चाहते हैं कि इटली का हक इस
देश पर मुसलमानों से पहले बनता है या उनके बाद। ताकि कम से कम उन्हें इतना तो
मालूम हो सके कि इक्कीसवीं शताब्दी के इस महाारत में कौन किसके साथ खड़ा है?
जहाँ तक वामपंथी
मोर्चे का प्रश्न है उन्होंने ी अपनी प्राथमिकता प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष जाहिर कर
ही दी है कि ारत माता के एक अंग पर चीन का हक बनता है। उनका केवल यही कहना है कि
चीन को यह हक शांतिपूर्वक बातचीत से ही दे देना चाहिए। वैसे चीन तो यह हक बल
पूर्वक लेने को ी तैयार है। जिसकी शुरूआत उसने 1962 में ही कर दी थी। साम्यवादी तो 1962 से ही चीन के इस हक को
मान्यता दे रहे हैं । शुक्र है मनमोहन सिंह ने अपने इस थीसिस की घोषणा 2006 में की है, यदि 1947 में कर देते तो सारा ारत
ही पाकिस्तान बन जाता। मनमोहन सिंह ने अपने पाले की घोषणा कर दी है। धीरे-धीरे
बाकियों के नकाब ी उठने शुरू हो जाएंगे।
(हिन्दुस्थान समाचार)
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