Tuesday, 14 January 2014

लाल मस्जिद का नाटक और यर्थाथ का भ्रम

: डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
दिनांक: 20 जुलाई

स्थान: नई दिल्ली

अंततः लाल मस्जिद पर पाकिस्तान की सरकार को हमला करना पड़ा। पाकिस्तान सरकार का कहना है कि लाल मस्जिद का मदरसा हजारों की संख्या में ऐसे तालिबान पैदा कर रहा है जो देश में आतंकवाद फैला रहे हैं और सŸाा को चुनौती दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि यह मस्जिद या इसका मदरसा रातों-रात उग आया था। मस्जिद का निर्माण हुए कई साल हो गए हैं। मदरसे में पढ़ाई-लिखाई होते हुए ी काफी अरसा बीत गया है और इस मस्जिद और मदरसे में जो कुछ हो रहा था वह कोई छिपा हुआ रहस्य ी नहीं था। इस बार केवल इतना ही हुआकि मस्जिद और मदरसा दोनों हाथ में एके-47 लेकर उस जगह पर पहुँच गए जहां मदरसे को जन्म देने वाला बैठा था। या तो मदरसे को अपनी सीमा का ध्यान नहीं  रहा या फिर बनाने वाले को ऐसी आशा नहीं होगी कि मदरसे के तुलवा एक दिन उसकी गर्दन ी पकड़ लेंगे।

इधर ारतवर्ष में कुछ लोग लाल मस्जिद पर आक्रमण करने के कारण जनरल मुशर्रफ की शान में कसीदें पढ़ रहे हैं। दिल्ली में बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे जो मैंने आपको कहा थाकी शैली में बताते हुए नहीं थकते कि आतंकवाद से लड़ने की मुशर्रफ की नियत पर शक नहीं किया जाना चाहिए। वैसे ारत सरकार तो शायद शक कर ी नहीं रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि ारत और पाकिस्तान दोनों मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ेंगे। लाल मस्जिद पर आक्रमण से वे अपने समझे हुए साथियों को एक बार फिर समझा सकते हैं कि उनकी आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त अियान की पेशकश सही सिद्ध हुई है। अपने देश में जो लोग लाल मस्जिद पर आक्रमण के बावजूद मुशर्रफ की आतंकवाद से लड़ने की नियत पर संदेह करते हैं, उनके लिए अमेरिका द्वारा जनरल मुशर्रफ को दी गई शाबाशी प्रमाण के तौर पर पेश की जा रही है। आखिर ारत सरकार यह घोषणा तो खुले आम कर ही रही है 9/11 की घटना के बाद आतंकवाद से लड़ने का एक मुश्त ठेका अमेरिका को दे दिया गया है और अमेरिका ने ी इसे बखूबी संाल लिया है। अब जब अमेरिका ही मुशर्रफ की लाल मस्जिद पर आक्रमण करने के कारण तारीफ कर रहा है तो फिर कोई दूसरा उस पर किंतु परंतु कैसे कर सकता है?

अमेरिका और ारत में दोनों जगह लाल मस्जिद पर आक्रमण को आतंकवाद के खिलाफ शांति प्रेमियों की जीत बताया जा रहा है। लेकिन लाल मस्जिद पर आक्रमण क्या सचमुच पाकिस्तान की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की शुरूआत है? यह बहुत बड़ा प्रश्न है। लेकिन इस प्रश्न के वििन्न उŸार राजनीति की चाशनी में डूबो कर दिए जा रहे हैं । यह ी कहना होगा कि इस प्रश्न के राजनैतिक उŸार दिए जा रहे हैं । तथ्यरक उŸार न तो कोई देना चाहता है और न कोई सुनना चाहता है। आतंकवाद के प्रश्न पर ारत सरकार और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दलों द्वारा दिए गए उŸार पाखंड से ज्यादा कुछ नहीं हैं। जब आतंकवाद और मुसलमानों का प्रश्न आता है तो प्रत्येक राजनैतिक दल को मुसलमानों के वोट दिखाई देने लगते हैं और इसलिए वे या तो मुस्लिम आतंकवाद के प्रश्न से बचकर निकल जाते हैं या फिर यदि खुदा-न-खास्ता लाल मस्जिद जैसी घटना हो जाए तो छत पर चढ़कर बांग देने लगते हैं कि मुसलमानों को तो खाहमखाह बदनाम किया जा रहा है। देखिए पाकिस्तान में धर्मनिरपेक्ष मुसलमान किस प्रकार आतंकवादियों से लड़ रहे हैं । कबीर ने मस्जिद पर चढ़कर बांग दे रहे मुल्ला को फटकारा था परंतु दुर्ाग्य से ारत के प्रत्येक राजनैतिक दल आज मुसलमानों के लिए मुल्ला बने हुए हैंऔर बड़ी-बड़ी मस्जिदों के आगे सिजदा कर रहे लाखों मुसलमानों की ीड़ के सिवाए उन्हें कुछ ी दिखाई नहीं देता । वे मानकर चल रहे हैं कि मुसलमानों के असली मुल्ला वही हैं और जब ये मुसलमान सिज़दे से उठेंगे तो सीधे उनके बक्से में वोट डाल आएंगे। वििन्न राजनैतिक दलों में इस बात की होड़ लगी हुई है कि देश के मुसलमानों का असली मुल्ला कौन है? मुल्ला बनने का स्वांग कर रहे ये राजनैतिक दल देश की बाकी जनता को अपनी झोली में मान कर चलते हैं ऐसी मनःस्थिति में लाल मस्जिद की घटना ने इन मुल्लाओं की गले की आवाज और तीखी कर दी है।

रहा प्रश्न अमेरिका का। उसकी व्याख्या थोड़ी और गहराई में जाकर करनी होगी। 1947 में जिस साम्राज्यवादी चेतना से इंग्लैण्ड ग्रस्त था 2007 में उस चेतना की विरासत अमेरिका ने संाल ली है। मूलतः दोनों में कोई अंतर ी नहीं है। क्योंकि इंग्लैण्ड के ही ज्यादातर लोग अमेरिका में जाकर बस गए हैं। इंग्लैण्ड और अमेरिका की नाि नाल रक्त संबंधों की है। 1947 में जिस उद्देश्य के लिए इंग्लैण्ड ने पाकिस्तान का निर्माण किया था उन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अमेरिका अी तक पाकिस्तान को पाल पोस रहा है।

दरअसल पूरे का पूरा पाकिस्तान ही एक बहुत बड़ी मस्जिद है। यह मस्जिद इंग्लैण्ड ने ारत की छाती पर निर्मित की थी। इस मस्जिद को बनाने के लिए इंग्लैण्ड को बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी। इंग्लैण्ड के लिए इस मस्जिद की जरूरत 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद बहुत ज्यादा बढ़ गई थी क्योंकि इस स्वतंत्रता संग्राम में सी ारतीयों ने एकजुट होकर ारत में गोरी जातियों के शासन को चुनौती दी थी। पाकिस्तान रूपी इस मस्जिद का निर्माण करने के लिए गोरी सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की थी और उस विश्वविद्यालय ने अंग्रेजी आकाओं की आकांक्षाओं के अनुरूप ही इस पाकिस्तान रूपी मस्जिद के निर्माण की पृष्ठूमि तैयार कर दी थी। जब वह जमीन तैयार हो गई तो ारत को स्थाई रूप से पंगु बनाने के लिए और अपने हितों की रक्षा के लिए गोरी जातियों ने अनंत काल से चले आ रहे ारत के प्राकृतिक ूगोल को खंडित करते हुए उसकी छाती पर पाकिस्तान रूपी जामा मस्जिद का निर्माण किया था। पाकिस्तान रूपी इस जामा मस्जिद का शाही इमाम अमेरिका है और वह पाकिस्तान के लिए जिस प्रकार का ी फतवा जारी करता है उसी प्रकार का आचरण पाकिस्तान रूपी इस मस्जिद में शुरू हो जाता है।

अखबारों में छपा हैकि जनरल मुशर्रफ ने लाल मस्जिद पर हमला करने का निर्णय अमेरिका का आदेश मिलने के बाद किया। यहां जनरल मुर्शरफ किसी व्यक्ति का नाम नहीं है बल्कि वह एक प्रकार से पाकिस्तान के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया गया है। गोरी शक्तियों ने 1947 में जब ारत को तोड़कर पाकिस्तान का निर्माण किया था तो जाहिर है उनके मन में पाकिस्तान का प्रयोग करने की बहुआयामी योजनाएं रही होंगी। उन्हें ऐसा पाकिस्तान चाहिए जो निरंतर हिन्दुस्तान के लिए सरदर्दी पैदा करता रहे और पाकिस्तान यह कार्य 1947 से लेकर अब तक बखूबी कर रहा है। उसे ऐसा पाकिस्तान चाहिए। जो अफगानिस्तान में रूसी सेनाओं से लड़ सके। पाकिस्तान उसके लिए तैयार है । परंतु प्रश्न यह है कि जो अफगानिस्तान में जाकर रूसी सेना से लड़ेंगे उनमें मोटिवेशन कहां से आएगा? इसके लिए अमेरिका को पाकिस्तान में लाल मस्जिद की ी जरूरत थी और मदरसों की ी ताकि इन मदरसों से निकले हुए तालिबान इस्लाम खतरे में हैकी चीखोपुकार करते हुए जान हथेली पर लेकर रूसी सेना पर कूद जाएं। अमेरिका अच्छी तरह जानता है पाकिस्तान के नौजवान अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए तो जान हथेली पर नहीं रख सकते परंतु वे इस्लाम को खतरे में जानकर रूसी टैंकों से ी टकरा सकते हैं। इसलिए इन तालिबान को पैदा करने के लिए अमेरिका को ी लाल मस्जिद और मदरसा चाहिए। पाकिस्तान, अमेरिका की इस मांग की आपूर्ति का केन्द्र है। लेकिन अब रूस टूट गया, उसकी सेनाएं अफगानिस्तान से वापिस चली गईं। इसलिए तालिबान की जरूरत ी समाप्त हो गई। वैसे ी व्यापार जगत में परंपरा है कि फालतू स्टाॅक नष्ट कर दिया जाता है या फिर उसको जला दिया जाता है। कुछ व्यापारी उसको सेल पर ी लगा देते हैं। शायद अमेरिका के सुझाव पर ही पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए गैर उपयोगी हो चुके तालिबान को सेल पर लगाकर ारत की ओर ेजना शुरू कर दिया। लेकिन टैक्नाॅलाजी कितनी ी तरक्की कर जाए । जिंदा जागता तालिबान आखिर रोबोट तो नहीं बन सकता। वह कुछ निर्णय अपने दिमाग से ी लेता है। उस दिमाग को अमेरिका ने जिस तरह पशिक्षित किया है उसके परिणाम स्वरूप उसकी ज़द में न्यूयार्क का विश्व व्यापार केन्द्र ी आ गया।

जाहिर है इसके बाद अमेरिका अपने इस प्रयोग को तात्कालिक कारणों से जल्दी-जल्दी समेटता । शुरू में अमेरिका और पाकिस्तान ने अप्रासंगिक हो चुके इन तालिबान का प्रयोग यत्र तत्र करना चाहा लेकिन इनका दिमाग अमेरिका के ही खिलाफ होता जा रहा था। इसलिए उसने पाकिस्तान को जब ऐसा आदेश दिया तो पाकिस्तान के पास लाल मस्जिद और मदरसे पर आक्रमण करने के सिवा और कोई चारा नहीं था। इसे इतिहास का दुर्याेग कहना चाहिए कि पाकिस्तान रूपी मस्जिद का निर्माण जिस अलीगढ़ विश्वविद्यालय ने किया था ारत सरकार उसकी केवल सार संाली नहीं करती बल्कि यह ी ध्यान रखती है कि उसका मूल इस्लामी चरित्र कहीं बदल न जाए। जिस इस्लामी चरित्र ने पाकिस्तान का निर्माण किया उस इस्लामी चरित्र के विश्वविद्याय कोे उसी मूल मानसिकता में ही बचाए रखने के लिए सरकार दिन रात एक कर रही है। क्या यह ी अमेरिका के इशारे पर ही तो नहीं हो रहा? क्योंकि अमेरिका विज्ञान का देश है, आधुनिक प्रौद्योगिकी उसकी जान है।  वह जानता है कि यदि बीज सुरक्षित रहेगा तो समय आने पर अपने देश के हितों के अनुकूल एक नई मस्जिद का ी निर्माण किया जा सकता है। पहली जामा मस्जिद पाकिस्तान को तो वह पाल पोस ही रहा है। इस पूरे परिप्रेक्ष्य में लाल मस्जिद और उस किए गए आक्रमण का कोई महत्व नहीं है। यह सारा कृत्य उन बच्चों जैसा है। जो पहले रेत के धरोंदे बनाते हैं फिर उन्हें तोड़ देते हैं। लाल मस्जिद रेत का एक ऐसा ही धरोंदा था जो शाही इमाम अमेरिका के इशारे पर पाकिस्तान ने बनाया था और फिर उसी के इशारे पर उसे गिरा दया है। ारत के लिए इस खेल का कोई महत्व नहीं है। अलबŸाा यदि ारत खाहमखाह अपने आप को इस खेल में खिलाड़ी मानता है तो अलग बात है पाकिस्तान और अमेरिका के इस खेल में ारत पीडि़त पक्ष है। खिलाड़ी नहीं और लाल मस्जिद पर आक्रमण से इस पीडि़त पक्ष को कोई ला नहीं होने वाला है यह ध्यान में रखना चाहिए ।

(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)


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