Tuesday, 14 January 2014

प्रतिभा पाटिल की प्रतिा के शुरू हुए चर्चे

 डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
दिनांक: 23 जून 2007

स्थान: नई दिल्ली

जब सोनिया गांधी की कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद के लिए जलगांव की श्रीमती प्रतिा पाटिल का नाम प्रस्तुत किया तो राजनैतिक विश्लेषक उसी प्रकार चैंके थेजिस प्रकार इंदिरा गांधी द्वारा ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित किए जाने पर चैंके। यह ठीक है कि राष्ट्रपति पद ज्यादातर रबड़ की मोहर ही मानी जाती है और इस पद के साथ बहुत ज्यादा संवैधानिक शक्तियाँ नहीं हैं। परंतु राजनीतिज्ञों ने इस रबड़ की मोहर को ी धीरे-धीरे ुरुरी रबड़ ही बना दिया है। प्रतिा पाटिल की क्या प्रतिा है इस पर विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रश्न व्यक्ति सापेक्ष है। प्रतिा देखने वाले की नजर में होनी चाहिए। व्यक्ति के ीतर की प्रतिा का प्रश्न बाद में पैदा होता है। हो सकता है कि सोनिया गांधी को प्रतिा में खास प्रतिा दिखाई देती होऔर जयललिता को वह बिल्कुल ी दिखाई न देती हो। इसलिए इस प्रश्न पर चर्चा करना बेमानी है। परंतु राष्ट्रपति वन में पहुंचने से पहले ही प्रतिा पाटिल को लेकर जो चर्चा हो रही है वह उनकी आंतरिक प्रतिा के बारे में नहीं है बल्कि उनके कर्म क्षेत्र के बारे में है। जलगांव की एक कांग्रेसी नेता रंजनी पाटिल ने बकायदा एक प्रेस कांफ्र्रेस करके आरोप लगाया है कि उसके पति की हत्या में प्रतिा पाटिल के ाई का हाथ है और उन्होंने अपने ाई को बचाने के लिए आजतक उसके पति की हत्या की निष्पक्ष जांच नहीं होने दी। रजनी पाटिल का कहना है कि वे अपने पति के हत्यारों को कटघरे में खड़ा करने के लिए जमीन आसमान एक करती रही लेकिन प्रतिा पाटिल के चलते उसे न्याय नहीं मिल सका। अंततः सर्वाेच्च न्यायलय के कहने पर हत्या की जांच का काम सीबीआई को सौंपा गया। रजनी पाटिल का आरोप है कि प्रतिा पाटिल ने विवेक के क्षणों में अपने तथाकथित हत्या के आरोपी ाई का साथ दिया और न्याय प्रक्रिया को बाधित किया।

प्रतिा पाटिल की प्रतिा का दूसरा किस्सा हत्या या न्याय से संबंधित नहीं है बल्कि जलगांव की एक चीनी सहकारी मिल को एक बैंक द्वारा दिए गए साढ़े सत्रह करो़ड का है। ऊपर से देखने पर कहा जा सकता है कि यदि किसी सहकारी मिल ने बैंक का पैसा नहीं लौटाया तो इसमें प्रतिा पाटिल क्या कर सकती है? दरअसल इस सहकारी मिल की अध्यक्षा प्रतिा पाटिल ही थींऔर जब उन्होंने अध्यक्ष पद त्याग दिया तो उनके पति इस मिल के अध्यक्ष बन गए। जहां यह ी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस मिल की स्थापना ही प्रतिा पाटिल ने की थी। यदि मौटे तौर पर गांव की ाषा में बात की जाए तो कहा जा सकता हैकि प्रतिा पाटिल ने अपने कुछ मित्रों और पारिवारिक लोगों के साथ मिलकर एक सहकारी मिल की स्थापना की । किसी बैंक से साढ़े सत्रह करोड़ रुपया कर्जा लिया। परंतु वापिस करने के नाम पर अंगूठा दिखा दिया। बैंक वाले इस किस्से में कानूनी स्थिति और कानूनी अडचनंे क्या हैं? यह तो कानूनविद् ही जानते होंगे लेकिन आम आदमी यह मानकर चलता है कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को केवल कानून की ॰ष्टि से ही ईमानदार नहीं होना चाहिए बल्कि जन अवधारणा में ी उसकी छवि शंका से परे रहनी चाहिए।
प्रतिा पाटिल के ऊपर लगे ये आरोप अर्थ क्षेत्र और कर्म क्षेत्र के है। परंतु दूसरी स्थिति इससे ी चिंताजनक  है। आखिर सोनिया गांधी प्रतिा पाटिल को राष्ट्रपति बनाने के पीछे किस रणनीति पर काम कर रही हैं और विष्य में यह रणनीति किधर ले जाएगी ? ारत में पिछले कुछ अरसे से ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां बहुत तेजी से बढ़ रही है। इस शताब्दी में ारत को ईसाई बनाने की घोषणा  पोप खुद ारत में आकर कर गए थे। ारत में ी बहुत से लोग ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों से चिंतित है क्योंकि अनुव यह बताता है कि मतांतरण से राष्ट्रांतरण हो जाता है। शायद इसी चिंता के कारण कुछ राज्य सरकारों ने छल, बल, य और धन के प्राव से हो रहे मतांतरण को रोकने के लिए कानून बना दिए हैं। सी जानते हैं कि ारतवर्ष में ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे इस मतांतरण के पीछे की रणनीतियां वेटिकन में बनती हैं। परंतु ारतीयों के इस चुनौती को स्वीकारने के लिए जागृत हो जाने के  कारण वेटिकन की योजनाएं मुश्किल में पड़ती जा रही हैं। इसीलिए पिछले साल मई मास में जब ारत के राजदूत अमिता त्रिपाठी वेटिकन में पोप वेनिडिक्ट को अपने दौत्यपत्र प्रस्तुत कर रहे थेतो पोप ने सी परंपराओं का उल्लंघन करते हुए त्रिपाठी को लताड़ लगाई और यह कहा कि ारत जो राज्य सरकारें मतांतरण के विरोध में कानून बना रही है, वे संविधान विरोधी हैं और इन कानूनों को रद्द किया जाना चाहिए। सोनिया गांधी के वेटिकन से रिश्ते जगजाहिर हैं। पोप की इस झाड़ के तुरंत बाद प्रतिा पाटिल ने राजस्थान के राज्यपाल की हैसियत से मतांतरण को रोकने वाले उस बिल पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया जिसे विधानसा ने पारित करके उनके पास ेजा था। जब विधानसा ने उसे दोबारा पारित किया और पुनः प्रतिा पाटिल के पास ेजा तो उन्होंने उस पर हस्ताक्षर करने के बजाय उसे सलाह के लिए राष्ट्रपति को ेज दिया। जाहिर है कि पोप की फटकार के बाद सोनिया गांधी की सरकार ने उनके सुझाए मार्ग पर अमल करना शुरु कर दिया। प्रतिा पाटिल सोनिया गांधी की इस रणनीति में सहर्ष अपनी ूमिका निाने के लिए तैयार हो गईं। ऐसा नहीं कि मतांतरण के मामले में सी कांग्रेसियों ने सोनिया गांधी के सामने हथियार डाल दिए हो। राजस्थान विधानसा द्वारा धर्मांतरण विरोधी बिल पारित किए जाने और उसे प्रतिा पाटिल द्वारा रोक दिए जाने के बाद ही हिमाचल प्रदेश की कांग्रेसी सरकार ने राजा वीरद्र सिंह के नेतृत्व में धर्मांतरण विरोधी बिल पारित कियाऔर राज्यपाल ने उस पर हस्ताक्षर ी कर दिए। वीरद्र सिंह ने धर्मांतरण के मामले में सोनिया गांधी के कार्यालय के समस्त दबावों को नकारा क्योंकि यह प्रश्न राष्ट्रीयता से ताल्लुक रखता था। परंतु दुर्ाग्य से प्रतिापाटिल सोनिया गांधी की इस रणनीति का अंग बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गईं। राजस्थान का वह धर्मांतरण विरोधी बिल अब राष्ट्रपति के पास लंबित पड़ा है। उसे रद्द करवाने के लिए सोनिया गांधी के पास इससे अच्छा रास्ता और क्या हो सकता है कि प्रतिा पाटिल को ही राष्ट्रपति वन में स्थापित कर दिया जाए। वेटिकन के राष्ट्रपति पोप बेनिडिक्ट प्रसन्न तो होंगे ही । क्योंकि उन्होंने जो कहा ारत सरकार ने उसे पूरा करके दिखा दिया। कैथोलिक ईसाई मानते हैं कि पोप के प्रसन्न होने पर स्वर्ग मिलता है। उस स्वर्ग के लिए प्रतिा पाटिल को राष्ट्रपति बनाना तो बहुत छोटी सी कीमत है।

(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)

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