डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री
पश्चिम बंगाल साम्यवादी आंदोलन का गढ़ माना जाता है। इस प्रदेश मंे पिछले तीन दशकों
से ी ज्यादा समय से शासन सŸाा माक्र्सवादी दर्शन के
अनुरूप चलाने के प्रयास हो रहे हैं। संक्षेप में यह साम्यवाद की प्रयोगशाला है। उधर
छŸाीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में पिछले
कुछ वर्षों से कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (माओवादी) के रणनीतिकार चिंतक और गुरिल्ला
महारथी मिलजुलकर माक्र्सवादी दर्शन के ांति ांति के नए प्रयोग कर रहे हैं। बंगाल
के साम्यवादी प्रयोगों ने नंदीग्राम को जन्म दिया है और बस्तर क्षेत्र के साम्यवादियों
ने इतने लंबे परिश्रम के बाद विजयपुर के जंगलों में सŸार से ी ज्यादा हत्याएं करके वर्ग संघर्ष की माक्र्सवादी
अवधारणा का दिग्ददर्शन करवाया है। जिस वर्ग संघर्ष की कार्ल माक्र्स वकालत करते रहे
और जिसकी वििन्न व्याख्याएं करने में नंबूदरीपाद से लेकर चारू मजूमदार तक और ज्योति
बसु से लेकर बुद्धदेव ट्टाचार्य तक अनेकों व्यख्याएं करते रहे, उसकी अंतिम साम्यवादी व्याख्या नंदीग्राम की उन दस लाशों
पर और छŸाीसगढ़ की सŸार से ी ज्यादा लाशों पर जाकर खत्म हुई जिनके छितरे
हुए तन और बिखऱी हुई मांस-मज्जा साम्यवादी हिंसा का क्रूर अमानवीय चेहरा प्रस्तुत कर
रही है। इसे ारत के साम्यवादियों की कार्ल माक्र्स को श्रद्धांजलि माननी चाहिए कि
इस संघर्ष मंे मरने वाले और मारने वाले दोनों एक ही वर्ग से संबंध रखते हैं। यह शायद
बुद्धदेव ट्टाचार्य और सीताराम येचुरी की वर्ग संघर्ष की ारतीय अवधारणा है।
नंदी ग्राम में जो लोग अपनी जमीन की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं वे उसी वर्ग
के हैं जिसे सीताराम येचुरी और प्रकाश करात (वृंदा करात सुन रही हो तो वह ी) सर्वहारा
वर्ग का घोषित करते हैं। बुद्धदेव ट्टाचार्य की पुलिस कम से कम पूंजीपति वर्ग से तो
ताल्लुक नहीं रखती होगी और न ही बुद्धदेव ट्टाचार्य के शासन को पूंजिपतियों का शासन
कहा जा सकता है। सीताराम येचुरी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की शैली में यत्र-तत्र-सर्वत्र
कहते नहीं थकते कि पश्चिम बंगाल की सरकार सर्वहारा वर्ग की सरकार है। इस सर्वहारा वर्ग
की सरकार ने सर्वहारा वर्ग के ही दस मानुषों की बलि लेकर साम्यवादी चिंतन के और उसके
प्रयोगों के असली चेहरे को बेनकाब किया है।
उधर छŸाीसगढ़ मंे दाँतेवाड़ा के
जंगलों में माक्र्स और माओ के शिष्य रात के
अंधेरे में सोए हुए लोगों पर आक्रमण ही नहीं करते, बल्कि उस आक्रमण के बाद जिंदा लोगों की शिनाख्त कर उसे तलवारों से ी काटते हैं।
मानव शरीर की चिंदी-चिंदी करके उसे हवा मंे उछालते हैं। वे एक नई क्रांति का उद्घोष
कर रहे हैं। लेकिन दुर्ाग्य से इस क्रांति के लिए ी उनको बलि हेतु सर्वहारा वर्ग
के मनुष्यों की ही जरूरत है। आक्रमण करना स्वीकार किया जा सकता है। वैचारिक संघर्ष
ी स्वीकार किया जा सकता है। वैचारिक संघर्ष के लिए हिंसा पर ी विवाद हो सकता है।
लेकिन जिस ढंग से माओवादियों ने बस्तर से जंगल में सŸार से ी ज्यादा निरीह प्राणियों की नृशंसता पूर्वक हत्या
की वह इस सी से आगे जाकर मनुष्य से ीतर छिपे पशु के पूरी तरह से जागृत हो जाने का
प्रमाण है। यह जुगुप्सा पैदा करता है। क्या कारण है कि कार्ल माक्र्स के शिष्यों को
क्रांति के लिए आदमी के ीतर का सोया हुआ हिंस्र पशु जगाने की जरूरत पड़ रही है? शायद इसका एक कारण यह हो सकता हो कि हिंस्र पशु की चिंतन
की धारा लुप्त होती है। दाँतेवाड़ा के जंगलों में कार्ल माक्र्स के शिष्यों ने हिंसक
पशुओं के रोबोट पैदा किए हैं। पाकिस्तान के मदरसों में जो प्रक्रिया तालिबान बनाने
में अपनाई जाती है वही प्रक्रिया माक्र्स के इन गुरिल्लों को बनाने के लिए अपनाई जा
रही है। तालिबान इस्लाम के चलते फिरते रोबोट हैं जिनके ीतर आक्रमण करने की अपार क्षमता
है लेकिन मानवीय संवेदनाएं सूख गईं हैं उसी प्रकार दाँतेवाड़ा के जंगलों के ये नक्सलवादी
कार्ल माक्र्स के तालिबान हैं जो मानव रक्त से स्नान करके पशुओं की तरह चीत्कार से
आनंद प्राप्त करते हैं।
नंदीग्राम से लेकर दाँतेवाड़ा तक साम्यवाद का यह अघोरी, आसुरी अनुष्ठान हो रहा है। लगता है सीताराम येचुरी और
उनके साथी इसमें पुरोहित की ूमिका निा रहे हैं। हरिकृष्ण सिंह सुरजीत न मालूम कहां
गायब हो गए हैं। ज्योति बसु मौन हैं। सर्वहारा वर्ग इन माक्र्सवादी तालिबानों से लड़
रहा है और ये तालिबान उनकी लाशों से धरती को पाट रहे हैं। धूमल ने की कहा था कि-मेरे
देश की संसद मौन है। आज उस मौन होने का रहस्य खुल रहा है क्योंकि जिन लोगों की पुलिस
नंदी ग्राम में लाशें बिछा रही है उन्हीं लोगों के कंधों पर देश की सरकार चल रही है।
जब सरकार के हाथ में मरहम पट्टी की जगह बंदूक आ जाए तो सर्वहारा का जो हश्र होता है
वहं नंदीग्राम में देखा जा सकता है।
(हिन्दुस्थान समाचार)
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