Tuesday, 14 January 2014

अर्जुन सिंह को अब कहां होगा विश्राम

  - डा0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
अर्जुन सिंह उम्र दराज हो चुके हैं। सही उम्र कितनी होगी इस पर ज्यादा माथा पच्ची करने की जरूरत नहीं है। लेकिन शरीर की हालत देखकर लगता है कि उनका शरीर उनके मन की महत्वकांक्षाओं अब ढो नहीं पा रहा। मन और शरीर का यही द्वंद्व है। मन की बूढ़ा नहीं होता। लेकिन शरीर की तो आखिर अपनी सीमा है । वह थकने लगता है, लड़खड़ाने लगता है और धीरे-धीरे जवाब देने लगता है। लेकिन मन उसी तूफानी गति से ागता है । दोनों के बीच जब द्वंद्व युद्ध उत्पन्न होता है। तो अर्जुन सिंह जैसी हालत हो जाती है। अर्जुन सिंह प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। ये कांटा उनके हृदय में शूल की तरह चुता रहेगा और अब ी चु रहा है। वे स्वयं प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। इसका मलाल शायद उन्हें इतना न होता । लेकिन उनके साथ कांग्रेस में रहे उनके कनिष्ठ सहयोगी। देवगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल तक प्रधानमंत्री बन गए। इन्द्र कुमार गुजराल इमानदारी से कहीं से लोकसा की सीट जीतना चाहे तो यह उनके बस का नहीं है। देवगौड़ा तो मानसिक रूप से ी कन्नड़ से आगे बढ़ नहीं पाए। लेकिन सी को धकियाते हुए लालकिले की प्राचीर तक पहुंच गए। अर्जुन सिंह इनके मामले में ी मन को समझा सकते हैं । इन्होंने प्रधानमंत्री का पद कांग्रेस को छोड़ कर पाया । लेकिन इस बार तो अति हो गई । अर्जुन सिंह को लगता था कि जब सोनिया मायनो गांधी स्वयं प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर रही है तो कायदे से इस पद के लिए उनका ही अधिकार बनता था। लेकिन हिमाकत की हद देखिए कि सोनिया गांधी कहीं से एक सरकारी बाबू सरदार मनमोहन सिंह को पकड़कर ले आई । जिसने जिंदगी में की चुनाव लड़ा ही नहीं। खुदा-खुदा करके दिल्ली से एक बार लोकसा में पहुंचने के लिए हिम्मत जुटा बैठे थे लेकिन दिल्ली की जनता ने उन्हें उनकी औकाद बता दी। ऊपर से तुर्रा यह कि राज्यसा में जाने के लिए ी पंजाब का रास्ता उनके लिए बंद ही रहा। राज्यसा में पहुंचने के लिए मनमोहन सिंह को शपथ-पत्र देना पड़ा कि वे एक लंबे समय से असम में ही रह रहे हैं जबकि शपथ लेने वाला और शपथ-पत्र को ग्रहण करने वाला दोनों ही जानते हैं कि यह सफेद झूठ है। अर्जुन सिंह का मन इसी से ारी है। अब इस सबके चलते उनके मन में स्वामी क्ति की श्रद्धा ी है और उपेक्षा किए जाने का गुस्सा ी । इसलिए उन्होंने मोहि कहां विश्रामके लोकार्पण के अवसर पर अपनी ड़ास निकाली । अर्जुन सिंह की यह ड़ास देश के लिए बड़ी मुफीद सिद्ध हुई। इससे कांग्रेस के ीतर कार्यप्रणाली का एक्सरे लोगों के सामने आ गया। अर्जुन सिंह ने कहा मैं जब 1960 मेंपहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिला था ती मैंने उनको आश्वस्त कर दिया था कि मै। आपके और आपके परिवार के प्रति ताउम्र स्वामीक्त रहूंगा। इससे यह तो सिद्ध होता ही है। कि परिवार के प्रति स्वामी क्ति की मांग पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ही उठानी शुरू कर दी थी। अर्जुन सिंह ने आगे और ी स्पष्ट किया कि मैं पूरे हृदय से नेहरू गांधी के प्रति स्वामीक्त हूँ और रहूंगा ी और जीवन में इस पथ से हटने की तो सोच ी नहीं सकता। राजाओं के दरबार में स्वामीक्ति की शपथ लेना अनिवार्य अंग होती थी। केवल राजा के प्रति ही नहीं उसके परिवार के सदस्यों के प्रति ी। लेकिन इस बात का ी गवाह है कि एक ही राजा के प्रति स्वामीक्त दरबारी आपस में एक दूसरे के विरूद्ध षड्यत्रों में ी लिप्त रहते थे। जैसे ही अर्जुन सिंह ने मचांग से खड़े होकर अपनी स्वामी क्ति की शपथ दोहराई वैसे ही दरबार की गुफाओं में छिपे हुए अन्य स्वामीक्त बाहर आ गए और हूंआ-हूंआ करने लगे। उनमें से कुछ ऐसे दरबारी ी है । राजीव गांधी हत्याकांड में जिनकी ओर शक ही सूई स्वााविक रूप से घूमती है।

लेकिन अर्जुन सिंह का किस्सा सबसे अलग है । उनकी नेहरू गांधी परिवार के प्रति स्वामी क्ति प्रकाष्ठा पर है। इतनी प्रकाष्टा पर कि जब इतिहास के संयोग से कांग्रेस शासन में ही प्रधानमंत्री का पद नेहरू गांधी परिवार से इधर नरसिंहा राव ने संाल लिया तो अर्जुन सिंह  कांग्रेस को ही छोड़कर चले गए थे। अलबŸाा अर्जुन सिंह ने यह स्पष्ट नहीं किया कि उनकी स्वामी क्ति नेहरू गांधी परिवार के वर्तमान सदस्यों प्रति ही है या  फिर उनके आने वाले बच्चों के प्रति ी। क्योंकि अी राहुल गांधी का सैद्धांतिक रूप से विवाह नहीं हुआ है।इसलिए जब उनकी शादी होगी तो क्या उनके बच्चों के प्रति ी अर्जुन सिंह इसी प्रकार स्वामीक्ति का प्रदर्शन करेंगे? राजा के घर जब बच्चा उत्पन्न होता था तो दरबारी एक दिन के बच्चे के सामने ही कोरनिश करने के लिए पहुंच जाते थे । खुदा अर्जुन सिंह को लंबीऔर सेहतमंद उम्र बक्शे ताकि देश उस ऐतिहासिक ॰श्य को ी देख ले। स्पष्टीकरण  का एक और कोना बचा हुआ है अर्जुन सिंह की स्वामी क्ति नेहरू गांधी परिवार के बच्चों के प्रति ही है या फिर परिवार के दामाद के प्रति ी। राबर्ट ढेरा मुरादाबादी सोनिया गांधी के दामाद है। उनके प्रति स्वामीक्ति की शपथ अर्जुनसिंह की पहली ही शपथ में शामिल है या नहीं। लगे हाथ वे इसका ी खुलासा कर देते तो देश की जनता का कल्याण होता। वैसे पुरानी परंपरा कुछ और है जब इंदिरा गांधी का फिरोज़ गांधी का झगड़ा हो गया था तो दरबारियों ने दूसरे ही क्षण फिरोज़ गांधी के दस्तरखां से उठ खड़े हुए थे। वैसे ी एक काम और ी कर सकते हैं कि इटली जाकर सोनिया गांधी के रिश्तेदारों, ाई-तीजों की तलाश कर सकते हैं और उनके आगे ी अपनी स्वामी क्ति का शपथ पत्र पेश कर सकते हैं। वैसे सोनिया गांधी की अम्मा तो गाहे-बगाहे ारत में ही रहती है उनके प्रति अर्जुन सिंह श्रद्धा ाव से झुकते ही होंगे। जब अर्जुन सिंह सब कुछ बताने पर आ ही गए हैं तो उन्हें यह ी बता देना चाहिए कि क्वात्रोची का सोनिया गांधी से क्या रिश्ता है? और अर्जुन सिंह का उनके प्रति स्वामीक्ति का क्या लेवल है। 

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