जफरनामा और उसकी आधुनिक भारत के संदर्भ में प्रासंगिकताः डा. कुलदीप अग्निहोत्री
दिनांक: 30 जून 2007
स्थान: नई दिल्ली
जफरनामा फारसी ाषा का शब्द है जिसका अर्थ है विजय की चिठ्ठी। एक ऐसा पत्र जिसमें
अपनी विजय का एलान किया गया हो,
युद्ध की समाप्ति
पर मिलने वाली विजय नहीं बल्कि युद्ध के प्रारं में ही विजय की घोषणा करने वाले आत्मविश्वास
से लबरेज चिठ्ठी। यह चिठ्ठी आज से 300 साल से पहले ारत की परंपरा में दशम्गुरू श्री
गोविंद सिंह जी ने उस वक्त के विदेशी शासक औरंगजेब को लिखी थी। गुरूजी यह चिठ्ठी उस
वक्त की प्रचलित बृज ाषा में ी लिख सकते थे। उनकी अधिकांश काव्य रचनाएं बृज ाषा
में ही हंैं। परंतु शायद उस वक्त गुरूजी ने अत्याचारी विदेशी शासक को उसी की ाषा में
चुनौती देने का निर्णय किया था। औरंगजेब ने कुरान की कसम खाकर गुरू गोविंद सिंह जी
से विश्वासघात किया था। अपने आप को इस्लाम का पैरोकार घोषित करने वाला कोेई राजा कुरान
की सौगंध खाकर ी विश्वासघात करेगा- ऐसी शायद गुरूजी को आशा नहीं थी। औरंगजेब के साथ
युद्ध में गुरूजी के चालीस के चालीस सैनिक शहीद हो गये। वे सी ूखे-प्यासे लड़ रहे
थे लेकिन जीते जी उन्होंने रणूमि को नहीं छोड़ा। इनमें गुरूजी के दो बेटे ी शामिल थे। इससे आहत होकर और
विदेशी शासक की असलियत को समझकर गुरूजी ने जफरनामा लिखा। यह प्रकारांत से गुरूजी द्वारा
अंतिम विजय के लिए लिया गया संकल्प था।
जफरनामा में मुख्य रूप से तीन विषय हैं। पहला विषय है ईश्वर की सार्वौमिकता और
शक्तिमŸाा, दूसरा विषय है राजधर्म की व्याख्या और तीसरा विषय है
गुरूजी का शाश्वत एलान-
चुकार अज हमह हीलते
दरगुजशत।
हलाज असतु बुरदन ब शमशेर
दसत।।
इसका अर्थ है जब अधर्म का साम्राज्य होता है तब शक्ति का प्रयोग करना न्यायसंगत
है। गुरू गोविंद सिंह यह मानते हैं कि धर्म की शक्ति सबसे उपर है। राजा को धर्म के
अनुसार ही आचरण करना चाहिए। जो राजा धर्म के अनुसार आचरण नहीं करता उसे राजा बने रहने
का ी अधिकार नहीं है। सौगंध खाकर मुकर जाना, वचन देकर टाल जाना, विश्वास उत्पन्न करने के
बाद घात करना ये तीनों कृत्य अधर्म के दायरे में आते हैं। ारत का तत्कालीन विदेशी
शासक औरंगजेब इसी अधर्म के रास्ते पर चल रहा था। गुरूजी ने उसे संबोधित करते हुए लिखा
कि तुम तलवार के जोर पर और रणनीति के बल पर देश पर कब्जा करके बैठे हो, यह ठीक है कि तुम प्रावशाली हो तुम्हारा प्रताप आकाश
तक फैला हुआ है और तुम इस देश के सिंहासन पर बैठे हो, परंतु इससे क्या होता है? क्यों कि तुम धर्म से विहीन हो। और धर्म से विहीन राजा
का क्या हश्र होता है इसका जिक्र गुरूजी पहले ही कर चुके हैं।
परंतु मुख्य प्रश्न यह है कि तीन सौ साल पहले लिखी गयी इस चिठ्ठी की आज के ारत
के संदर् में क्या प्रासंगिकता है। ारत के दोनों पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान एक
बार नहीं अनेक बार ारत के साथ विश्वासघात कर चुके हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय
में चीन ारत के साथ ाई-ाई की कसमें खाता रहा। पाकिस्तान एक बार नहीं अनेक बार अपनी
विश्वसनीयता का यकीन दिलवाता रहता है। परंतु उनका आचरण इसके विपरीत रहा है। यें दोनों
देश अलग-अलग ही नहीं मिलकर ी ारत के खिलाफ षडयंत्रों में लिप्त रहते है। चीन ने
1962 में और पाकिस्तान ने अनेक बार ारत पर आक्रमण किए हैं। अधर्म उनके राज्य की नीति
का अंग है। चीन ने अपने पड़ोसी शांतिप्रिय और धर्म के उपासक तिब्बत पर कब्जा ही नहीं
किया बल्कि वहां के लाखों लोगों को मौत के घाट ी उतार दिया है।
परंतु इस सब के बाद ी ारत सरकार इन दोनों देशों से बातों का लंबा दौर जारी किए
हुए है। पाकिस्तान ारत में पिछले अनेक सालों से आतंकवादी गतिविधियों का संचालन कर
रहा है। वह वार्ता के लिए मेज पर ी बैठता है और दूर कारगिल में अपनी सेना ी ेजता
है। पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों से ारत के हजारों निर्दाेष नागरिक मारे जा चुके
हैं। कश्मीर घाटी में खून पानी से सस्ता हो गया है। उधर चीन ारत के अनेक हिस्सों पर
अपना दावा जताता रहता है, उसका यह दावा चोरी छिपे नहीं
है बल्कि उसका राजदूत दिल्ली में ही बैठकर इन दावों की घोषणा करता है। आज से तीन सौ साल पहले एक बार विश्वासघात करने पर
गुरू गोविंद ने औरंगजेब के नाम जफरनामा जारी कर दिया था और उसमें अपने विजय के संकल्प
की घोषणा कर दी थी। इन तीन सौ सालों में गंगा, जमुना और ब्हृमपुत्र में न जाने कितना पानी बह चुका है। इतिहास ने ारत को सीखने
के अनेक मौके दिए हैं। गुरू गोविंद सिंह ने जफरनामा में विजय का जो संकल्प औरंगजेब
को चुनौती देते हुए लिया था उसे पूरा करने के लिए उन्होंने ऐसे तंत्र की रचना की कि उनके शिष्यों ने कालांतर में अफगानिस्तान तक
जाकर विदेशी आक्रांताओं के छक्के छुडा दिए। 1948 में ही पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण
कर दिया था और 1962 में चीन ने ारत के बहुत बडे ूाग पर कब्जा कर लिया था उसके बावजूद
ारत आज तक अपनी विजय की व्यूह रचना नहीं कर पाया। उसका व्यवहार इन औरंगजेबों के आगे
गिडगिडाने र का रहा है उन्हें जफरनामा ेजने का साहस उसे आज तक नहीं हुआ। जैसा की
हमने ऊपर उल्लेख किया है कि 300 साल पहले गुरू गोविंद सिंह ने सारे ारत की ओर से अधर्मी
आक्रांता को विजय का संकल्प प्रेषित कर दिया
था। आज जब जफरनामा की त्रिशताब्दी मनायी जा रही है तो क्या ारत सरकार जफरनामा के अनुकूल
आचरण कर सकती है? सबसे बढकर क्या उस आचरण को
व्यवहार में परिणित करने के लिए विजय यात्रा की तैयारी ी कर सकती है?
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)
No comments:
Post a Comment