डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री
गुजरात के दंगों को हुए पाँच साल से ी ज्यादा हो गए हैं और दंगों के घाव
धीरे-धीरे रने लगे थे। गुजरात में चर्चा वहां के विकास को लेकर हो रही थी । शायद
कुछ अ॰श्य शक्तियों को यह रास नहीं आया। रात के अंधेरे में काले कपड़े पहनकर कैमरा
हाथ में लेकर कुछ लोग उन घावों को दोबारा उखाड़ने में लगे हुए हैं, उन शक्तियों के निशाने पर संघ परिवार है । नरेन्द्र
मोदी को तो संघ परिवार को अपराधी सिद्ध किए जाने के लिए केवल एक प्रतीक के रूप में
प्रयोग किया जा रहा है। ारत को बांटने के लिए मुसलमान एक सुविधापूर्ण हथियार है
और इस देश का दुर्ाग्य ही कहना चाहिए कि मुस्लिम समाज अपने आपको इन अ॰श्य
शक्तियों के हाथ हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने की इजाजत देता है। अंग्रेजों
ने लंबे समय तक इसी हथियार का इस्तेमाल किया और इसी हथियार से ारत को दो फाड़ कर
दिया। अब वही शक्तियाँ इसी हथियार को पुनः धारदार बना रही हैं और शायद उसी पुराने
उद्देश्य के लिए इसे इस्तेमाल करने की तैयारियाँ हो रही ।
पिछले दिनों एक इलेक्ट्राॅनिक चैनल ने गुजरात दंगों के कुछ पुराने ॰श्य दिखाने
शुरू कर दिए और कुछ लोगों के चुने हुए बयान ी प्रसारित करने शुरू कर दिए। शायद
इसकी योजना काफी समय पहले से ही बनी होगी। क्योंकि चैनल में ये ॰श्य दिखाई देने के
साथ ही देश के कुछ हिस्सों में पूरी तैयारी से मुसलमानों के प्रत्यक्ष प्रदर्शन
शुरू हो गए। उसी चैनल ने श्रीनगर हैदराबाद इत्यादि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हुए
प्रदर्शनों को इस प्रकार प्रसारित करना शुरू कर दिया मानो सारे देश में
हिन्दू-मुस्लिम दंगे ड़क चुके हांे। चैनल के एंकर इस प्रकार की ाषा का प्रयोग कर
रहे हैं और उनकी शैली इस प्रकार की है। मानो देश के मुसलमानों को ललकार रहे हों कि
ारत में मुसलमानों पर इतने अत्याचार हो रहे हैं तुम अी तक सोए हुए हो। गलियों
में नहीं निकल रहे। दुकानों को आग नहीं लगा रहे। बसों को जला नहीं रहे। और यदि देश
में कुछ मुस्लिम बस्तियों में ऐसे प्रदर्शन हो जाते हैं तो चैनल के मुलाजिमों की
खुशी देखने लायक होती है। मानो उन्हीं अ॰श्य शक्तियों को रपट दे रहे हो कि सर, दंगा शुरू हो गया।
संघ परिवार को निशाना बनाकर ारत को घेरने की यह कोशिश उसी दिन से शुरू हो गई
थी जिस दिन संघ परिवार देश की राजनीति के केन्द्र बिन्दु में आ गया था । अमेरिका
की खुफिया ऐजेंसी सी.आई.ए ने तो अपनी वेब साईट पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को
बाकायदा हिन्दु उग्रवादी संगठन घोषित कर दिया है । अमेरिका की रणनीति में संघ
परिवार को उग्रवादी बताना उसकी ारत को लेकर विषय की राजनीति का स्पष्ट संकेत है
। इसी के बाद नरेन्द्र मोदी को अमेरिका का वीजा देने से इन्कार किया गया था। यह
केवल वीजा न देने का सामान्य केस नहीं था। बल्कि अमेरिका इसके माध्यम से संघ को
उग्रवादी सिद्ध करने के विश्व व्यापी अियान में हथियार के रूप में इस्तेमाल कर
रहा था। परंतु इन शक्तियों के तमाम प्रयासों के बावजूद नरेन्द्र मोदी की छवि
उग्रवादी एवं कट्टरवादी की न बनकर विकास पुरूष के रूप में बन रही थी। नरेन्द्र
मोदी की छवि कमोबेश संघ परिवार की छवि से जोड़ कर देखी जाने लगी। एक बार यदि
नरेन्द्र मोदी को उग्रवादी सिद्ध करदिया जाता है तो वही निष्कर्ष संघ परिवार पर
लादे जा सकते हैं। जब इन शक्तियों की रणनीति असफल होने लगी तो इन शक्तियों की
चिंता बढने लगी। नरेन्द्र मोदी और संघ परिवार की गैर उग्रवादी छवि ारत को अपने
शिकंजे में कसने की अमेरिकी रणनीति में सबसे बड़ा रोड़ा सिद्ध हो सकती थी। क्योंकि
सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को ारतीय राजनीति के केन्द्र में स्थापित करके अमेरिका
ने लड़ाई का पहला हिस्सा जीत ही लिया है।
गुजरात विधानसा चुनावों के ऐन पहले एक पत्रकार और इलैक्ट्रानिक चैनल की मिली गत
से गुजरात दंगो को स्क्रीन पर पुनः जीवित करने के प्रयासों को इसी पृष्ठ ूमि में
देखा जाना चाहिए। क्योंकि यदि रात के अंधेरे में कैमरा लेकर घूमने वाले पत्रकार का
उद्धेश्य केवल ‘खोजी पत्रकारिता होता’ तो उसका सहवागी चैनल इस पूरे घटनाक्रम की आड़ में
मोदी, विश्व हिन्दु परिषद, ाजपा और राष्ट्रीय स्वंय
सेवक संघ के खिलाफ एक पक्ष के रूप में आंदोलन न छेड़ता। पत्रकारिता धर्म तथ्य का
पता लगाना है न कि आंदोलन चलाना। इसलिए पत्रकार और चैनल दोनों की नीयत पर शंका
होती है। जो ी शक्तियां इस पूरी रणनीति के पीछे रही होंगी। उनको शायद आशा होगी।
या फिर उनका प्रयास ही होगा कि उनके इस कृत्य से देश र में हिन्दुं मुस्लिम दंगे ड़क
उठेगंे और संघ परिवार को उग्रवादी सिद्ध करने में यह घटना क्रम प्रर्याप्त सहायता
देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ । परंतु इसका अर्थ यह नहीं लिया जाना चाहिए कि गोरी शक्तियों
ने अपनी साम्राज्यवादी मानसिकता त्याग दी है या फिर उन्होंने ारत को घेरने की
अपनी साजिश को विराम दे दिया है । उनकी संघ परिवार के खिलाफ आगे की रणनीति का एक
संकेत इस पूरे तहलका में स्वंय ही दिखाई दिया था। जब दक्षिणी अफ्रिका की ारतीय
मूल की एक महिला एन.पिल्लै जो अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय की न्यायाधीश ी हैं, ने कहना शुरू कर दिया कि नरेन्द्र मोदी और विश्व
हिन्दु परिषद से जुड़े दूसरे नेताओं पर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में
मुकदमा चलाया जाना चाहिए। इस प्रकार के न्यायालय किन शक्तियों के मोहरे हैं यह किसी
से छिपा हुआ नहीं है। लेकिन जो लोग पिल्लै की इस मांग पर हिजड़ों की तरह तालियां
बजा रहे हैं उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि कल अमेरिका से कोई ऐसी मांग ी कर सकता है
कि दिल्ली में 1984 में पंजाबियों का कत्ले-आम करने वाले अपराधियों पर ी
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ही मुकदमा चलाया जाना चाहिए। ध्यान रहे अमेरिका
इत्यादि शक्तियां ारत को लातीनी देशों जैसा ‘बनाना
रिपब्लिक’ बना देना चाहती हैं। संघ
परिवार को आपराधिक और उग्रवादी सिद्ध करना उनका पहला कदम है और बाद में शासको को
प्रत्येक नीति गत निर्णयों के लिए वाशिंगटन की दौड़ लगवाना दूसरा कदम होगा। परंतु
देश का दुर्ाग्य है कि शायद दूसरे कदम के लिए देश के शासक पहले ही तैयार हो चुके
हैं अन्यथा दिल्ली मंे अमेरिका के राजदूत डेविड मलफोर्ड खुले आम देश के राजनैतिक
नेताओं से मिलकर ारत की राजनीति को अमेरिका के पक्ष में मोड़ने के सफल-असफल
प्रयास न करते।
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