देवयानी प्रकरण के बहाने अमेरिका के बढ़ते खतरे— डॉ कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
बीते साल की सबसे महत्वपूर्ण घटना अमेरीका द्वारा न्यूयार्क में भारत के कन्सुलेट में कार्यरत डिप्टी कन्सुलेट जनरल देवयानी खोबडगड़े की गिरफ्तारी कही जा सकती है। देवयानी को उनके नौकरानी संगीता रिचर्ड की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया था। इस गिरफ्तारी को लेकर भारत में, विदेशी भाषाओं एवं भारतीय भाषाओं के मीडिया में काफी हो-हल्ला मचता रहा है। जैसे संकेत मिल रहे हैं कुछ समय तक आगे भी यह शोर—शराबा होता रहेगा। भारत सरकार ने भी देवयानी प्रकरण से जुड़े मुद्दों को लेकर सख्त रूख अपनाया है। दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास को विशेष दर्जा देने वाली निशानियों को भी उठा लिया गया है। दूतावास में और उसके कांसुलेट जनरलों में काम करने वाले भारतीयों के वेतनमानों का लेखा—जोखा अमेरिकी दूतावास से मांगा गया है। समाचार पत्रों में भी इन मुद्दों को लेकर संपादकीय और अग्रलेख लिखे जा रहे हे ।
लेकिन दुर्भाग्य से, अनजाने में या फिर जानबुझकर इस पूरे प्रकरण में मीडिया और भारत सरकार दोनों उन मुद्दों पर ज्यादा हो-हल्ला कर रहे हैं जिन मुद्दों की अहमियत बहुत ही कम है। उदहारण के लिए अमेरिका सरकार ने यह जानते हुए भी कि देवयानी को कुटनीतिक सुरक्षा प्राप्त है, उसे गिरफ्तार किया। दूसरा गिरफ्तारी करते समय उसके साथ दुव्यवहार किया गया। उदहारण के लिए जब वह अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने जा रही थी तब उसे पकड़ा गया, उसको हथकड़ी लगाई गई, उसे वस्त्रहीन करके तलाशी ली गई और उसे खतरनाक अपराधियों के साथ रखा गया। अखबारों में इस बात को लेकर बहस हो रही है कि घरेलू काम करने वाली उस नौकरानी को कितनी वेतन दी जानी चाहिए थी, इस बात पर भी बहस हो रही है कि अमेरिका में भारतीय दूतावास में काम करने वाले कर्मचारियों को वेतन अमेरिकी नियमों के अनुसार मिलना चाहिए या भारतीय नियमानुसार। कुल मिलाकर देवयानी प्रकरण विदेश मंत्रालय की दृष्टि में और मीडिया की नजर में इन्हीं मुद्दों तक सिमटा हुआ है और मामले को निपटपाने के लिए भी एक रेखा खींच दी गई है कि अमेरिका इस प्रकरण को निपटाने के लिए अपने व्यवहार को लेकर क्षमा मांगे। निश्चय ही अमेरिकी सरकार, सीआईए और उसके नीति निर्धारित भारत की इस सीमित प्रतिक्रया को लेकर प्रसन्न हो रहे होंगे। पूरे प्रकरण पर वाशिंगटन में या उसके प्रतिनिधियों ने खेद तो प्रकट कर ही दिया है। धीरे—धीरे वह समय पाकर गोल—मोल भाषा में क्षमा याचना भी कर ही लेंगे और उसे साउथ ब्लॉक संतुष्ट हो जाएगा, मीडिया भारत की विजय के गीत गाएगा और अमेरिका अपने असली मुद्दे को परोक्ष रूप से भारत में स्थापित कर देने से प्रसन्न होगा।
देवयानी प्रकरण में असल मुददा कौन सा है इसे भारत सरकार उठाना नहीं चाहती, मीडिया उस पर चर्चा से बचता है, सिद्ध करने के लिए अमेरिका ने देवयानी के गिरफ्तारी का माध्यम चुना। वह मुद्दा है अमेरिका द्वारा परोक्ष रूप से भारत की प्रभुसत्ता को चुनौती। अमेरिकी सरकार ने देवयानी प्रकरण के बहाने, दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने, भारत के तीन नागरिकों, फिलिप रिचर्ड और उसके दो बच्चों को गैरकानूनी ढ़ग से भारत से भगाने का काम किया है। इन तीनों नागरिकों को अमेरिकी दूतावास ने सभी नियमों को तोड़ कर वीजा प्रदान किया।
फिलिप पर भारत में आपराधिक मामला दर्ज है। केवल वीजा ही नहीं दिया बल्कि दूतावास ने अपने ही खर्च पर इनको छिपाकर भारत के बाहर भेज दिया। इसे कानून की भाषा में भारत के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र कहा जाएगा। प्रश्न यह है कि क्या अमेरिका किसी दुसरे देश से, वहां के नागरिकों को चोरी—छिपे आपराधिक षड्यंत्र द्वारा देश से बाहर ले जा सकता है? अमेरिका का ये कहना है कि उसके अपने देश में ऐसे कानून है जो उसे अधिकार देते हैं कि यदि किसी दूसरे देश में वहां के नागरिकों को वहां की सरकार प्रताड़ित कर रही है, तो अमेरिका उन नागरिकों की सुरक्षा के लिए संभव कदम उठा सकता है। रिचर्ड के मामले में अमेरिका का कहना है कि संगीता रिचर्ड के परिवार पर भारत में नाजायज दबाव डाला जा रहा था, इसलिए न्यूयार्क में बैठी संगीता अपनी कानूनी लड़ाई भय रहित होकर नहीं लड़ सकती थी। संगीता को भयरहित करने का अमेरिका के पास एक ही तरीका था कि उसके परिवार को किसी भी तरीके से, चोरी—छिपे, ताकि भारत सरकार को पता न चल सके, बाहर निकाला जाए। अमेरिका सरकार ने इस मामले में यही किया। यूरोप के कुछ देशों और अमेरिका में ऐसा कानून है कि यदि किसी दूसरे देश का नागरिक वहां पहुंच कर, वहां कि सरकार के आगे गुहार लगाता है कि उसको अपने देश की सरकार से खतरा है, तो वह उसे शरण दे सकती है और वहां रहने का अनुमति पत्र भी जारी कर सकती है। लेकिन इस कानून का लाभ उठाने के लिए प्रार्थी को अपने बलबूते यूरोपिए देश अथवा अमेरिका में पहुंचना पड़ता है। तभी उसे इस कानून का लाभ मिल पाता है। लेकिन संगीता रिचर्ड के मामले में अमेरिका ने तीन भारतीय नागरिकों को भारत से उठाया है। यह एक प्रकार से भारत की प्रभुसत्ता का स्पष्ट ही उल्लंघन है।
क्या अमेरिका को ऐसे कानून बनाने का अधिकार है जो दूसरे देशों पर भी लागू होते हों? यदि भारत में अमेरिका के इस अधिकार को स्वीकार कर लिया है तो मान लेना चाहिए कि भविष्य के लिए एक अत्यंत खतरनाक संदेश उसने दिया है। अमेरिका ने यह कहना शुरू कर दिया है और वह पूरी शक्ति और अधिकार से इस बात को दोहरता है कि विश्व भर में जिस किसी देश में भी आतंकवादी शक्तियां होंगी तो वह उनके विनाश के लिए कोई भी कदम उठाने का अधिकार रखता है। आतंकवाद और आतंकवादी शक्तियों को परिभाषित करने का अधिकार भी अमेरिका ने अपने पास ही सुरक्षित रखा है। इराक पर हमला करने से पहले अमेरिका सरकार इराक के राष्ट्रपति को आतंकवाद को फैलाने वाला और नरसंहार के हथियारों को बनाने वाला घोषित कर दिया था। अपनी इसी घोषणा को प्रमाण बता कर अमेरिका ने उस पर आक्रमण किया और उसकी सत्ता को नष्ट कर दिया। बाद में अपनी निष्पक्षता को अक्षुण्ण रखने के लिए अमेरिकी मीडिया ने स्वयं ही कहा कि सद्दाम हुसैन पर लगाए गए आरोप निराधार थे। देवयानी प्रकरण और उसमें अमेरिकी सरकार द्वारा भारतीय नागरिकों को चोरी—छिपे देश से भगाने के आपराधिक षड्यंत्र के बाद एक ऐसी स्थिति की कल्पना की जा सकती है, जो फिलहाल तो काल्पनिक लगे लेकिन भविष्य में देश की प्रभुसत्ता के लिए खतरे की घंटी बजा दे। भारत में पिछले कुछ अरसे से राष्ट्रवादी शक्तियों की स्थिति मजबूत होती जा रही है और उनके सत्ता के केंद्र में पहुंच जाने की संभावना प्रबल होती जा रही है। नरेंद्र मोदी के राजनैतिक क्षितिज पर उदय होने के बाद यह संभावना और भी बलवती हुई है। लेकिन अमेरिका परोक्ष रूप से इन राष्ट्रवादी शक्तियों को उग्रवादी और मुस्लिम— चर्च विरोधी घोषित कर रहा है। कल यदि देश में सत्ता इन राष्ट्रवादी शक्तियों के हाथ आती है और सोनिया गांधी पराजित होकर इन तथाकथित उग्रवादी और मुस्लिम—चर्च विरोधी शक्तियों से मुक्ति के लिए अमेरिका से सहायता की प्रार्थना करती है, तो अमेरिका का क्या रूख हो सकता है इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकाता है, क्योंकि देवयानी प्रकरण में भारत के तीन नागरिकों पर खतरा होने का तो अमेरिका सरकार ने स्वयं ही आंकलन किया है और स्वयं ही उसपर एक्शन भी लिया है। इस दृष्टि से भारत के कानून और न्ययपालिका की उसकी नजर में क्या औकाता है,यह अपने आप ही स्पष्ट हो जाता है पिछले दिनों अखबारों में छपा था कि भारतीय संसद के कुछ सदस्यों ने अमेरिका सरकार से बकायदा चिट्ठी लिखकर गुहार लगाई थी कि गुजरात के विधिवत निर्वाचित मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका में न घुसने दिया जाए, क्योंकि वह मुस्लिम और चर्च विरोध हैं। कहां जाता है कि इनमें कुछ सदस्य सोनिया गांधी वाली पार्टी के भी थे। कल यदि चुनावों में भारत की जनता सत्ता राष्ट्रवादी शक्तियों के हाथ में देने का निर्णय कर लेती है और यही सांसद एक बार फिर अमेरिका के आगे गुहार लगाते हैं और अमेरिका को बहाना भी प्रदान करते हैं, अमेरिका का क्या रूख होगा, तो उसका एक संकेत उसने भारत के तीन नागरिकों को अगवा कर के दे दिया है। देवयानी प्रकरण में असल मुद्दा यही है जिसपर चर्चा करने से भारत सरकार भी बच रही है और मीडिया भी।
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