डा0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
जुलाई के अंतिम सप्ताह में आस्ट्रेलिया में विश्व युवा दिवस संपन्न हुआ। इसमें
वेटिकन के पोप ने ी ाग लिया। जाहिर है कि जहां पोप आएंगे वहां दुनिया र के ईसाई
इक्ट्ठे होंगे। आखिर मजहबी आस्था की बात है। पोप को वैसे ी ईसाई मत में क्त और ईश्वर
के बीच मध्यस्थ माना जाता है। इसलिए ईसाई जगत में पोप का रूतबा साधारण साधुसंतों से
कहीं ज्यादा होता है। अमूमन तो उनका दर्जा ईश्वर के आसपास ही ठहरता है। ऐसे अवसर पर
हर आस्थावान ईसाई सांसारिक पचड़ों से दूर रहकर पोप के प्रवचन सुनने के लिए उपस्थित
होना चाहेगा। दुनिया र से लगग दो लाख श्रद्धालु वहां इक्ट्ठे हुए । ऐसे अवसर प्रायः
आध्यात्मिकता से परिपूर्ण होते हैं और क्तों की इच्छा रहती है कि वे जितना संव हो सके सांसारिक बुराइयों से
दूर रहने का प्रयास करें। लेकिन चर्च ने यहां ी घपलेबाजी शुरू कर दी और कबूतरबाजी
का काम शुरू कर दिया। कहा जा रहा हैकि ारत से जाने वाले ईसाइयों का जत्था सबसे बड़ा
था। इन ईसाइयों को न्यूजीलैंड से होते हुए आस्ट्रेलिया पहुंचना था और वहां पोप के दर्शन
करने थे और उनका प्रवचन सुनना था। लेकिन चर्च ने जिन यीशु पुत्रों की फौज र्ती की
थी उन क्तों में और चर्च में शायद आध्यात्मिकता
का रिश्ता कम था और व्यवसायिक रिश्ता ज्यादा था। वैसे ी नियोगी आयोग ने वर्षों पहले
खुलासा कर दिया था कि चर्च ारत के लोगों को छल-बल-कपट से ईसाई मजहब में दीक्षित कर
रहा है। बाद में कुछ राज्य सरकारों ने ऐसे कानून ी बनाए या कानून बनाने का प्रयास
किया कि किसी ी व्यक्ति का कपट अथवा लो से मजहब परिवर्तन न किया जाए। परन्तु तब पोप
ने इतनी आंखें लाल की कि वेटिकन में गए ारतीय राजदूत को सी के सामने अपमानित किया
सोनिया गांधी तो ठहरीं इसी पोप की अनुयायी । इसलिए उसने ारत में राज्य सरकारों के
लिए ऐसे कानून बनाना ही लगग असंव बना दिया। राजस्थान विधानसा लो और छल से मजहब
परिवर्तन को रोकने के लिए अनेक बार बिल पारित कर चुकी है। लेकिन राज्यपाल प्रतिा पाटिल
ने उसको राष्ट्रपति तक पहुंचा दियाऔर कहीं गलती से राष्ट्रपति उस बिल को स्वीकृति न
दें दें इसलिए सोनिया ने प्रतिा पाटिल को ही राष्ट्रपति वन पहुंचा दिया। जाहिर है
चर्च पर अब इस देश में कोई रोक नहीं है और चर्च ने अब लोगों का मजहब परिवर्तन करवाने
के लिए कबूतरबाजी का सहारा लेना शुरू कर दिया है। कुछ लोगों को लालच दिया गया होगा
कि आपको किसी न किसी ढंग से न्यूजीलैंड या आस्ट्रेलिया पहुंचा देंगे। शर्त यह है कि
आप अपना मजहब छोड़कर ईसाई मजहब ग्रहण कर लो। पंजाब और दिल्ली में विदेशों में बस जाने
की चाह अन्य प्रांतों से कहीं ज्यादा है और पंजाब में चर्च के पांव गहराई से जम ी
नहीं पा रहे थे। इसलिए चर्च ने पंजाबियों की बाहर जाने की कमजोरी को ही पकड़ा और उनके
गले में चर्च का सलीव लटकाना शुरू कर दिया। चर्च की सहायता से न्यूजीलैण्ड पहंुचे इन
नव परिवर्तित ईसाइयांे में से 40 के लगग तीर्थयात्री न्यूजीलैण्ड में ही गायब हो गए।
ये ईसाई न्यूजीलैण्ड के चर्च में ठहरे हुए थे। जब न्यूजीलैण्ड की पुलिस ने सख्ती की
तो उनमें से कुछ पकड़े ी गए। उनमें से कुछ ने यह बताया कि हमें न्यूजीलैण्ड में स्थाई
रूप से बसाने के लिए प्रति व्यक्ति 17 हजार डाॅलर लिए गए। ताज्जुब इस बात का है कि
जब चर्च की यह कबूतर बाजी दिन दहाड़े नंगी हो गई है तो न्यूजीलैण्ड के कैथोलिक चर्च
की प्रतिलिपि लिन्डसे फ्रीरर कह रही है कि
जो लोग गायब हुए हैं इसमें आश्चर्य करने वाली कोई बात नहीं है इतने ज्यादा ईसाई क्तों
में से 32 का गायब हो जाना कोई मायने नहीं रखता। ये सब वास्तविक तीर्थ यात्री ही हैं।
बेचारी फ्रीरर ठीक ही कह रही हैं। चर्च के लिए मुख्य उद्देश्य अपनी ेड़ों की संख्या
बढ़ाना है। चर्च को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह ेड़ें पोप के सामने हाजिर
होती हैं या फिर न्यूजीलैण्ड मे रहकर ही यीशु की तलाश करती हैं।
यह बड़े दुख का विषय है कि ारत में अपनी ेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए चर्च
अब इस स्तर तक उतर आया है बताया तो यह ी जा रहा है कि पोप का आर्शीवाद लेने के लिए
दुनिया र से जाने वाले ईसाइयों में सबसे बड़ा जत्था इन ारतीय परिवर्तित ईसाइयों का
ही था। जरूरी है कि ारत सरकार इस बात की जांच करवाए कि चर्च कबूतर बाजी के इस काम
में कब से जुटा हुआ है? यह अकस्मात ही हुआ कि न्यूजीलैण्ड
पुलिस ने गायब होने वाले इन चर्च क्तों को पकड़ लिया अन्यथा पता नहीं चर्च का यह खेल
कितनी देर तक और चलता रहता। चर्च अच्छी तरह जानता है कि वह ारत में यीशु मसीह के सलीव
या छल से या य से या लो से ही लटकाये जा सकते हैं अन्यथा इनका कोई नाम लेवा नहीं
मिल सकता क्योंकि ारतीय परंपरा में ईश्वर और क्त का सीधा संवाद है उसमें दलालों की
ूमिका नगण्य है। जब-जब ईश्वर और क्त के बीच दलाल उरे ती समाजसुधारकों और साधकों ने उसका विरोध किया और दलालों को ईश्वर
पथ के रास्ते से हटाया ारतीय परंपरा में गुरु की ूमिका वंदनीय है। दलाल की ूमिका
निंदनीय है। लेकिन दुर्ाग्य से ईसाई मत में सारी संरचना ही दलाल की ूमिका पर टिकी
हुई है। यही कारण है कि प्रारंिक दौर में ईसाई मत ारत में अपने पैर नहीं जमा पाया
। लेकिन पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और ब्रिटिश सŸाा काल में, सŸाा के बलबूते पर ही चर्च ने साम दाम
दंड ेद सी उपायों का प्रयोग करके ईसाई ेड़ों की संख्या बढ़ाने में सफलता प्राप्त
की। तब यह प्रश्न उठ सकता है कि यदि चर्च में आध्यात्मिकता और क्ति का पुट नहीं है
तो आखिर ारत में ईसाइयों की संख्या बढ़ाने में उसकी रूचि क्यों है? यूरोप का और चर्च का इतिहास जानने वालों के लिए यह रहस्य छिपा हुआ नहीं है। चर्च आध्यात्मिक क्षेत्र
में इतना सक्रिय की नहीं रहा जितना सांसारिक क्षेत्र में । ऐसा माना जाता है कि चर्च
यूरोपीय साम्राज्यवाद का हरावल दस्ता है जो किसी ी देश को मानसिक तौर पर अपने गोरे
महा प्रुओं की शरण में जाने के लिए तैयार
करता है। ारत में चर्च के इस काले इतिहास में कबूतर बाजी का एक नया अध्याय जुड़ गया
है और यदि सोनिया गांधी सचमुच इस देश की मिट्टी से जुड़ गई है तो उनकी पहली परीक्षा
का यही अवसर है कि वे चर्च के इन कारनामों की कार्रवाई करवाए।
दिनांक: 20 जुलाई 2008
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