Tuesday, 14 January 2014

तसलीमा नसरीन की नजरबंदी से बेनकाब हुए अनेक चेहरे:

 डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
तसलीमा नसरीन को दिल्ली में ारत सरकार ने एक प्रकार से सरकार ने उसके घर में ही नजरबंद कर दिया है। वैसे नसरीन के बंगाली ाई विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी इस नजरबंदी की बात को नकार रहे हैं। प्रणव बाबू खुद की नजरबंद रहे हैं या नहीं इसका किसी को ज्यादा ज्ञान नहीं है। लेकिन जो लोग जेल यात्रा करते रहते हैं, उनको पता है कि किसी ऐसी जगह पर किसी को बैठा देना जहां से वह अपनी इच्छानुसार कहीं जा न सकता हो, कोई उसे मिल न सकता हो, अपनी इच्छानुसार वह अपनी बात कह न सकता हो और न ही अपनी इच्छानुसार लिख सकता हो इसी को नजरबंदी कहते हैं। तसलीमा नसरीन बंगाली कन्या है। साम्यवादियों ने, कांग्रेस ने और अंग्रेजों ने मिल-मिलाकर उस बंगाल के बीच में क्या-क्या लकीरें खींच दी । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। संव है कि आगे ी कौन सी नई लकीरें खींच जाएं, इस पर अब अविश्वास नहीं किया जा सकता? परंतु इन लकीरों का खामियाजा तसलीमा नसरीन को ुगतना पड़ रहा है। बांग्लादेश में तसलीमा नसरीन ने ऐसी गाथाएं लिखनी शुरू कर दी, जिससे वहां रह रहे हिन्दुओं की  अंतरव्यथा ध्वनित होती थी। ारतवर्ष में, जिसमें इस विश्लेषण के लिए बांग्लादेश और पाकिस्तान को ी शामिल किया गया है, कुछ-कुछ ऐसी स्थिति बनती जा रही है कि जो ी हिन्दू की बात करता है, वह तुरंत फायरिंग जोन में आ जाता है। तसलीमा नसरीन बांग्लादेश मंे इसी प्रकार के फायरिंग जोन में फंस गई थी। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि इस फायरिंग जोन में बंदूक सिर्फ कट्टरपंथी चला रहे हैं परंतु तसलीमा के केस को देखकर ऐसा लग रहा है कि यह बंदूक कट्टरपंथियों के हाथ में ी है और इस क्षेत्र की सरकारों के हाथ में ी। जो हिन्दुओं की बात करता है उसको इन दोनों के ही कोप का ाजक बनना पड़ता है। तसलीमा नसरीन बांग्लादेश से ारत मंे आई थी। दुर्ाग्य से उसने यहां आकर ी इस्लाम के कट्टरपंथी चेहरे को बेनकाब करना नहीं छोड़ा। उसका साहस देखिए कि उसने द्विखंडिता लिख दी। खंडित ारत में द्विखंडिता ! जाहिर था कि जो लोग ारत को 1947 में खंडित करवाने में सफल हो चुके थे उन्होेंने 2007 मंे ी तसलीमा नसरीन को घेर लिया। सीपीएम को नंदीग्राम का ालू नोंच रहा था। इसलिए सीपीएम ने मुस्लिम सांप्रदायिकता से हाथ मिला लिया। इस्लामी कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक दिए और तसलीमा नसरीन को पश्चिमी बंगाल से गा दिया। पूर्वी बंगाल की इस कन्या को न ढाका में सुख है और न कोलकाता में। क्योंकि यह बंग कन्या सत्य बोलती हुई ढाका और कोलकाता की सड़कों पर घूमती रही है। कोलकाता से आते ही उसे दिल्ली सरकार ने पकड़ लिया और उसे घर में नजरबंद कर दिया। इतना ही नहीं यदि उसने जबान खोली तो उसे आर्यवर्तकी धरती से बाहर कर दिया जाएगा, ऐसी धमकी ी सोनिया गांधी की सरकार ने दे डाली। सीपीएम को नंदीग्राम के ूत से पीछा छुड़ाना था इसलिए उसने मुस्लिम सांप्रदायिकता से समझौता किया और कांग्रेस को गुजरात में मुसलमानों के वोट लेने थे इसलिए उसने इस्लामी कट्टरता से हाथ मिला लिया और दोनों ने मिलकर तसलीमा नसरीन को बीच बाजार में फांसी के तख्ते पर लटका दिया। यह फांसी उसके विचारों की फांसी है। उसकी आस्था की फांसी है। उसके विश्वास की फांसी है।
लेकिन उसके बाद वे सी चेहरे धीरे-धीरे बेनकाब होते गए जो इतने सालों से मानवाधिकारों का मुखौटा पहनकर घूम रहे थे। बडौदा विश्वविद्यालय में देवी-देवताओं का अपमान करने वाले एक छात्र के निलंबन को लेकर जिन लोगों ने आसमान सिर पर उठा लिया था, तसलीमा नसरीन के हश्र को देखकर उनकी जी तालु से चिपक गई। जावेद अख्तर मौन हो गए। शबाना आजमी शायद नमाज़ पढ़ने चली गई हो। तीस्ता सीतलवाड़ तीस्ता नदी की लहरें गिनने में ही व्यस्त हो गई लगती हैं। तारकुंडे के चेले अपनी गुफाओं में छिप गए लगते हैं। राजेन्द्र सच्चर सच को शायद इतना नजदीक देखकर अपने बंगले में छिप गए लगते हैं । मुसलमानों के विकास के लिए विशेष बजट का प्रावधान करने वाले और उनके लिए आरक्षण का ढोल पीटने वाले तसलीमा नसरीन से आँखें चुराकर निकल रहे हैं। सैय्यद शहाबुद्दीन अपने सैय्यद होने की गुरुता मंे ही शायद दब गए लगते हैं। पता कर लिया जाए तसलीमा नसरीन सैय्यद है या नहीं। ये वे चेहरे हैं जो तसलीमा नसरीन के इस प्रकरण में बेनकाब हो गए हैं । परंतु ारत की जनता तसलीमा नसरीन के साथ है क्योंकि न उसने  सीपीएम का नंदीग्राम में पीछा करना छोड़ा है और न ही उसने कांग्रेस की आशाओं के  अनुरूप गुजरात में उसे विजयी ही बनाया है।
तसलीमा नसरीन की इस लड़ाई में वे चेहरे ी बेनकाब हुए हैं जो मजहब परिवर्तन करके बने मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए दिनरात एक कर रहे है। रंगनाथ मिश्रा आयोग के सदस्य मौन है। लोगों के मानवीय अधिकारों की आड़ में राजनीति की रोटियां सेंकने वाले चुप हैं। की ारतेन्द्र हरिश्चन्द्र ने लिखा था-वैदिकी हिंसा, हिंसा न वति।शायद मुसलमानों के दुःखों को लेकर काल्पनिक हो-हल्ला मचाने वाले ये वीर इस बात को नहीं समझते कि एक चिंतनशील प्राणी का सबसे बड़ा दुःख तब होता है। जब उसकी आवाज को बंद कर दिया जाए। तसलीमा नसरीन के मामले में ऐसा ही हुआ है और दुर्ाग्य से इस पूरे प्रश्न को सांप्रदायिकता के रंग में देखा जा रहा है। इस देश का यही दुर्ाग्य है कि यहां मानवाधिकार के प्रश्न को ी सांप्रदायिकता के चश्मे से देखा जा रहा है। यहां हिन्दू का दर्द, दर्द नहीं माना जात है और मुसलमान का दर्द ही सही दर्द है। यदि इसी मानसिकता से राज्य चलेगा तो दरारें बढ़ेंगी, कम नहीं होंगी। 1947 से पहले की अंग्रेज सरकार ी दरारें बढ़ा रही थी और आज की कांग्रेस और सीपीएम की सरकार ी यही धंधा कर रही है। सरकार राज धर्म का पालन नहीं कर रही , लगता है वह इस्लाम धर्म का पालन कर रही है जिसके अनुसार मोमिन की मानसिकता पर उंगली उठाना ही कुफ्र है। तसलीमा नसरीन ने यह कुफ्र किया है और ारत सरकार उसे इस कुफ्र का दंड दे रही है। मुसलमानों को जश्न मनाना चाहिए कि अंततः हिन्दुस्तान दारूल इस्लाम बन गया है। जिसमें कांग्रेस और सीपीएम मौलवी की ूमिका में उतर आए हैं।

और अंत में:- करवाचैथ का दिन था। श्रीमती जी ने तड़के ही उठकर रसोई में खटर-पटर शुरू कर दी। तड़के उठने के कारण वह स्वयं ी दुःखी थी। ऊपर से सारे दिन का व्रत रखना था और पूजा की वह तैयारी कर ही रही थी। पतिदेव की ी नींद टूटी । ब्रह्म मुहूर्त की नींद टूटने से जो कष्ट होता है वह जाहिर है कि पतिदेव को हुआ। उसने गुस्से से पत्नी को कहा-यह क्या खट-खट लगा रखी है, सोने ी नहीं देती।पत्नी तो पहले ही गुस्से में थी। उसने तुनक कर कहा-तुम्हारा ही स्यापा कर रही हूँ।पति ने कहा- तब ठीक है, करती रहो।

दिनांक: 25 दिसंबर 2007, बुधवार


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