Tuesday, 14 January 2014

अरुणाचल प्रदेश को भारत से तोड़ने की साजिश

डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
दिनांक: 4 जून 2007
स्थान: नई दिल्ली
ारत और चीन की लड़ाई को हुए अब चालीस वर्ष से ी ज्यादा हो गए हैं। 1962 की इस लड़ाई के बाद कुछ वर्षों तक दोनों देशों के बीच संबंध समाप्त हो गएथे । दोनों के दूतावास ी बंद हो गए थे। परंतु 1976 में जिन दिनों ारत में आंतरिक आपात् स्थिति की घोषणा हो चुकी थी, श्रीमती इंदिरा गांधी ने पुनः चीन से संबंध स्थापित करने की पहल की। चीन के साथ पुनः संबंध स्थापित तो हो गए लेकिन इस संबंध रचना में चीन की मुख्य शर्त यही थी कि ारत सरकार तिब्बत और ारत के बीच सीमा को विवादग्रस्त प्रश्न स्वीकार करे। चाहे प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से, ारत सरकार ने चीन की इस मांग के आगे घुटने टेक दिए। प्रत्यक्ष रूप में तो ारत सरकार यह कहती रही और शायद अी ी कह रही है कि ारत और तिब्बत के बीच सीमा रेखा का निर्धारण मैकमहोन लाइन से ही निश्चित हो चुका है। परंतु इसके साथ ही ारत सरकार ने चीन के साथ सीमा निर्धारित करने के प्रश्न को लेकर बातचीत शुरू कर दी। 1962 में चीन ने ारत पर सामरिक विजय प्राप्त की थी। लेकिन 1976 के बाद चीन ने कांग्रेस सरकार की उसी पुरानी ढुलमुल नीति के कारण कूटनीतिक क्षेत्र में ी विजय प्राप्त की।

ारत सरकार पिछले कुछ सालों से देश के लोगों को मानसिक रूप से यह समझाने का प्रयास कर रही है कि ारत और तिब्बत (चीन) के बीच की पर्वतीय सीमा ठीक तरह से निर्धारित नहीं है इसलिए इसे चीन के साथ वार्ता करके ही निर्धारित किया जा सकता है और यह निर्धारण कुछ ले देकर ही हो सकता है। इन प्रयासों में ारत सरकार के शब्दों में एक छिपी हुई धमकी ी रहती है कि चीन एक ताकतवर देश है, ारत उससे पंगा नहीं ले सकता। इसलिए मामला ले देकर ही निपटाना होगा। यह धमकी ारतीयों के लिए ही हो सकती है। क्योंकि चीन को धमकी देने से संबंधों के बिगड़ने का खतरा है। यह सारा अियान कुछ इस लहजे में चलाया जा रहा है कि अपने आप ही स्पष्ट हो जाएकि ारत को केवल देना ही देना है चीन से कुछ लेने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता।

जिस तेजी से यह अियान चल रहा है उससे यह आशंका जन्म लेती है कि निश्चय ही ारत सरकार के ीतर एक सशक्त चीन समर्थक लाॅबी है जो प्रयत्न पूर्वक चीन के हितों की रक्षा कर रही है। जिस प्रकार महाारत में कर्ण के रथ पर बैठा सारथी शल्य कर्ण के मनोबल को गिराता रहता था उसी प्रकार ारत सरकार के रथ पर ऐसा कौन-से सारथी बैठे हुए हैं जो चीन की तुलना में ारत का मनोबल गिराने का कार्य निरंतर कर रहे हैं। ारत चीन संबंधों और उससे उत्पन्न हुई कूटनीति पर विचार करने से पहले इस सारथी की शिनाख्त करना बहुत ही जरूरी है। हो सकता है कि इसकी शिनाख्त हो ी चुकी हो। आखिर 1962 की लड़ाई में दिल्ली से लेकर कोलकाता तक कुछ लोग सीधे-सीधे चीन के समर्थन में खड़े हो गए थे। बाद में तो स्थिति यहां तक पहुंची कि उनकी संतानें खुलकर नारें लगानी लगीं कि चीन का चैयरमेन माओ हमारा ी चैयरमेन है। अब तो सुना है कि वेटिकन के पोप ी चीन पर प्रसन्न हो रहे हैं क्योंकि चर्च के ही अनुसार ईसाइयत का जितना जबरदस्त स्वागत चीन में इन दिनों हो रहा है उतना तो ईसाइयत के दो हजार साल के इतिहास में कहीं नहीं हुआ। इस प्रकार के वैश्विक वातावरण में ारत सरकार के चीन परस्त सारथियों की शिनाख्त करना मुश्किल नहीं है।
सारथी की शिनाख्त कब होगी या फिर उसे निष्प्रावी कैसे किया जा सकता है? यह प्रश्न ारत चीन संबंधों के साथ उसके जन्म काल से ही जुड़ा हुआ है। लेकिन लगता है इधर ारत और चीन में इस सीमा वार्ता को लेकर एक सहमति पनपती नजर आ रही है। दोनों देशों की सरकारें इस बात पर एक मत दिखाई दे रही है कि ारत की जनता से इस बातचीत को छिपाया जाएऔर इससे ी आगे बढ़कर ारत चीन संबंधों के किसी ी मसले को ारत की जनता में न ले जाया जाए। दोनों देशों की सरकारों को यह आशंका है कि इससे ारत की जनता ड़कती है और उसके ड़कने से दोनों सरकारें वह नहीं कर पाएंगी जो वे करना चाहती हैं। यह बात पहले तो दिल्ली में चीन के राजदूत सुन युशी ने एक अंग्रेजी अखबार को कही और यही बात बीजिंग में चीन के विदेश मंत्रालय ने दोहरा दी है।

चीन ने इस पूरी रणनीति में इधर एक नया फ्रंट खोल दिया है। यह अरुणाचल प्रदेश का फ्रंट है। ारत चीन वार्ता की इस लंबी यात्रा में चीन अरुणाचल प्रदेश को लेकर ्रम की स्थिति पैदा करना चाहता है । वह अरुणाचल प्रदेश के लोगों को ावात्मक स्तर पर ारत से तोड़ना चाहता है। उसे पता है कि वह अरुणाचल प्रदेश को बलपूर्वक नहीं हथिया सकता लेकिन वह जानता है कि यदि इस प्रदेश को लेकर अरुणाचलियों के मन में दुविधा उत्पन्न कर दी जाए तो यह सामरिक सफलता से ी बड़ी सफलता होगी। इसलिए उसने पिछले तीन-चार सालों से बार-बार कहना शुरू कर दिया है कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है। यह बात चीन दिल्ली को कम सुना रहा है और अरुणाचलियों को ज्यादा । वह अरुणाचलियों से सीधा-सीधा संवाद कायम करने का प्रयास कर रहा है। दरअसल वह अरुणाचलियों को स्पष्ट संदेश दे रहा है कि आप चीन के नागरिक हो। अरुणाचलियों को आशा थी और है कि ारत सरकार चीन को इसका मुंह तोड़ जवाब देगी। लेकिन ारत सरकार को मुंह तोड़ जवाब तो क्या देना था उसने चीन के इस दावे का खंडन ी इस प्रकार किया जिससे लगे कि सचमुच अरुणाचल, ारत और चीन के बीच विवाद का मुद्दा है। ारत सरकार ने तिब्बत के साथ लग रहे अरुणाचल प्रदेश के सीमांत के गांवों में विकास के नाम पर पिछले चालीस सालों में कुछ नहीं किया है। न वहां सड़कें हैं, न स्कूल हैं और न अस्पताल हैं। जबकि इसके मुकाबले चीन ने अरुणाचल प्रदेश से लगते उन तिब्बती क्षेत्रों में जिस पर उसने कब्जा किया हुआ है सीमांत तक सड़कों का निर्माण करवाया है। इसका अप्रत्यक्ष संकेत यही निकलता है कि ारत सरकार को डर है कि आगामी किसी लड़ाई में चीन यदि अरुणाचल प्रदेश के इन इलाकों पर कब्जा कर लेता है तो उसे इस आधारूत संरचना का ला मिलेगा। इसलिए ारत सरकार ने अधारूत संरचना का निर्माण ही नहीं किया है। दूसरा शायद ारत सरकार को यह ी लगता हो कि कल यदि किसी ले-दे में अरुणाचल प्रदेश का यह हिस्सा चीन को देना पड़ा तो इसे इस आधारूत संरचना ला क्यों मिले? ये दोनों ही स्थितियाँ अरुणाचल प्रदेश के लोगों को ीतर से तोड़ने के लिए पर्याप्त हैं। पिछले दिनों दिल्ली में चीन के राजदूत सुन युशी ने स्पष्ट कहा था कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है। ऐसी स्थिति में यदि ारत सरकार सुन युशी को ारत में अवांछित व्यक्ति घोषित कर देती और साथ ही चीन के राष्ट्रपति हू-जिन-ताओ की ारत यात्रा को रद्द कर देती तो अरुणाचलियों को इस बात का विश्वास हो जाता कि ारत सरकार अरुणाचल प्रदेश को ी उसी प्रकार ारत का हिस्सा मानती है जिस प्रकार हरियाणा और आंध्र प्रदेश को। लेकिन दुर्ाग्य से ारत सरकार ने अरुणाचलियों का अपमान किया  और हू-जिन-ताओ के स्वागत में पलख पांवड़ें बिछा दिए। इधर मुंबई के एक अंग्रेजी अखबार ने तो जो बुढ़ापे में नख दंतहीन हो चुका है परंतु बूढ़ी घोड़ी लाल लगामकी तरह उछल कूद करके जनता का मनोरंजन करने का प्रयास कर रहा है, ने ारत सरकार को एक और सलाह दे दी हैकि चीन अरुणाचल प्रदेश के बारे में जो कहता है उसे कहने दें । अरुणाचल प्रदेश के छोटे से प्रश्न पर ारत को चीन के साथ अरबों का व्यापार तबाह नहीं कर लेना चाहिए। सीपीएम ने तो स्पष्ट कह ही दिया है कि चीन गलत क्या कह रहा है? अरुणाचल प्रदेश को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद तो है ही । इन सी से अरुणाचलियों के मन में दुविधा और ्रम पैदा हो रहा है। ावात्मक लगाव के रास्ते में यह दुविधा और ्रम ही जहर का कार्य करता है और लगता है यह जहर धीरे-धीरे फैलने लगा है। अखिल अरुणाचल छात्र परिषद ने कहा है कि यदि ारत अरुणाचलियों को लेकर ्रम की स्थिति में है तो हमें चीन और ारत के बीच में एक बफर स्टेट के रूप में स्वीकार कर लिया जाए। अरुणाचल प्रदेश को ारत के ीतर ही तीनों ओर से घेरा जा रहा है। चर्च उसका तेजी से ईसाईकरण कर रहा है। यदि वहां की सरकार इसको रोकने का प्रयास करती है तो दिल्ली से बहुत ारी दबाव पड़ता है। कम्युनिस्टों की ॰ष्टि में अरुणाचल है ही विवादग्रस्त और मुंबई की बूढ़ी घोड़ी की ॰ष्टि में अरुणाचल प्रदेश का प्रश्न ही तुच्छ है। जैसे की नेहरू की ॰ष्टि में ारत के जिस इलाके पर चीन ने कब्जा कर लिया था उस इलाके में घास का तिनका तक नहीं उगता था । ऐसी स्थिति में विदेश मंत्रालय ने एक अरुणाचली युवक का पासपोर्ट वीजा के लिए चीनी दूतावास के पास ेजा और दूतावास ने अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार ही उस अरुणाचली युवक को चीन का नागरिक बताकर चीन में कहीं ी आने जाने का निमंत्रण दिया। विदेश मंत्रालय जानता था कि इस पासपोर्ट का यही हश्र होने वाला है। फिर ी ऐसे समय जब अरुणाचली पहले ही चीन के दावों के कारण ावात्मक स्तर पर घायल है यह षड्यंत्र पूर्वक कारनामा, जिससे अरुणाचलियों में और ज्यादा दुविधा उत्पन्न हुई हैं किसने किया है? इसकी जांच करने की जरूरत है। ौगोलिक स्तर  पर चीन क्या करता है यह बाद की बात है लेकिन ावात्मक स्तर पर वह अरुणाचल प्रदेश को ारत से तोड़ने की साजिश कर रहा हैऔर दुर्ाग्य से उसके अनेक सारथी ारत के ीतर ही चीन की इस कूटनीति को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)


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