Tuesday, 14 January 2014

भारत और चीन की वार्ता-परदे के पीछे का डर

 -  डा कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
ारत और चीन के बीच पिछले कई सालों से सीमा को लेकर वार्ता चल रही है। यह वार्ता दरअसल ारत और चीन की सीमा को लेकर नहीं हैबल्कि ारत और तिब्बत की सीमा को लेकर है। लेकिन तिब्बत पर चीन का कब्जा हो चुका है इसलिये यह बातचीत चीन के साथ ही करनी पड रही है। इसे दुर्ाग्य ही कहना होगा कि इस पूरी बातचीत में तिब्बत को नहीं बुलाया जा रहा। तिब्बत को न बुलाए जाने के जो दुष्परिणाम हो सकते हैं, उन्हें ारत को झेलना पड रहा है।

चीन ारत के बहुत बडे क्षेत्र पर अपना दावा जता रहा है। अब क्योंकि सीमा को लेकर बातचीत चल रही है, इसलिये चीन ने अपने इस दावे को और ी जोरदार ढंग से प्रत्यक्ष रूप से उठाना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों जब चीन के राष्ट्रपति ारत में स˜ावना यात्रा पर आये थे, तो दिल्ली से चीन के राजदूत सुन युशी ने दिल्ली में पत्रकार कांफ्रेंस बुलाकर स्पष्ट घोषणा कर दी थी, कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है और उसने ारत सरकार को चेतावनी के स्वर में आग्रह ी किया था कि तवांग घाटी तो तुरंत चीन के हवाले कर दी जानी चाहिए। ारत सरकार ने उस वक्त इसका खण्डन तो किया था, लेकिन खण्डन के स्वर उसी प्रकार के थे, जिसमें खण्डन कम मण्डन ज्यादा प्रतीत होता है। अलबŸाा विदेश मंत्रालय में यह कहा जाने लगा कि सुन युशी के विचार व्यक्तिगत है उनका चीन सरकार से कोई ताल्लुक नहीं है। विदेश मंत्रालय को शायद इस बात का इल्म नहीं हैकि सुन युशी दिल्ली आने से पूर्व चीन के विदेश विाग के ही प्रवक्ता थे। वैसे ी बीजिंग ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट कर दिया कि सुन युशी व्यक्ति के रूप दिल्ली में नहीं है बल्कि वे चीन के सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इधर हाल में चीन ने अरुणाचल प्रदेश में अपने दावे को एक और तरीके से दिल्ली में ही दोहराया है। ारत सरकार के एक आईएएस अधिकारी चीन जा रहे थेलेकिन यह अधिकारी अरुणाचली थे। चीन सरकार से वीजा मांगने पर सुन युशी की ओर से उन्हें बताया गया की आपको वीजा की जरूरत नहीं हैक्योंकि आप तो चीनी नागरिक ही है और चीन में ही रह रहे हैंक्योंकि सुन युशी के अनुसार अरुणाचल प्रदेश चीन का ही हिस्सा है। उन्होंने कहा कि आप चीन में कहीं ी आइये-जाइये आप पर कहीं ी रोक-टोक नहीं है। ारत सरकार की इस पर क्या प्रतिक्रिया रही, इस पर टिप्पणी करने की जरूरत नहीं है। ारत सरकार ने चीन के राजदूत को विदेश मंत्रालय में बुला कर इसके लिए प्रताडित किया कि नहीं किया, इसके बारे में या तो सुन युशी जानते होंगे या मनमोहन सिंह जानते होंगे या सीताराम येचुरी जानते होंगे या फिर विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी जानते होंगे जिन्हें राष्ट्रपति बनाने के लिए सीताराम येचुरी की पार्टी दिन रात हलकान हो रही है। लेकिन लगता है सुन युशी इतना अवश्य समझ गये हैं कि ऐसी बातें ारत में सरेआम नहीं करनी चाहिए। यदि परदे के पीछे ही खिचडी पक जाये तो शुरू में ही परदा उठाने की जहमत क्यों उठायी जाये। यह सलाह उन्हें ारत सरकार ने दी है या फिर चीन सरकार ने दी है यह तो वहीं जानते होंगे। लेकिन दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार के संपादक से एक ेंटवार्ता में सुन युशी ने ईश्वर के नाम पर इस बात की प्रार्थना की कि सीमा संबंधी अरुणाचल प्रदेश के विवाद को लोगों के बीच में नहीं लाया जाये। उनका कहना था कि इससे ारत के लोग ड़क उठते हैं और दोनों देशों के बीच में सीमा को लेकर जो बातचीत चल रही हैउस पर बुरा असर पड़ता है।

चिंता का विषय यह है कि दोनों देशों के बीच में अरुणाचल प्रदेश को लेकर क्या बातचीत चल रही है? पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश में लोकसा के सदस्य श्री खिरेन रज्जू ने ारत सरकार को एक पत्र ी लिखा था कि चीन की सेना अरुणाचल प्रदेश में बीस किलोमीटर के ीतर घुस आई है। ारत सरकार का इस प्रश्न पर यही रवैय्या था कि खरगोश की तीन टांगे है, चैथी है ही नहीं। पचास के दशक में जब चीनी सेना लद्दाख के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर रही थी और वहां सडके बना रही थी, तो पंडित जवाहर लाल नेहरू चीन का तो कुछ बिगाड नहीं पाये लेकिन वे ारत के लोगों से यह तथ्य छिपाते रहे क्योंकि उनको लगता था कि इससे ारत की जनता डक उठेगी। इसलिये उन्होंने परदे के पीछे चीन को ारतीय ू-ाग पर कब्जा करने की अनुमति दे दी। लेकिन ारतीय जनता को ड़कने नहीं दिया। अंततः जब चीन ने स्वयं ही यह घोषणा कर दी कि उसने लद्दाख में सड़क बना ली है तो पंडित नेहरू के पास छिपाने के लिए कोई परदा नहीं बचा था । तब उन्होंने संसद में कहा था कि चीन ने जिस जमीन पर कब्जा किया है वहां घास का एक तिनका ी नहीं उगता। खुदा का शुक्र है कि डा मनमोहन सिंह ने इस बार अरुणाचल प्रदेश के बारे में ऐसा नहीं कहा। रहा सवाल लोगों के डकने का-उसकी चिंता सुन युशी को तो हो रही है सोनिया गांधी को शायद नहीं होगी। क्योंकि उनके स्वास्थ्य पर ारत के लोगों के ड़कने का ी असर नहीं पड़ता है और न ही ारत के लोगों के खुश होने का । परंतु सुन युशी एक साम्यवादी देश के होते हुए ी अच्छी तरह जानते हैं कि लोकतंत्र में जब जनता ड़कती है तो सरकारों के किए कराये पर पानी फेर देती है। शायद वे इसीलिए चाहते हैं कि ारत की जनता के ड़कने से पहले ही सोनिया गांधी के काल में अरुणाचल प्रदेश का फैसला करा लिया जाए।

परंतु क्या ारत की जनता इसे चुपचाप देखती रहेगी। यदि दिल्ली से छपनेवाले कुछ अंग्रेजी अखबारों की सलाह माने तो अरुणाचल प्रदेश को लेकर न तो ारत सरकार को डकना चाहिए और न ही इस देश की जनता को । सुन युशी क्या कह रहा है इसकी चिंता ी नहीं करनी चाहिए। असली चीज है व्यापार। सीमा विवाद के कारण ारत और चीन का व्यापार प्रावित होता है। इसलिये सीमा जैसे तुच्छ प्रश्नों पर उŸोजित नहीं होना चाहिए। सुन युशी ने यह ी कहा कि पश्चिम बंगाल की साम्यवादी सरकार चीनी कंपनियों को अपने यहां तरजीह देगी। लगता है दक्षिणी ब्लाक और उŸारी ब्लाक में व्यापरी घुस आये हैं। कहीं अरुणाचल प्रदेश ी किसी व्यापारिक दांव पर ही तो नहीं लगाया जा रहा? इसका उŸार ारत सरकार को देना होगा। लेकिन उŸार देने से पहले सुन युशी को दिल्ली से बाहर निकालना होगा, क्योंकि यदि इस देश के व्यापारी और उस देश का सुन युशी दोनों मिल गये तो लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक सारी सीमा खतरे में पड जाएगी।
(हिन्दुस्थान समाचार)



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