डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
पिछले दिनों सोनिया गांधी की सरकार ने वर्ग संघर्ष को बढ़ावा देने के लिये
राजेन्द्र सच्चर के जिम्मे एक विशेष काम लगाया था। वह काम था प्रत्येक स्थान पर इस
बात की जांच करना की वहां कितने मुसलमान हैं, उनके साथ वहां क्या व्यावहार हो
रहा है ? यदि
किसी स्थान पर मुसलमान कम हैं तो इसका क्या कारण है? क्या उन्हें इस स्थान पर उचित
अवसर व वातावरण न देकर उनके अधिकारों को ठेस नही पहुंचाई जा रही? ऊपर मैंने वर्ग संघर्ष
शब्द का जान-बूझकर प्रयोग किया है। क्योंकि आज कल सरकार माक्र्सवादियों के दिये
गये माक्र्स पर ही फल फू ल रही है और माक्र्सवादी जहां ी जाते हैं और जिस देश
में ी रहते हैं यह मान कर ही चलते हैं कि
वहां दो वर्ग अवश्य ही विद्यमान हैं। दोनों में निरंतर संघर्ष ी चलता रहता है।
यदि कहीं नही ी चलता तो माक्र्सवादियों की दृष्टि में वह समरसता नही है बल्कि एक
वर्ग का बल पूर्वक दूसरे वर्ग को दबाय रखने का साम्राज्यवादी, पूंजीवादी और संर्कीण
राष्ट्रवादी ष्ड्यन्त्र है। माक्र्सवादियों की दृष्टि में ारत वर्ष में दो स्पष्ट
वर्ग हैं। एक हिन्दू और दूसरा मुस्लिम । उनकी दृष्टि में इन दोनों की राष्ट्रीयता ी
अलग-अलग है। अपने देश में जब इस प्रकार के प्रश्नों पर विवाद खड़ा होता है तो
ज्यादा विद्वान प्रमाण के लिये वेदों और पुराणों की ओर ागते हैं। लेकिन
माक्र्सवादी ऐसे संकट काल में तर्क और प्रमाण के लिये माक्र्स, लेनिन और माओ की पोथियों
को उलटते पलटते हैं । इन पोथियों में ारत वर्ष में हिन्दुओं और मुसलमानों की
राष्ट्रीयता को अलग-अलग बताने वाले ढेरों प्रमाण मिल जाते हैं। इन प्रमाणों के बाद
माक्र्सवादियों के लिये चिंतन और मनन का दरवाज बन्द हो जाता है। इसीलिये जब
मुस्लिम लीग ने द्वि राष्ट्र के सिद्धांत की कल्पना करके मुस्लिम राष्ट्रीयता के
लोगों के लिये अलग देश की मांग की तो माक्र्सवादी उनके सर्मथन में जी जान से जुट
गये। अलग देश की मांग करने के कारण माक्र्सवादियों की दृष्टि में मुस्लिम लीग
कार्ल माक्र्स और लेनिन के ज्यादा नजदीक हो गई। इस नजदीकी के कारण कम्युनिस्टों की
नजर में मुस्लिम समाज शोषित वर्ग बन गया। महात्मा गांधी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ के स्वयंसेवकों द्वारा ारत विाजन का विरोध करने के कारण हिन्दू वर्ग
पूंजीवाद और शोषक के पाले में आ गया। ारत विाजन के लिये कूटनीति ब्रिटिश सरकार
ने दी, गुण्डा
बल मुस्लिम लीग ने मुहैया करवाया और उसके लिये तर्किक आधार की रचना माक्र्सवादियों
ने की।
माक्र्सवादी उसी तर्किक आधार रचना पर खड़े हो कर बचे खुचे ारत में ी उसी
प्रकार हिन्दू वर्ग और मुस्लिम वर्ग में संघर्ष निर्माण के कार्य में लगे हुये
हैं। उनकी दृष्टि में अब ी हिन्दू शोषक है और मुसलमान शोषित, जिसे ारत में न तो समान
अवसर उपलब्ध हो रहे हैं और न ही उन्हें सामान्य मानव अधिकार दिये जा रहे हैं।
माक्र्सवादियों के लिये यह सारा ‘‘सैद्धांतिक फे्रम वर्क’’ है। उन्होंने अपने थीसिस में
विशेष परिस्थितियों की कल्पना कर ली है और यदि यथार्थ में ऐसी परिस्थितियां नही
हैं तो वे वैसी पैदा करने में जुट गयें हैं। ऐसा नही है कि यह कार्य उन्होंने अी
शुरू किया है। वे अरसे से इस काम में लगे हुये हैं। इसे देश का दुर्ाग्य कहना
चाहिये कि उन्हें पहली बार केन्द्रीय सरकार के आपरेट्स पर कब्जा करने का मौका मिल
गया है। इससे ी बड़ा दुर्ाग्य यह है कि
जिसने 150
साल से ी पुरानी कांग्रेस पार्टी पर कब्जा कर लिया है, वह एक विदेशी महिला है। जिन
माक्र्सवादियों के बल बूते पर वह सरकार चला रही हैं वे विदेशों से संचालित होते
हैं। बहुत साल पहले ारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद् के सदस्य रहे
रमेश शर्मा ने लिखा था कि जब चीन की शह पर सी.पी.एम. बनी थी तो पीकिंग ने उसे जो तीन
महत्वपूर्ण काम दिये थे उन में से एक ारत सरकार और उसकी सŸाा को ीŸार से कमजोर करना ी था। सोनिया
गांधी और माक्र्सवादी आज इक्कठे हो गये हैं। यह एक बार फिर ारत के लिये दर्रा
खैवर के पुराने इतिहास के खुल जाने का डर पैदा करता है। राजेन्द्र सच्चर इसी सरकार
के कहने पर ारतीय सेना में मुसलमानों की गिनती करवा रहे थे। इसके पीछे उनके
मनसूबे क्या हैं, ये तो सोनिया गांधी जानती होंगी या फिर सीताराम येचुरी । राजेन्द्र सच्चर ने
तो अी अपने इस ऐतिहासिक शोध के आंकड़े ी प्रस्तुत नही किये हैं, परन्तु उसके परिणाम आने
शुरू हो गये हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सहलाकार नारायणन् ने सी प्रदेशों के पुलिस
प्रमुखों को सावधान किया है। कि ारतीय सेना में लश्करे तोयबा के लोग सफलता पूर्वक
घुसपैठ कर चुके हैं। संसद में इसका खंडन करते हुये गृह मंत्री शिवराज पाटिल का
चेहरा देखकर क्रोध कम आ रहा था और तरस ज्यादा। क्योंकि उधर जम्मू कश्मीर में सेना
के लोग उन काली ेडों को पकड़ने में लगे हुये थे जो ारतीय सेना में रह कर ी
लश्करे तोयबा के साथ हम बिस्तर थे। राजेन्द्र सच्चर को क्या इस विषय में कुछ कहना
है ? यकीन
मानिए चन्द हफ्तों बाद मानवाधिकारवादी इन गिरफ्तार किये गये सैनिकों के पक्ष में
खड़े हो ही जायेंगे, क्योंकि ये आखिर मुसलमान हैं। मुसलमान हैं तो सीताराम येचुरी के हैवज नाॅट
हैं। इनकी रक्षा करना दोनों का कर्तव्य है। सोनिया गांधी का ी और सीता राम येचुरी
का ी। लेकिन प्रश्न है-ारत की रक्षा कौन करेगा?
प्रश्न मुसलमानों पर शक करने का नही है और न ही मुसलमानों की निष्ठा पर संदेह
का है। मुसलमान शायद उस दृष्टि से कटघरे में ी नही खड़े हैं। सबसे बड़ा प्रश्न
चिन्ह तो उन लोगों, दलों और गिरोहों की मंशा पर है जो जानबूझकर मुसलमानों के मनोविज्ञान को बदलने
का प्रयास कर रहे हैं। उनके साथ अन्याय हो
रहा है, और
वह ी इसलिये हो रहा है क्योंकि वे मुसलमान हैं-सबसे पहले उनके मन में यह ावना री
जा रही है जिस वक्त उनके अन्दर यह ावना र जाती फिर उनके तुष्टीकरण के प्रयास
किये जाते हैं। पहले यह कार्य अंग्रेज सरकार करती थी अब उनकी विरासत को संाले
शासक वर्ग ने शुरू कर दिया है। मुसलमानों के तुष्टीकरण कर यह प्रयास महात्मा गांधी
ने ी ारत में खिलाफत आंदोलन को स्वीकार करके दिया था। लेकिन महात्मा गांधी के बारे में कम से कम इतना
तो कहा ही जा सकता है कि उनका तरीका गलत था किन्तु मंशा गलत नही थी। मुसलमानों के
इन डोंगी रहबरों की तो मंशा ही संदेहास्पद है। बाबा साहब अम्बेडकर ने अरसा पहले यह
प्रश्न उठाया था कि ारतीय सेना में लश्करे तोयबा की ज़हनियत वाले लोग रहेंगे तो
शत्रु के आक्रमण पर देश की रक्षा की स्थिति क्या होगी ? उस वक्त लश्करे तोयबा नही था,
इसलिये उन्होंने
इस शब्द का प्रयोग नही किया था। लेकिन इस ज़हनियत को वे अच्छी तरह पहचान गये थे ।
दुर्ाग्य है कि आज कुछ लोग इसे पहचान ही नही रहें हैं, कुछ पहचान कर अनजान ी बन रहें
हैं और कुछ अपने निहित स्वार्थों या फिर
अपने आकाओं के स्वार्थों की खातिर इसे हवा दे रहें हैं।
(हिन्दुस्थान समाचार)
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