Tuesday, 14 January 2014

असम में बंगलादेशी मुसलमानों के बहाने की जा रही देशघाती राजनीति



-डाॅ0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
पिछले कुछ दिनों से असम में, विशेषकर बोडो क्षेत्रीय परिषद के अधिकार क्षेत्र में आने वाले चार जिलों  कोकराझार, बाकसा, उदालगुड़ी, चिरांग में असमिया लोगों और बंगला देश से अवैध घुसपैठ करने वाले मुसलमानों में भंयकर टकराव हो रहा है।  इस टकराव में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ही लगभग पचास लोगों की मृत्यु हो चुकी है जिनमें महिलाएं और बच्च्ेा भी शामिल है और चार लाख से भी उपर लोग अपने घरों को छोड़कर भाग गए हैं। वे सहायता शिविरों में रह रहे हैं।  हजारों घरों को जला दिया गया है और करोड़ों की सम्पŸिा स्वाहा हो गई है।  बोडो क्षेत्रिय परिषद के दो जिलों मसलन कोकराझार और चिरांग में तो स्थिति बहुत ही भयावह है। असमिया लोगों और बंगलादेशी घुसपैठियों की लड़ाई अब धुबड़ी इत्यादि जिलों को पार करके बांेगईगांवो, बरपेटा इत्यादि क्षेत्रों में फैलने लगी है।  यहाॅं तक असम सरकार का प्रशन है उसके लिए यह कोई महत्वपूर्ण प्रशन नहीं है।  असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई दावा कर रहे हैं कि स्थिति नियंत्रण में आ चुकी है लेकिन शायद अन्दर ही अन्दर सुलग रहे दावानल तो महसूस नहीं कर रहे।  या फिर महसूस तो कर रहे हैं लेकिन जानबूझ कर अनजान बने हुए हैं।  असम के लोगों को गुस्सा तरूण गोगोई पर इसलिए भी है कि पिछले विधान सभा चुनावों में जब सभी बंगला देशी मुसलमान बदरूददीन अजमल की ए.यू.डी.एफ. पार्टी के झण्डे तल लामबद्ध हो गए थे तो अमस की हिन्दू जनता ने तरूण गोगोई की सरकार को जिताया था। लेकिन अब वही तरूण गोगोई अपने आगामी राजनैतिक हितों  को पुनः पारिभाषित करते हुए अवैध बंगलादेशी मुसलिम घुसपैठियों के प्रति नरम रवैया अपना रहें हैं और उन्हें असम के लोगों की कीमत पर बसाने का प्रयास कर रहे हैं। दरअसल असम 1947 से ही मुसलिम लीग के निशाने पर रहा है और मुसलिम लीग इसे भारत विभाजन की योजना के अन्तर्गत पाकिस्तान में शामिल करवाना चाहती थी।

इसे मुसलिम लीग और अंग्रेज सरकार की सांझी योजना भी कहा जा सकता था।  1905 में जब अंग्रेज सरकार ने बंगाल का विभाजन किया और मुसलिम बहुल पूर्वी बंगाल को अलग कर दिया तो पूरे बंगाल ने एकजुट होकर इसका विरोध किया था।  अंग्रेजों ने तभी से पूर्वी बंगाल के साथ लगते असम के क्षेत्र को बंगाली मुसलमानों से भरने का निर्णय कर लिया था।  असम में बंगाली मुसलमानों के बसने का यह सिलसिला 1930 तक निरन्तर चलता रहा।  यही कारण था कि आसाम का सिलहट इत्यादि क्षेत्र मुसलिम बहुल हो गया।  आजादी से पहले जो अन्तरिम सरकारें बनी थी उसमें असम के तकालिक मुख्य मंत्री गोपीनाथ बारदोलोई के त्यागपत्र देने पर मुसलिम लीग के मुहम्मद सादुल्लाह मुख्य मंत्री बने थे। उन्होंने  इन बंगाली मुसलमानों को जमीन के स्थाई पट्टे दे दिए। मुसलिम लीग के अध्यक्ष मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान में शामिल किए जाने वाले जिन क्षेत्रों का मानचित्र इंगलैण्ड की सरकार को दिया था उस मानचित्र में पूरे का पूरा बंगाल और असम का अधिकांश भाग शामिल था। डाॅ0 श्यामाप्रसाद मुखर्जी की सूझ-बूझ के कारण पश्चिमी बंगाल पाकिस्तान में शामिल होने से बच गया और गोपीनाथ बारदोलोई के प्रयासों से असम। लेकिन इसके बावजूद असम का सिलहट क्षेत्र अंग्रेज सरकार ने पाकिस्तान में शामिल कर दिया।  भारत विभाजन के बाद भी मुसलिम लीग और पाकिस्तान सरकार ने पूरे असम को पाकिस्तान में शामिल करवाने का अपना एजेण्डा त्यागा नहीं।  बंगला देश जब पाकिस्तान से अलग हो गया तो पाकिस्तान की आई.एस.आई. के लिए असम को मुसलिम बहुल बनाकर उसे हिन्दुस्तान से तोड़ने का एक और रास्ता मिल गया।  बंगला देश बनने के बाद लाखों की संख्या में अवैध बंगलादेशी मुसलिम घुसपैठिए हिन्दुस्तान में आने लगे और उनमें से अधिकांश असम में स्थाईरूप से बसने लगे। यह ठीक है कि इन बंगलदेशी घुसपैठियों ने अपने बिस्तार के लिए सारे हिन्दुस्तान को ही अपना निशाना बनाया।  एक मोटे अनुमान के अनुसार हिन्दुस्तान में बसेे अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या चार करोड़ के लगभग है।  जबकि संयुक्राष्ट्र संघ के अनेक सदस्य देशों की आबादी चार करोड़ से कहीं कम है।
      आज दिल्ली, कोलकाता जैसे शहरों में लाखों की संख्या में अवैध बंगलादेशी घुसपैठिए मिल जाएंगे लेकिन अब उनका विस्तार छोटे-छोटे शहरों तक में हो गया है। पूर्वोत्तर भारत में तो वे गांव तक पहुंच गए है।  मेघालय, त्रिपुरा और असम उनके विशेष शिकार हुए हैं।  दःुख की बात यह है कि ये बंगलादेशी घुसपैठिए अपराध कर्म में तो लिप्त हो ही रहें हैं, इनकी मानसिकता भारत विरोधी है और अनेक स्थानों पर  आतंकवादी गतिविधियों में भी इनकी संलिप्तता पाई गई है। भारत के अनेक स्थानों पर जो आतंकवादी विस्फोट हुए हैं उनकी जांच में कई बंगलादेशी भी संदेह के घेरे में है।  पूर्वोंत्तर भारत में आई.एस.आई. की गतिविधियों को बढ़ावा देने में संलिप्त लोगों की शरणस्थली भी बंगलादेश रही है।  दुर्भाग्य से इन बंगलादेशियों को इस देश में, खासकर असम में, स्थाई रूप से बसाने में और उन्हें जरूरी कानूनी कागजात मुहैया करवाने में पश्चिमी बंगाल की पूर्ववर्ती सी.पी.एम. सरकार और असम की सोनिया  कांग्रेस सरकार की महत्पूर्ण भूमिका रही है।  बंगलदेशी अवैध घुसपैठियों के कारण असम में जो जनसांख्यिकी परिवर्तन आ रहा है उस पर गुवाहाटी उच्च न्यायाल्य और उच्चतम न्यायालय भी अनेक बार चिन्ता प्रकट कर चुका है।  न्यायालय ने केन्द्र सरकार को ऐसे आदेश भी दिए हैं कि अवैध बंगलादेशियों की शिनाखत करके उन्हें तुरन्त देश से बाहर निकाला जाए। लेकिन सी.पी.एम. और सोनिया कांग्रेस दोनों के ही राजनैतिक हित इन बंगलादेशियों से जुड़ गए हैंइसलिए कानून का निर्धारण इस प्रकार किया गया जिससे कानूनी प्रक्रिया में किसी अवैध बंगलादेशी को इस देश से निकालना लगभग असम्भव हो जाए। केन्द्र सरकार का आई.एम.डी.टी. एक्ट ऐसा ही कानून था, जिसे बाद में उच्तम न्यायालय ने निरस्त किया।
    
शुरू-शुरू में जब बंगलादेशी मुसलमानों ने असम में डेरा जमाना शुरू किया था और सोनिया कांग्रेस ने खुशी-खुशी उन्हें मतदाता सूचियों में दर्ज कराना शुरू किया था तो ये नये मतदाता सोनिया कांग्रेस को ही मत देते थे  और असम की सोनिया कांग्रेस सरकार इन नये बढ़ते मतों के उत्साह में बंगलादेशियों को निकालने के वजाए उन्हें और अधिक संख्या में असम में बसाने के प्रयास कर रही थी। अब जब इन बंगलादेशी मुसलिम घुसपैठियों की संख्या अनेक जिलों और विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक स्थिति में पहुंच चुकी है तो उन्होंने अपनी ही एक राजनैतिक पार्टी ए.यू.डी.एफ. असम यूनाईटेड डैमोक्रेटिक फ्रंट बना ली हैं और पिछले विधान सभा चुनाव में 18 सीटें प्राप्त करके वह मुख्य विपक्षी दल बनने की स्थिति में आ गई हैं। इन दिनों, क्योंकि दिल्ली में देश की सबसे कमजोर, दिशाहीन और निर्णय लेने में अक्षम सरकार काबिज है जो सŸाा की खातिर मुसलमानों के तुष्टीकरण में लगी हुई है। इसलिये आइ.एस.आई. और अवैघ बंगलादेशी घुसपैठियों को लेकर लम्बी रणनीति चलाने वालों ने असम में अपनी रणनीति का पहला प्रयोग करने का निर्णय कर लिया है।  आसाम के कोकराझार, चिरांग, धुबड़ी और दूसरों जिलों में जो हो रहा है वह उसी प्रयोग का प्रतिफल है। यह रणनीति इतनी गहरी है  कि ज्यों ही असम में असमिया लोगों और अवैध बंगलादेशी मुसलमानों का टकराव शुरू हुआ त्यों ही दिल्ली में केन्द्रिय सरकार पर दबाव बनाने के लिए मुसलमानों ने, जिनमें से अधिकांश अवैध बंगलादेशी ही थे असम भवन और केन्द्रिय गृह मंत्री के घर के बाहर यह कहते हुए प्रदर्शन करने शुरू कर दिए कि असम में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है जबकि असलियत यह है कि असम में यह झगड़ा असमिया लोगों और अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों में है न कि असम के हिन्दू और मुसलमानों में।  केन्द्रिय सरकार, और अभी भी मुसलिम लीग की रणनीति को मन में पाले हुए कुछ नेता इसे हिन्दू मुसलिम दंगों का रूप देने की कोशिश कर रहे हैं।  रणनीति बिल्कुल साफ है यदि इसे हिन्दू मुसलिम दंगे का नाम दे दिया जाए तो विदेशी पैसों पर पल रही तमाम एन. जी. ओ. हिन्दुओं के खिलाफ मोर्चा खोल सकती है। लेकिन यदि  यह झगड़ा असम के लोगों और अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों के बीच है तो तथाकथित सैक्युलरिस्टों के लिये अवैध बंगलादेशियों का समर्थन करना मुशिकल हो जाएगा।  बोडो लैंण्ड क्षेत्रीय परिषद के मुखिया ने बार-बार केन्द्र सरकार और असम सरकार से मांग कि भारत और बंगला देश की सीमा को तुरन्त सील किया जाए क्योंकि दंगों का लाभ उठाकर बहुत से  बंगलादेशी मुसलमान सरहदपार से असम में घुस रहे हैं और जलती में घी का काम कर रहे हैं। यह मांग भी की गई कि धुबड़ी और कोकराझार की सीमा को भी सील किया जाये क्योंकि धुबड़ी से अवैध बंगलादेशी घुसपैठिए कोकराझार में घुसकर स्थिति को खराब कर रहे हैं लेकिन असम सरकार के कानों पर जूं नही रेंगीं। असम में स्थिति कितनी खराब हो चुकी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मेघालय के राज्यपाल रणजीत शेखर ने भी सार्वजनिक रूप से यह कहा कि असम सरकार स्थिति पर नियंत्रण रखने में सफल हुई है।  उन्हें यह तब कहना पड़ा जब उन्हें अपने ही गांव के मूल निवासियों को खदेड़ दिया गया।

लेकिन असम के कुछ हल्कों में बोडो क्षेत्र में हुए इन दंगों को लेकर प्रचारित किए जा रहे आंकड़े भी विवाद का विषय बने हुए हैं।  सरकारी  प्रचार माध्यम यह दावा कर रहे हैं कि इन दंगों में लगभग पाॅंच लाख लोग विस्थापित हुए हैं।  बोर्डो साहित्य सभा का कहना है कि जिस जिले से अवैध बंगलादेशी घूसपैठिए शरणार्थी कैंपों में गये है उस कोकराझार जिले में मुसलमानों की कुल जनसंख्या ही दो लाख है।  इन दो लाख में भी अवैध बंगलादेशी मुसलमानों के अतिरिक्त असम के मूल मुसलिम भी हैं। यदि यह भी मान लिया जाए कि कोकराझार जिले के सभी मुसलमान भाग कर शरणार्थी कैंपो में चले गये हैं तभी भी उनकी संख्या पांच लाख कैसे हो सकती है। ऐसा कहा जा रहा है कि बंगलादेश से बहुत से अवैध मुसलमान आ रहे हैं और अब वे अपने आप को इन राहत कैंपों में पनाह लेने वालों में शामिल करके सरकारी सहायता से ही असम में अवैध रूप से बस जायेंगे।  असम के तटास्थ विशलेषक यह मानते हैं कि पूर्नवास की व्यवस्था उन्हीं के लिए की जाए जो असमीया मुसलमान है।  बंगलादेशी मुसलमानों की शिनाखत करके उन्हें वापिस बंगला देश भेजा जाये। लेकिन लगता है असम की सोनिया कांग्रेस सरकार इस त्रासदी का भी राजनैतिक लाभ उठाना चाहती है।  यही कारण है कि इस दंगों के नाम पर नये आने वाले बंगलादेशी मुसलमानों को बसाने के प्रयास किए जा रहे हैं।  सरकार पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने और कहीं वह जन दबाव के चलते बंगलादेशी मुसलमानों की शिनाखत करना शुरू न कर दे, शायद इसी को टालने के लिए ईसलामी आतंकवादी समूहों ने गोपालपाड़ा में भारतीय सेना पर भी आक्रमण किया।  मुसलिम यूनाईटेड लिवरेशन आॅफ असम ने भी सरकार पर बंगलादेशियों घुसपैठियों को सरकारी सहायता से बसाने का दबाव डालना शुरू कर दिया है।  सोनिया कांग्रेस के सबसे बड़े सिपहसलार दिग्विजय सिंह जिसको सोनिया गांधी ने असम का इंचार्ज बनाया हुआ है ने स्पष्ट किया कि असम में बंगलादेशी अवैध मुसलिम घुसपैठिए नहीं है बल्कि ये यहाॅं के मूल मुसलिम समुदाय से ही तालुक रखते हैं।  जब उनसे प्रशन किया गया कि यदि अवैध बंगलादेशी मुसलिम घुसपैठिए आसाम में नहीं आ रहे हैं तो पिछले कुछ दशकों से असम में मुसलमानों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि कैसे हुई है।  इसके उत्तर में दिग्विजय ने जो कहा वह शायद कांग्रेस वालों को भी चैंकाने के लिए काफी हो।  उन्होंने कहा कि असम में भी मुसलमानों की जनसंख्या में उसी दर से वृद्धि हुई है जिस दर से भारत के अन्य प्रान्तों में।  इसलिए असम में मुसलिम जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि पर शोर मचाना बेकार है।  दिग्विजय सिंह का दंगों के अवसर पर दिया गया यह ब्यान काफी चतुराई भरा है।  उनके इस ब्यान का अर्थ है कि दंगों की आड़ में नये आने वाले बंगलादेशी मुसलमानों को, या फिर ऐसे बंगलादेशी मुसलमानों को जो काफी अर्से से असम में रह रहे हैं लेकिन उनके पास स्थाई निवासी होने के कागज पत्र नहीं है, को सरकारी सहायता पर बसा दिया जाए और उनके नाम मतदाता सूचियों में दर्ज करवा दिए जायें। जबकि असम में असली स्थिति यह है कि विधानसभा के कुल 126 क्षेत्रों में से 56 क्षेत्र ऐसे बन गये हैं, जहाॅं चुनाव में वही विधायक जीत सकता है जिसका समर्थन बंगलादेशी मुसलमान करेंगे।  इसका अर्थ यह हुआ कि सत्ताधारी सोनिया कांग्रेस का समर्थन पाकर एक दिन बंगलादेशी मुसलमान राज्य के शासन के सूत्रधार भी बन सकते हैं।  बंगलादेशी मुसलमानों की राजनीति करने वाले राजनैतिक दल असम यूनाईटेड डैमोक्रेटिक फ्रंट के मालिक बदरूददीन अजमल ने सोनिया कांग्रेस की इस सत्ता लिप्सा को आसानी से पहचान लिया।  उसने बंगलादेशी मुसलमानों के दम पर विधानसभा की 18 सीटों पर कब्जा करके बंगलादेशी मुसलमानों की ताकत का भी ऐहसास करवा दिया और असम की तरूण गोगोई सरकार का समर्थन करना भी शुरू कर दिया ताकि कांग्रेस इसी लालच में प्रदेश में अपनी बंगलादेशी घुसपैठियों को समर्थन देने की नीति जारी रख सके।  शायद यही कारण है कि आज जब असमिया लोगों और अवैध विदेशी बंगलादेशियों के बीच में झगड़ा हुआ तो सरकारी प्रशासन बंगलादेशियों के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है न कि असम के लोगों के पक्ष में। स्थिति यहां तक खराब हो गई है कि असमिया स्वयं को  असम में ही बेगाने महसूस कर रहे हैं।  अस्सी के दशक में इस स्थिति को बदलने के लिए और असम को अवैध बंगलादेशी मुसलमानों से मुक्त करवाने के लिए असम के छात्रों ने बेमिसाल अहिंसक आन्दोलन चलाया था। उससे प्रान्त की सरकार भी बदली परन्तु  केन्द्रिय सरकार की नीतियों, अन्तर्राष्ट्यि षड्यन्त्रों और मुसलिम लीग की 1947 की रणनीति को साकार करने में लगी घर की भेदी शक्तियों के सम्मिलित प्रयासों ने असम के लोगों की इस लड़ाई को एक बार फिर पराजित कर दिया।  कांग्रेस इस लड़ाई में असम के लोगों के साथ इसलिए न खड़ी हो सकी क्योंकि उसे सत्ता में रहने के लिए बंगलादेशी मुसलमानों के मतों की जरूरत थी और ये नये मतदाता इसके लिए सहर्ष तैयार थे और यदि बाबा साहब आम्बेडकर के शब्दों की नव व्याख्या करनी हो  तो मुसलिम ब्लाॅक को असम में बंगलादेशी मुसलमानों को बसाने की इसलिए जरूरत थी ताकि पूर्वोत्तर भारत को देश से अलग किया जा सके।  आज भी जब लड़ाई का असली केन्द्र असम ही है तब भी बंगलादेशी मुसलमानों के आधार पर असम का जनसंख्या चरित्र परिवर्तित करने के लिए इन शक्तियों ने अपनी सहायता के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में भी बंगलादेशी मुसलमानों की पिकटें तैयार कर लीं हैं ताकि भविष्य में दबाव बनाने के लिए काम आए। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि असम में अभी जो दंगाफसाद हुआ है, तरूण गोगोई सरकार इसका उपयोग और भी ज्यादा बंगलादेशियों को असम में बसाकर करने जा रही है।



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