डा. कुलदीप चन्द
अग्निहोत्री
पंजाब मंे अब सी लोग प्रायः इस बात को लेकर एक मत हैं कि जरनैल सिंह िन्डरावाले
को कांग्रेस ने अकालियों को सबक सिखाने के लिए पैदा किया था और फिर पाला पोसा था।
कांग्रेस की इस पहल से अकालियों ने कोई सबक सीखा या नहीं यह तो अकाली ही जानते
होंगे लेकिन पंजाब ने बहुत गहरे घाव खाए और बहुत नुकसान झेला।
कांग्रेस के इस स्मासुरी यज्ञ ने हजारों लोगों की बली ले ली और अंततः इंदिरा
गांधी की हत्या ी इसी शृंखला में हो गई। जैसा कि ऊपर कहा गया है इस घटनाक्रम से
अकालियों ने कोई शब्द सीखा है या नहीं यह अकाली जानते होंगे लेकिन एक बात अवश्व स्पष्ट
हो रही है कि कम से कम कांग्रेस ने इससे कोई सबक नहीं सीखा।
पंजाब में ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आ रहे हैं त्यों-त्यों कांग्रेस फिर उन्हीं
पुराने हथकंडों पर उतर रही है जिनके कारण की वारिसशाह के पंजाब की धरती लहु लुहान
हो गई थी। कांग्रेस को शायद इस बात का गम है कि किसी को तनखाइया घोषित कर देने
वाली शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अकाली दल के कब्जे में है। इस कमेटी का
बाकायदा चुनाव होता है और दुर्ाग्य से पंजाब के लोगों ने की इसके लिए कांग्रेस
को नहीं चुना। अलबŸाा कांग्रेस चाहे अपने नाम से नहीं परंतु अन्य नामों से इन चुनावों में सक्रिय
रुचि लेती रहती है। लोकतंत्र का तकाजा तो यह है कि कांग्रेस अपना पक्ष लेकर पंजाब
के लोगों के बीच में जाए और यदि पंजाब के लोग उसके तर्कों से सहमत हो जाएंगे तो
उनके लोग ी शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य बन सकते हैं। परंतु यह
रास्ता बहुत लंबा है और कष्टकारी ी। ऊपर से कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी
इटली की रहने वाली हैं इसलिए शायद उन्हें पंजाबी परंपराओं और तौर-तरीकों का ज्ञान ी
न हो। इसलिए कांग्रेस ने शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का मुकाबला करने के लिए
एक आसाना लेकिन बहुत ही खतरनाक रास्ता अपना लिया है। उसने किसी को तनखाइया घोषित
करने का कार्य पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला से करवाना शुरू कर दिया है।
पंजाब के लोग शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को कांग्रेस के कब्जे में नहीं
देते लेकिन पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला तो कांग्रेस के कब्जे में है ही। पंजाब
मंे कांग्रेस की सरकार है और उसमें अमरिन्दर सिंह सरदार है। अमरिन्दर सिंह ने
पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के कुलपति के तौर पर श्री स्वर्ण सिंह बोपाराई को
नियुक्त किया हुआ है। पिछले दिनों पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के संगीत विाग
द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया था इसमंे ाग लेने के लिए गुरुमत संगीत
के अनेक विद्वानों को निमंत्रित किया गया था। श्री अवतार सिंह मक्कड़ ी इसमें
आमंत्रित थे लेकिन किन्हीं कारणों से वे इसमें ाग नहीं ले पाए। पंजाबी
विश्वविद्यालय पटियाला ने मक्कर को तनखाइया घोषित कर दिया और उसके लिए तनख्वाह ी
नियत कर दी। कुलपति बोपाराई सरकार के कहने पर हो सकता है कुछ ी करने को तैयार हों
लेकिन कांग्रेस को तो कम से कम विश्वविद्यालयों को इस प्रकार के कामांे के लिए प्रयुक्त
नहीं करना चाहिए। मक्कड़ शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष हैं।
कांग्रेस पंजाबी विश्वविद्यालय के माध्यम से पंजाब की स्थिति में एक बार फिर आग
लगाना चाहती है। यह घटना उसका आगाज मात्र है।
दूसरी घटना और ी गहरा संकेत देती है। बाबा बुड्ढा स्वर्ण मंदिर के पहले
ग्रंथी थे। उनकी 500वीं जयंती मनाने के लिए कत्थू नंगल में अकाली दल की ओर से एक कार्यक्रम का
आयोजन किया जा रहा था जिसमें श्री प्रकाश सिंह बादल और श्री ओमप्रकाश चैटाला ाग
ले रहे थे। आयोजकों ने जिला प्रशासन को बाकायदा लिखकर दिया था कि कुछ तत्व इस
आयोजन में उत्पात मचा सकते हैं। आयोजकों की आशंका के अनुसार ही श्री सिमरणजीत सिंह
मान अपने साथियों समेत आयोजन में आ गए और जिसकी आशंका थी वही हुआ। दोनों गुटों में
फसाद हो गया। पंजाब सरकार की पुलिस ने मात्र इतना किया कि उसने सिमरणजीत सिंह मान
और उनके साथियों को आयोजन स्थल पर आने से नहीं रोका अलबŸाा यह ध्यान जरूर रखा कि मान के
इस कार्यक्रम में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो। यह ध्यान रहे कि श्री मान ी
श्री जगजीत सिंह की ही तरह पिछले कुछ सालों से अकेले ही खालिस्तान की स्थापना के
लिए अपने बलबूते पर जुटे हुए हैं।
पंजाब कांग्रेस अपने बलबूते शायद अकाली-ाजपा गठबंधन से लड़ने की स्थिति में
अनुव नहीं कर रही हैऔर न ही इसके लिए जनता में जाकर प्रयास करना चाहती है। इसलिए
उसने अकालियों से लड़ने का सबसे आसान रास्ता खोज लिया है। वह उन तत्वों को
अकालियों से िड़ाना चाहती है जो खालिस्तान का नारा ी लगाते हैंऔर विदेशी
शक्तियों के इशारे पर पंजाब में अराजकता ी फैलाना चाहते हैं। इसलिए पिछले कुछ
महीनों से ऐसे तत्व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की बैठकों में ी और अकाली
दल की साओं में ी हल्ला मचा रहे हैं। इससे पंजाब के वातावरण में उŸोजना फैल रही हैऔर शायद
कांग्रेस ऐसा मान रही है कि यदि अकाली और उग्रवादी तत्व आपस में िड़ते हैं तो
पंजाब के लोग पुराने समय के लौट आने की आशंका से कांग्रेस को फिर झुका देंगे।
पंजाब में ऐसी सोच आग से खेलने के समान है और कांग्रेस इसी आग से खेल रही है। किसी
ी सविधानिक सरकार का यह कर्Ÿाव्य होता है कि वह उग्रवादी और अलगाववादी तत्वों पर नकेल
कसे और कानून के अनुसार उन्हें दंडित करें। परंतु कांग्रेस सरकार ऐसा करने के बजाय
उनके राजनैतिक उपयोग से अकाली-ाजपा को
परास्त करने का आसान रास्ता तलाश कर रही है।
पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अमरेन्दर सिंह मान के निकट संबंधी हैं इसलिए
मान के किसी अियान में किसी प्रकार की कोई बाधा उपस्थित न हो इसका बाकायदा ध्यान
रखते हैं। की कोई पत्रकार इस विषय मंे कोई कड़ा प्रश्न पूछ ही लेता है तो यह कहते
हैं कि मैं मान को सुधारने का प्रयास कर रहा हूं। दोनों में से कौन किसको सुधार
रहा है यह तो अल्ला जाने लेकिन शायद मान की संगत का ही प्राव था कि अमरेन्दर सिंह
विदेश में जाकर खालिस्तान जिंदाबाद लिखे बैनर के नीचे खड़े होकर लंबा ाषण कर आए
थे। जब बबाल मचा तो मुख्यमंत्री ने यह कहकर बचना चाहा कि मैंने वह बैनर देखा ही
नहीं था। लेकिन जब मुख्यमंत्री के सचिव ने यह कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री को बैनर
के बारे में बता दिया था तो मुख्यमंत्री शायद उŸार देने के लिए सिमरणजीत सिंह
मान से ही सलाह करने गए होंगे। कांग्रेस की छात्रछाया मंे इन दोनों रिश्तेदारों का
सलाह मशविरा पंजाब को बहुत ारी पड़ सकता है। लेकिन दिल्ली में है कोई सुनने वाला?
शायद नहीं।
क्योंकि कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी पंजाबी नहीं समझती अलबŸाा इतालवी बखूबी जानती
हैं। लेकिन पंजाब के लोगों का दुर्ाग्य है कि उन्हें इतालवी नहीं आती। इसलिए वे
सोनिया गांधी को इन दोनों रिश्तेदारों के बारे में कैसे बताएं। या फिर यह ी हो
सकता है कि यह पूरी तैयारी कांग्रेस के उस लंबे षडयंत्र का ही हिस्सा हो जिसमें एक
बार पंजाबियों ने मात दे दी है। पंजाब के ही लोगों को कांग्रेस के इस षडयंत्र को
दूसरी बार ी मात देनी होगी। इसी मंे पजाब का ी ला है और देश का ी।
(हिन्दुस्थान समाचार)
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